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गीता कुमारी (बदला हुआ नाम) दो महीनों से पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अपने पैतृक गांव में, चाचा के साथ रह रही है. इससे पहले वो सिंध के एक दूसरे शहर, हैदाराबाद में अपने घर में रहती थीं.
गीता को यहां भेजा गया है ताकि वो सुरक्षित महसूस कर सकें और अपने दर्द से उबर सकें. गीता का दावा है कि दो साल तक उन्हें अग़वा कर क़ैद में रखा गया था.
उनके घूंघट से गीता का चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था. उन्होंने काले रंग की एक कमीज़ पहन रखी थी जिस पर फूल बने थे. उनकी चाल तेज़ थी लेकिन बोलने वक्त वो थोड़ा अटक रहीं थीं.
गीता का दावा है कि उन्हें एक मुसलमान रिक्शा ड्राइवर ने क़रीब तीन साल पहले अगवा कर लिया था, जब वो अपने काम पर जा रहीं थीं. उन्हें बेहोशी की दवाइयां दी गईं और बेहोशी की हालत में ही कुछ कागज़ात पर उनके अंगूठे के निशान लिए गए.
वो बताती हैं, “रिक्शे में दो लोग थे जिन्होंने मुझे गोलियां दीं, मुझे नहीं पता उसने मुझसे शादी की या नहीं लेकिन बाद में जब मुझे होश आया तो उसने मेरे परिवार को मारने की धमकी दी और मुझपर अपने समर्थन में बयान देने के लिए कहा.”
“मैं डरी हुई थी इसलिए मैंने कोर्ट में वैसा ही बताया जैसा उसने कहा था, मैंने इस्लाम कबूल नहीं किया है. मुझे कलमा भी नहीं आता, फिर इस्लाम को अपनाने की बात कैसे सच हो सकती है.”
गीता को वहां से भागने में दो साल लगे. वे उस जगह को अपहरणकर्ता की जेल बताती हैं. उस व्यक्ति ने बाद में खुद को गीता का पति बताते हुए कस्टडी की मांग की, लेकिन हैदराबाद (सिंध) की कोर्ट ने कस्टडी गीता के माता-पिता को दी.
पाकिस्तान में लड़कियों, ख़ासकर हिंदू और ईसाईयों के जबरन धर्म परिवर्तन के कई कथित मामले सामने आए हैं. इसे लेकर पिछले एक दशक से दुनियाभर के मानवाधिकार संगठन पाकिस्तान की निंदा कर रहे हैं.
जबरन धर्म परिवर्तन कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है, इसका सटीक डेटा उपलब्ध नहीं है लेकिन लाहौर के सेंटर फ़ॉर सोशल जस्टिस (सीएसजे) के मुताबिक उनके पास कथित धर्म परिवर्तन और अल्पसंख्यक समुदाय की बच्चियों के साथ अपराध से जुड़े 246 केसों की जानकारी है.
सीएजे के पीटर जैकब समेत कई सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि ये आंकड़े हक़ीक़त के आसपास भी नहीं है और ज़्यादातर मामले सामने नहीं आते. यही नहीं, धर्म परिवर्तन करने के तरीकों सेपाकिस्तान के वो हिंदू जो रखते हैं रोज़ा ये साबित करना मुश्किल होता है ये ज़बरदस्ती या गैरक़ानूनी तरीके से कराए गए हैं या रज़ामंदी से.
पीटर का कहना है कि अल्पसंख्यक समुदायों की ज्यादातर कम उम्र की लड़कियों को प्रलोभन देकर या ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है. कम आय वाले परिवार से आने वाली अधिकांश लड़कियां इसका शिकार होती हैं. और जब उन्हें अदालत में पेश किया जाता है, वो आमतौर पर वो मुस्लिम मर्दों से घिरी होती हैं.
इसलिए वो उनके ख़िलाफ़ बयान नहीं देतीं. अपने परिवार में वापस जाने का फ़ैसला करने का मतलब है धर्मत्याग और पाकिस्तानी समाज में धर्मत्याग करने का मतलब अपनी जान को जोखिम में डालना है.
