उसकी स्क्रीन की जांच संक्रमण का सही अनुमान (mobile screen testing for Covid-19 infection) दे सकती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक ये एक किफायती तरीका होगा, जो RTPCR की तरह सही नतीजे देगा.
कोरोना वायरस (coronavirus) का खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है, बल्कि वायरस का नया रूप आ चुका है, जो कई देशों में ज्यादा घातक माना जा रहा है. यानी वैक्सीन लगवाने भर से काम नहीं चलेगा, बल्कि खतरों के लिए हमें अलर्ट रहना होगा. चूंकि मोबाइल फोन (corona test through mobile phone screen) दिनभर हमारे हाथों में रहता है इसलिए उससे भी पता लग सकता है कि क्या हम कोरोना संक्रमित हैं. इसके लिए हेल्थकेयर वर्करों को हमारी नाक या मुंह में स्वाब डालकर जांच करने की जरूरत नहीं. स्क्रीन की जांच ही हमारे संक्रमण का भी हाल बता देगी.
फोन स्क्रीन टेस्टिंग
फोन संक्रमित है तो जाहिर तौर पर जिसके हाथ में वो है, उसका भी संक्रमित होना तय है. ऐसे में नाक-मुंह में स्वाब डालने की बजाए सीधे फोन की स्क्रीन जांची जा रही है. इस तरीके को फोन स्क्रीन टेस्टिंग (PoST) कहा जा रहा है. इंडियन एक्सप्रेस में विज्ञान पत्रिका ईलाइफ में छपी रिपोर्ट के हवाले से ये जानकारी दी गई. कथित तौर पर ये एकदम नया और किफायती तरीका है, जो RTPCR की तरह सही नतीजे देता है.
हवा से फैलता है संक्रमण?
जब लोग खांसते-छींकते हैं तो नाक या मुंह से निकलने वाले पानी के बेहद सूक्ष्म ड्रॉपलेट हवा में फैल जाते हैं. हवा से होते हुए ये जमीन या आसपास ही हर चीज पर फैलते हैं. अगर कोई कोरोना संक्रमित है तो उसके मामले में भी यही होगा. अगर उसे छींक न भी आए तो हल्की-फुल्की खांसी या फिर जोर से बोलने से भी हवा में बूंदें फैलती हैं. अब तक कई स्टडी में इसकी पुष्टि हो चुकी है कि संक्रमित के आसपास की सतह भी वायरस लिए होती है.
स्मार्टफोन ही क्यों?
स्मार्टफोन निजी चीज है, जो हमेशा मरीज के मुंह के पास होता है. इससे स्क्रीन पर वायरस जमा होते जाते हैं. वैज्ञानिकों ने इसी बात को ध्यान में रखकर स्टडी की. इसमें बात में सच्चाई पाई गई. यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में हुई इस स्टडी में स्क्रीन की जांच से कोरोना निगेटिव या पॉजिटिव होने को देखा गया. फोन स्क्रीन टेस्टिंग में मोबाइल फोन से सैंपल लेकर उसे सलाइन वॉटर में रखा जाता है. इसके बाद सैंपल को सामान्य पीसीआर की टेस्ट जांचा जाता है. ये प्रक्रिया वैसी ही है, जैसे नाक या मुंह से स्वाब लेने पर होता है.
इस तरह हुआ टेस्ट
कुल 540 लोगों पर हुई इस स्टडी में ध्यान दिया गया कि सभी की मोबाइल स्क्रीन जांच के अलावा रेगुलर RTPCR भी हो. इससे ये तय हो सकता था कि जो RTPCR में पॉजिटिव या निगेटिव होता है, उसकी फोन स्क्रीन क्या बताती है. दोनों ही जांचें दो अलग लैब में हुईं ताकि एक के रिजल्ट की जानकारी दूसरी लैब को न हो.
फोन स्क्रीन टेस्टिंग की एक्युरेसी काफी ज्यादा
जिन लोगों में वायरल लोड ज्यादा था, उनकी स्क्रीन की जांच का नतीजा लगभग 100% तक सही रहा. वहीं कम वायरल लोड में ये 81.3% दिखा. इसके अलावा जो लोग निगेटिव थे, उनके मामले में इसका रिजल्ट लगभग 98.8% तक सही रहा. अब वैज्ञानिक मान रहे हैं कि बड़े पैमाने पर मोबाइल स्क्रीन टेस्ट से संक्रमण का जल्द पता लगाया जा सकता है, जिससे इसपर कंट्रोल पाने में मदद मिलेगी. मोबाइल स्क्रीन टेस्टिंग के लिए एक मशीन भी तैयार हो रही है, जो इसी रिसर्च पर काम करेगी.
कितना खतरा है सतह से इंफेक्शन का
इसे लेकर लगातार रिसर्च हो रही है. सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) मानता है कि संक्रमित सतह से बीमारी एक से दूसरे में जा सकती है लेकिन इसकी आशंका काफी कम होती है. इसे और साफ करते हुए CDC बताता है कि जिस जगह पर संक्रमित व्यक्ति के जरिए वारयस पहुंचा है, उसे छूने पर स्वस्थ व्यक्ति बीमार हो जाए, ऐसा केवल 10000 में से 1 मामले में हो सकता है.
किस सतह पर कितनी देर टिकता है वायरस
याद करें कि जब कोरोना की शुरुआत हुई थी तो वैज्ञानिकों ने माना था कि सतह से कोरोना उसी तरह फैलता है, जैसे हवा से फैलता है. शुरुआती रिसर्च में इसी तरह की बातें निकलकर आई भी थीं. दावा किया गया कि सतह, खासकर प्लास्टिक और स्टील पर वायरस कई दिनों तक जीवित रह सकता है. इसके तुरंत बाद ही CDC ने चेतावनी जारी की और सावधान किया कि संक्रमित सतह को छूने के बाद आंखों, नाक और कान को छूना संक्रमण का खतरा बढ़ाता है. बाद में साफ हुआ कि संक्रमण का खतरा हवा से ही ज्यादा है, न कि सतह से. साभार- न्यूज़18
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