पुणे के दो भाइयों ने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ फूड फॉरेस्ट मॉडल पर फार्मिंग शुरू की, अब सालाना 12 करोड़ है टर्नओवर

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महाराष्ट्र के पुणे जिले के रहने वाले दो भाई सत्यजीत और अजिंक्य किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। MBA की पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों ने अलग-अलग कंपनियों में करीब 10 साल तक काम किया। सैलरी और पोजिशन दोनों काफी अच्छी थी, लेकिन एक बार जो उन्होंने अपने गांव का रुख किया तो वहीं के होकर रह गए। आज दोनों मिलकर फूड फॉरेस्ट के कॉन्सेप्ट ( जंगल की तरह एक ही जमीन पर कई तरह के प्लांट लगाना) पर फार्मिंग और प्रोसेसिंग का काम कर रहे हैं। भारत के साथ अमेरिका, अफ्रीका, ब्रिटेन सहित कई देशों में अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर रहे हैं। इन्होंने 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दिया है और इनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 12 करोड़ रुपए है।

39 साल के सत्यजीत और 36 साल के अजिंक्य दोनों ने MBA की पढ़ाई की है।

अजिंक्य कहते हैं कि पिताजी पारंपरिक खेती करते थे। इसमें कोई खास आमदनी नहीं होती थी। इसलिए वे चाहते थे कि हम लोग अच्छी पढ़ाई करें और खेती से दूर रहें। उन्होंने बचपन में ही हमें बोर्डिंग स्कूल में दाखिला करा दिया ताकि हम गांव से दूर रहें। MBA करने के बाद पहले सत्यजीत की और फिर मेरी जॉब लग गई। हम दोनों शहर में सेटल हो गए। यानी खेती और अपने गांव से एक तरह से कट गए। इसी तरह कई साल गुजर गए। एक के बाद एक हम कंपनी भी बदलते गए।

पहले खेती को समझा, सीखा, फिर नौकरी छोड़ दी

अजिंक्य बताते हैं कि एक बार मेरा गांव जाना हुआ। तब खेतों पर गया, किसानों से मिला। उनके काम और प्रोसेस को समझा। धीरे-धीरे मैं उनसे कनेक्ट होने लगा। इसके बाद नौकरी के दौरान जब कभी छुट्टी मिलती, मैं एक दिन के लिए ही सही गांव जरूर आता था। इसी तरह करीब 2 साल तक चलता रहा। मैं खेती और अलग-अलग फसलों के बारे में जानकारी जुटाता रहा। इसको लेकर रिसर्च और मार्केटिंग स्टडी करता रहा।

अजिंक्य के मुताबिक उनके पास अभी 100 से ज्यादा गायें हैं। ये सभी देशी नस्ल की हैं।

साल 2012-13 में अजिंक्य ने अपने परिवार में बात की, सबको राजी किया और नौकरी छोड़ दी। वे अपने बच्चों के साथ गांव में शिफ्ट हो गए। यहां आने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपने प्लान के मुताबिक खेतों को तैयार किया। जमीन की फर्टिलिटी बढ़ाने के लिए पूरी तरह देसी तरीका अपनाया। खेतों में गाय के गोबर का इस्तेमाल किया। सिंचाई के लिए तालाब खुदवाए। इसके बाद फूड फॉरेस्ट के कॉन्सेप्ट पर काम करना शुरू किया। बाद में उनके भाई सत्यजीत भी उनके साथ जुड़ गए।

दोनों भाइयों ने शुरुआत पपीता और कुछ फ्रूट्स के साथ की। प्रोडक्शन तो भरपूर हुआ, लेकिन कमाई नहीं हुई, क्योंकि मार्केटिंग में सफल नहीं हुए। मंडी में सही भाव नहीं मिला। इस तरह करीब तीन-चार साल चला। वे एक के बाद एक खेती का दायरा बढ़ाते गए। अलग-अलग फसलें लगाते गए। इस दौरान प्रोडक्शन तो भरपूर हो रहा था, लेकिन आमदनी कुछ खास नहीं हो रही थी। अजिंक्य कहते हैं हमारे लिए वह मुश्किल वक्त था। हम दोनों भाई अच्छी सैलरी छोड़कर आए थे और हमें वैसा फीडबैक नहीं मिल रहा था, जैसी उम्मीद लेकर हमने काम शुरू किया था।

मार्केटिंग के लिए खास स्ट्रैटजी अपनाई, सीधे कस्टमर तक पहुंचे

अजिंक्य की टीम में 100 से ज्यादा लोग काम करते हैं, जो प्रोडक्ट की डिलिवरी के लिए उसकी पैकेजिंग में भी मदद करते हैं।

36 साल के अजिंक्य कहते हैं कि जब हमें मंडी में अपना सामान बेचने से फायदा नहीं हुआ तो हमने सीधे कस्टमर तक पहुंचने की योजना बनाई। हमने कुछ फल और सब्जियां बेचने वाले लोकल ठेले वालों से कॉन्टैक्ट किया और उनके जरिए अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने लगे। इसका बहुत अच्छा रिस्पॉन्स मिला। मंडी से तीन गुना ज्यादा कमाई हुई। साथ ही हम लोग खुद कस्टमर्स से बातचीत करके अपने प्रोडक्ट की खासियत बताते थे।