रॉबिन डेनियल राष्ट्रीय अल्पसंख्यक गठबंधन के लिए काम करते हैं. वह विभिन्न ईसाई परिवारों की मदद कर रहे हैं जो अदालतों में अपनी लड़कियों के कथित अनैतिक धर्मांतरण को लेकर लड़ाई लड़ रहे हैं.
रॉबिन मानते हैं कि पूरा सिस्टम ही अल्पसंख्यक लड़कियों के ख़िलाफ़ है. क़ानून में कई खामियां हैं जिसका फ़ायदा उठाकर जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है और अपराधी बच जाते हैं.
वो कहते हैं, “अपहरणकर्ता के चंगुल के निकलने के बाद लड़की की कस्टडी को लेकर क़ानून कुछ नहीं कहता. हमारी लड़कियों को अक्सर शेल्टर होम में भेज दिया जाता है.”
“जब कोई चोरी की गाड़ी पकड़ी जाती है, तब भी उसके मालिक की तलाश की जाती है और उसे उसके सही मालिक को सौंप दिया जाता है, लेकिन ये कानून का सिस्टम ऐसा है कि बच्चियां जिन्हें जबरन इस्लाम कबूल करवाया जाता है, उन्हें शेल्टर होम भेज दिया जाता है.”
“अगर लड़की बालिग है और उसने अपनी मर्ज़ी से धर्म नहीं बदला है, तो उसे बाकी की ज़िदगी के लिए अपने परिवार से मिलने क्यों नहीं दिया जा सकता.”
सामाजिक कार्यकर्ता पीटर जेकब मानते हैं कि ज्यादातर धर्म परिवर्तन, धर्म के नाम पर अपराध को अंजाम देने लिए किए जाते हैं, इनका धर्म से कोई लेना देना नहीं है.
वो कहते हैं,”अगर किसी इलाके में धर्म परिवर्तन होता है, तो अपराधी लड़की को उस इलाके की सीमा के बाहर के किसी थाने में ले जाते हैं, या उस लड़की को किसी दूसरे शहर या राज्य के कोर्ट में पेश करते हैं. इससे क्या समझ में आता है. अगर जन्म प्रमाण पत्र और शादी के सर्टिफ़िकेट के साथ छेड़छाड़ की जा रही है तो ये अपराध नहीं तो क्या है?”
पीटर कहते हैं, “हर धर्म और कानून पुरुषों और महिलाओं को अपनी मर्ज़ी से शादी करने की इजाज़त देता है. लोग किसी धर्म को अपना या छोड़ सकते हैं, इस पर कोई रोकटोक नहीं होनी चाहिए. लेकिन अगर ऐसा किसी आपत्तिजनक स्थिति में, दबाव में या उन लड़कियों के साथ जिसकी उम्र कम है, हो रहा है, तो ये अनैतिक है और इसपर सवाल उठने चाहिए.”
धार्मिक संस्थाओं का कनेक्शन
क़रीब क़रीब सारे धर्म परिवर्तन के मामले सिंध और पंजाब प्रांत से सामने आ रहे हैं. सिंध में ज़्यादातर लड़कियां हिंदू परिवार की होती हैं और पंजाब में ईसाइयों के मामले ज़्यादा है.
सिंध के दूर दराज़ के इलाकों में धार्मिक संस्थाएं दावा करती हैं कि उन्होंने सैकड़ों हिंदू महिलाओं को इस्लाम कबूल करवाया है. इनमें से ज़्यादातर लड़कियां भील, मेघवार और कोहली जैसी छोटी जातियों से आती हैं. अल्पसंख्यकों के अधिकार के लिए काम करने वाले संगठन और हिंदू समुदाय का दावा है कि धर्म परिवर्तन जबरन किया जा रहा है या उन लड़कियों का किया जाता है तो मुस्लिम युवकों के साथ चली जाती हैं.
