धर्मांंतरण मामले में गिरफ्तार मौलाना जहांगीर और मौलाना उमर गौतम। (बाएं से)
धर्मांतरण के मामले में गिरफ्तार उमर गौतम और जहांगीर आलम से यूपी ATS लगातार पूछताछ कर रही है। इस बीच बड़ा खुलासा हुआ है कि दोनों ऐसे लोगों को टारगेट करते थे, जिनके धर्म परिवर्तन पर कोई विरोध न करे। यदि विरोध की आशंका रहती थी तो चोरी-छिपे उनका धर्मांतरण करा दिया जाता था। फिर उन्हें घर से ही इबादत और नमाज पढ़ने की सलाह दी जाती थी।
देश के 24 राज्यों में उमर का नेटवर्क होने का दावा किया जा रहा है। उसके द्वारा बताए गए पतों पर छापेमारी को लेकर यूपी पुलिस संबंधित राज्य की पुलिस के साथ जानकारी साझा कर रही है। ATS के सूत्रों ने मुताबिक फंडिंग को लेकर उमर ने कुछ अहम जानकारी दी है, जिसकी छानबीन की जा रही है। साथ ही उन संस्थाओं की भी पड़ताल की जा रही है, जिससे उमर किसी न किसी रूप में जुड़ा रहा है। ATS के 10 सवाल और मौलानाओं के जवाब को दैनिक भास्कर अपने पाठकों से साझा कर रहा है…
धर्म परिवर्तन के लिए क्या कराते थे? या क्या रास्ता चुनते थे?
धर्म परिवर्तन करने की कोई आधिकारिक प्रक्रिया तो नहीं है। ज्यादातर जगह लोकल लेवल पर मस्जिदें इसका इंतजाम करती हैं। अगर कोई इस्लाम स्वीकार करने की इच्छा जताता है, तो उसे कलमा पढ़ाया जाता है। मस्जिद का मौलवी नमाज़ और अज़ान से जुड़ी तकनीकी बातों की जानकारी देता है।
अगर कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति है तो उसे कैसे तैयार करते हो?
सबसे पहले धर्म को बदलने का एक एफिडेविट बनवाना होता है। उसके बाद उसका विज्ञापन पेपर में देना होगा। फिर उसको संस्था के पते पर इस्लाम कबूलवाया जाता है।
जैसा वीडियो में तुमने कहा था? इससे क्या फायदा होता है ? (उमर गौतम का कबूलनामा वीडियो पर)
विज्ञापन देखकर जब बड़े पैमाने पर पढ़े लिखे लोगों को ये मालूम होता है कि, ऐसे लोग भी इस्लाम कबूल रहे है तो उनकी जिज्ञासा बढ़ती है। वो पेपर में पढ़ते है कि, जो बात उनको कही जा रही है वो सच है तो उनका इस्लाम के प्रति रुझान बढ़ता है।
इस्लाम कबूलने की बातें अब जल्दी लीक आउट क्यों नहीं होती हैं?
पहले कोई इस्लाम स्वीकार करता था, तो उसके धर्म स्वीकार करने की जानकारी मौलवी मस्जिद में तकरीर में बाकायदा इसकी घोषणा करके देते थे। इससे वह औपचारिक तरीके से मुस्लिम समाज का हिस्सा बन जाता था। अब विवाद के डर से लोग मस्जिद जाने को तैयार नहीं होते। इस्लाम कबूल करने के लिए ऐसा जरूरी नहीं है कि, मस्जिद जाया ही जाए। घर पर रहकर भी इबादत की जा सकती है। अब लोगों का घर बैठे ही धर्म परिवर्तन करवा दिया जाता है।
इस्लाम जबरन कबूलवाया जाता है या मर्ज़ी से? पहले कौन सा तरीका अपनाया जाता है?
विश्वास में लेकर धर्म परिवर्तन करया जाता है। स्वेच्छा से होने वाला सक्रिय धर्मांतरण हमारा पहला मकसद होता है।
धर्म परिवर्तन कराने से पहले क्या माहौल पैदा करते हो?
पहले दिव्यांगों को इशारों से समझाया जाता है। उनकी खूब देखभाल की जाती है। फिर उनका धर्मांतरण किया जाता है। जो लोग सामान्य होते हैं, पढ़े-लिखे होते हैं उन्हें इस्लामिक किताबें दी जाती है। उन्हें रोज़ाना लेक्चर सुनाए जाते हैं- इस्लाम धर्म के बारे में ताकि, वो उससे प्रेरित हो सकें।
सबसे पहले किसे टारगेट करके धर्मांतरण कराया जाता है?
जो विरोध करने की स्थिति में नहीं होते हैं, उन्हें पहले टारगेट किया जाता है। जैसे मूक बधिर या दिव्यांग। इसके बाद बहुत गरीब तबके के लोगों को टारगेट किया जाता है। देशभर में नेटवर्क फैला कर ऐसे लोगों की सूची बनाई जाती है।
क्या मदरसे भी इसमें शामिल होते हैं?
संस्थानों को जोड़ा जाता है। (मदरसों पर कोई जवाब नहीं दिया)
क्या लोग आसानी से धर्मांतरण के लिए राजी हो जाते हैं?
हमलोग छात्रों को मुफ्त में शिक्षा देते हैं। उनके खाने पीने और रहने की व्यवस्था करते हैं। जिन बच्चों ने ये सुविधाएं कभी नहीं देखी उनको ये सब चीज़ें मुहैया करा दी जाती हैं तो, उनके साथ-साथ उनका परिवार भी हमसे जुड़ जाता है। इसी तरह एक चेन बन जाती है।
धर्मांतरण के लिए फंड कैसे आता है?
नेक काम के लिए दुनिया भर में बहुत मददगार हाथ बढ़ाने वाले हैं।साभार-दैनिक भास्कर
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