इसका फायदा यह हुआ कि कस्टमर्स हमारे साथ पर्सनली जुड़ते गए। उन्होंने अपना फोन नंबर हमें दे दिया और हम लोग उनके घर तक प्रोडक्ट की डिलिवरी करने लगे। इस तरह पुणे और उसके आसपास हम मार्केटिंग करने लगे। आगे चलकर हमने सोशल मीडिया की हेल्प ली। twobrothersindiashop.com नाम से खुद की वेबसाइट बनाई। अभी अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफॉर्म के जरिए भी हम अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर रहे हैं। हमने कई कूरियर कंपनियों के साथ टाइअप किया है। जिसके माध्यम से भारत के साथ ही अमेरिका, अफ्रीका, ब्रिटेन सहित कई देशों में अपने प्रोडक्ट भेज रहे हैं। पुणे और दूसरे शहरों में हमारे कई रिटेलर्स और डीलर्स हैं, जिनके जरिए भी हम मार्केटिंग कर रहे हैं।

प्रोडक्शन के साथ प्रोसेसिंग पर फोकस

दोनों भाई खेती करने के साथ ही फूड प्रोसेसिंग का भी काम करते हैं। अभी दो दर्जन से ज्यादा प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं।

अजिंक्य कहते हैं कि छोटे से छोटे किसान के लिए भी प्रोडक्शन कोई खास इश्यू नहीं है। सबसे बड़ा इश्यू है मार्केट में उसकी सही कीमत मिलना और उसका वैल्यू एडिशन करना। मान लीजिए गेहूं की कीमत 20 रुपए प्रति किलो है वहीं आटे की कीमत 50 रुपए तक पहुंच जाती है। इसी तरह बाकी प्रोडक्ट के साथ भी है। साथ ही फ्रेश प्रोडक्ट को बहुत दिनों तक संभाल के रखना भी मुश्किल टास्क है।

इसको देखते हुए हमने 2017 से फूड प्रोसेसिंग पर फोकस किया। इसके लिए हमने मशीन से ज्यादा देसी तौर-तरीकों पर जोर दिया। आटा बनाने के लिए चक्की का इस्तेमाल किया। तेल तैयार करने के लिए लकड़ी घना की मदद लेते हैं। इसी तरह पैकेजिंग में भी हम कोई हानिकारक चीज या प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करते हैं। अभी दोनों भाई मिलकर दो दर्जन से ज्यादा प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं। इसमें घी, ऑयल, पीनट बटर, आटा, दाल सहित हर वो चीज है जो घरों में इस्तेमाल होती है।

विदेशों से भी लोग खेती सीखने और दोनों भाइयों का फार्म देखने आते रहते हैं। ट्रेनिंग के लिए वे कोई फीस नहीं लेते हैं।

दोनों भाई मिलकर फिलहाल 30 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। उन्होंने अपनी जमीन को अलग-अलग हिस्से में बांट रखा है। 8 एकड़ जमीन पर उन्होंने फूड फॉरेस्ट लगाया है। बाकी जमीन पर तालाब और गायों को रखने के लिए घर बनवाया है। अभी उनके पास 100 से ज्यादा गायें हैं। ये सभी देसी और अच्छी नस्ल की गायें हैं।

क्या होता है फूड फॉरेस्ट, क्या हैं इसके फायदे?

फूड फॉरेस्ट यानी एक तरह से जंगल तैयार करना। जिसमें फ्रूट्स, वेजिटेबल से लेकर हर तरह के प्रोडक्ट शामिल हों। जैसे अमूमन जंगलों में अलग-अलग वैराइटी के प्रोडक्ट देखने को मिलते हैं। फूड फॉरेस्ट तैयार करने के लिए जमीन को तीन से चार भागों में बांट दिया जाता है। इसके बाद उसमें सीजन के हिसाब से, मौसम के हिसाब से, प्लांट की वैराइटी और उनकी हाइट के हिसाब से फार्मिंग की जाती है।

इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि हमें हर सीजन में फ्रूट्स और सब्जियां मिल जाती हैं। सिंचाई और फर्टिलाइजर का खर्च बच जाता है। एक बार सिंचाई करने पर सभी प्लांट को पानी मिल जाता है। इससे जमीन की फर्टिलिटी भी बढ़ती है और प्रोडक्शन भी बेहतर होता है। यानी एक प्लांट दूसरे के पूरक होते हैं। इसमें कई लोग मल्टीक्रॉपिंग और इंटीग्रेटेड फार्मिंग मॉडल पर भी काम करते हैं। वे तालाब खुदवाने के साथ ही गाय भी पालते हैं। इससे गाय को चारा मिल जाता है और खेत के लिए उसके गोबर का इस्तेमाल कर लिया जाता है। एक फायदा यह भी है कि अगर किन्हीं कारणों से कोई फसल खराब हो गई तो दूसरी फसल उस नुकसान की भरपाई कर देगी। साभार-दैनिक भास्कर

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