इन धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों पर कानूनी प्रक्रिया से छेड़छाड़ के आरोप लगते रहे हैं. हालांकि ये धार्मिक संस्थाएं ऐसे आरोपों से इनकार करती रहीं हैं.
सिंध प्रांत के देहरकी के भारचंडी दरगाह के पीर मियां अब्दुल ख़ालिक़ (मियां मिट्ठू) उन लड़कियो के धर्म परिवर्तन के आरोपों से इनकार करते हैं जो किसी मुस्लिम युवक के साथ भाग जाती हैं. वो कहते हैं, “हमारे धर्म में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की मनाही है.”
“क्या मैं काफ़िर हूं, क्या जो पैगंबर ने कहा है, मैं उसके ख़िलाफ जा सकता हूं. अगर मैं उनके ख़िलाफ़ जाता हूं, तो मैं मुस्लिम कहलाने लायक नहीं हूं, मुझे इस्लाम से बाहर कर दिया जाएगा.”
इन धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों पर कानूनी प्रक्रिया से छेड़छाड़ के आरोप लगते रहे हैं. हालांकि ये धार्मिक संस्थाएं ऐसे आरोपों से इनकार करती रहीं हैं.
सिंध प्रांत के देहरकी के भारचंडी दरगाह के पीर मियां अब्दुल ख़ालिक़ (मियां मिट्ठू) उन लड़कियो के धर्म परिवर्तन के आरोपों से इनकार करते हैं जो किसी मुस्लिम युवक के साथ भाग जाती हैं. वो कहते हैं, “हमारे धर्म में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की मनाही है.”
“क्या मैं काफ़िर हूं, क्या जो पैगंबर ने कहा है, मैं उसके ख़िलाफ जा सकता हूं. अगर मैं उनके ख़िलाफ़ जाता हूं, तो मैं मुस्लिम कहलाने लायक नहीं हूं, मुझे इस्लाम से बाहर कर दिया जाएगा.”
उनका दावा है कि वो सिर्फ़ उन लड़कियों का धर्म परिवर्तन करते हैं, जो खुशी से इस्लाम कबूल करती हैं, और ऐसा करना उनकी धार्मिक ज़िम्मेदारी है. उनका कोई निहित स्वार्थ नहीं है.
“मैं अल्लाह को खुश करने के लिए काम करता हूं, हम अपनी जेब से हज़ारों रुपये ख़र्च करते हैं. एक परिवार ने मुझे लाइव टीवी पर नौ करोड़ रूपये ऑफर दिए एक लड़की के बदले (जो इस्लाम कबूल करना चाहती थी), मैंने ये कह कर मना किया कि कितने भी पैसे दे दो, मैं नहीं लूंगा, हमारा धर्म बिकाऊ नहीं है.”
समाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि धर्म परिवर्तन दबाव में या लालच देकर किया गया है या लड़की की मर्ज़ी से, ये साबित करना मुश्किल होता है, कोर्ट में तो ये और भी मुश्किल होता है.
ऐसे मामलों में सामाजिक और राजनीतिक फ़ैक्टर महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कई बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि वो अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और देश में सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं. पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धर्म परिवर्तन के लग रहे आरोपों को नकारा है. उनका कहना है ऐसा पाकिस्तान की छवि ख़राब करने के लिए भारत के फैलाए जा रहे प्रोपोगैंडा के कारण हो रहा है.
लेकिन जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के कई कथित मामलों के मीडिया में आने के बावजूद सरकार की तरफ़ से इसे लेकर कोई डेटाबेस नहीं बनाया गया है जिससे इसकी व्यापकता का पता चल सके.
मानवाधिकार मामलों के संसदीय़ सेक्रेटरी लाल चंद माल्ही कहते हैं कि ऐसे मामलों का डेटाबेस बनाना राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है.
“मुझे ये पता है कि बलूचिस्तान, ख़ैबर पख्तूनख़्वाह, गिलगित बल्तिस्तान और कश्मीर में ऐसे मामले नहीं हैं, ये सिर्फ सिंध और पंजाब में हैं. इसलिए सवाल उठता है कि इन राज्यों की सरकार ये पक्का करने के लिए क्या कदम उठा रही हैं कि गैरकानूनी धर्मांतरण न हो?”
उनका कहना है कि कमेटी में इस बात को लेकर सहमति है कि धर्मांतरण किसी वयस्क का अधिकार है, लेकिन कम उम्र के लोगों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए और इसके धर्मांतरण के लिए एक सरकारी तंत्र होना चाहिए और इसी के तहत हुए धर्मांतरण को वैधता मिलनी चाहिए. दूसरे लोगों या संस्थाओं को धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार नहीं होना चाहिए.
माल्ही को उम्मीद है जल्द ही ये बिल पास होकर कानून की शक्ल लेगा. उन्होंने ये भी माना है कि अगर यह प्रयास विफल रहता है तो पाकिस्तान में हिंदू समुदाय के लिए मुश्किलें होंगी. उन्होंने यह भी कहा कि कमेटी ने देश में धर्म परिवर्तन के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष करने की सिफ़ारिश की है.
पहले भी कानून बनाने की हुई है कोशिश
पहले भी सिंध विधानसभा ने धर्मांतरण के लिए न्यूनतम आयु पर कानून बनाने की कोशिश की थी, लेकिन इसे कट्टरपंथियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा.
2016 में, सर्वसम्मति से बिल पारित किया लेकिन धार्मिक समूहों ने इसे गैर-इस्लामिक बताते हुए धर्मांतरण की आयु सीमा पर आपत्ति जताई और राज्यपाल को विधेयक पर हस्ताक्षर करने से रोकने के लिए विधानसभा को घेरने की धमकी दी.
2019 में, अल्पसंख्यक संरक्षण विधेयक का एक संशोधित संस्करण सिंध विधानसभा में एक हिंदू सदस्य नंद कुमार द्वारा पेश किया गया था. फिर से, धार्मिक और राजनीतिक दलों ने विरोध प्रदर्शन किया, यह तर्क देते हुए कि सरकार अल्पसंख्यकों की रक्षा के नाम पर उन लोगों के लिए अवरोध पैदा कर रही है जो धर्म परिवर्तन की इच्छा रखते हैं.
लाल माल्ही, जो खुद एक सिंधी हिंदू हैं, कहते हैं कि धर्मांतरण के लिए न्यूनतम आयु का कानून बनाना एक आदर्श समाधान है, लेकिन उन्हें यह भी डर है कि इसमें बाधाएं आएंगी.
“अतीत को देखते हुए, मैं केवल यह कह सकता हूं कि कुछ नहीं से कुछ बेहतर होगा, इसलिए भले ही हमें वह समाधान न मिले जिसकी हम उम्मीद कर रहे हैं, प्रस्तावित कानून कम उम्र की अल्पसंख्यक लड़कियों के अपहरण को रोकने के लिए के लिए एक तंत्र तो स्थापित करेगा.”
मानवाधिकार के संसदीय सचिव का कहना है कि जबरन धर्मांतरण के मामलों को कम रिपोर्ट किया जाता है और न्याय पाने की प्रक्रिया इतनी महंगी है कि पाकिस्तान में आमतौर पर गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अधिकांश हिंदू और ईसाई परिवार इसका खर्च नहीं कर सकते.
सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के निदेशक पीटर जैकब का कहना है कि इस मुद्दे पर न्यायिक और जांच अधिकारियों को संवेदनशील बनाने की जरूरत है.
“नागरिकता में असमानता सालों से चली आ रहीं नीतियों का नतीजा है, यही अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का कारण है. बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों के बीच सामाजिक. राजनीतिक और आर्थिक असामनता तो कम करने की जरूरत है, नहीं तो देश अगले कुछ दशकों में अपनी धार्मिक विविधता पूरी तरह से खो देगा.” साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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