लैंडलॉक वाली भौगोलिक स्थिति वाहन का धुंआ बिजली उत्पादन भारी उद्योग लघु उद्योग ईंट भट्ठे निर्माण गतिविधियों के कारण सड़कों पर जमी धूल खुले में कचरा जलाना और डीजल जेनरेटर सेट दिल्ली में प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। फसल के मौसम में पराली की आग जलती है।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारत में प्रदूषण की स्थिति दिन-ब-दिन विकराल होती जा रही है। मेट्रो शहरों में तो प्रदूषण की स्थिति और भयावह है, खासकर दिल्ली में। इसका सबसे बड़ा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। यूमास (द मेसाचुएट्स अंडर ग्रेजुएट जर्नल ऑफ इकोनॉमी) की रिपोर्ट के मुताबिक, एक ओर पार्टिकुलेट मैटर की हवा की मौजूदगी से पर्यावरण प्रभावित हो रहा है, तो दूसरी तरफ इससे लोगों की औसत आय़ु में कमी आ रही है। तीसरा, इस समस्या को सुलझाने का बोझ शहर की इकोनॉमी पर पड़ रहा है। इस रिपोर्ट में दिल्ली के वायु प्रदूषण के कारणों और उसके संभावित समाधानों के बारे में भी बताया गया है और इसे अरपन चटर्जी ने तैयार किया है। इस रिपोर्ट को तैयार करने में सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी की क्लाइमेट एंड एनर्जी की एसोसिएट फेलो और लीड अपर्णा रॉय का भी सहयोग मिला है।
शोधकर्ता अरपन चटर्जी के मुताबिक, वायु प्रदूषण और इसके नकारात्मक परिणाम के बावजूद इसे रोकने की भारत की नीति कमजोर है। यह शोधपत्र नीति और रूपरेखा बनाने में जो कमियां हैं, उनकी पहचान करता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि दिल्ली में वायु गुणवत्ता में सुधार लाने वाले अधिक केंद्रित लक्ष्य बनाने की जरूरत है।
दिल्ली में प्रदूषण के ये हैं कारण
लैंडलॉक वाली भौगोलिक स्थिति, वाहन का धुंआ, बिजली उत्पादन, भारी उद्योग, लघु उद्योग, ईंट भट्ठे, निर्माण गतिविधियों के कारण सड़कों पर जमी धूल, खुले में कचरा जलाना और डीजल जेनरेटर सेट दिल्ली में प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। फसल के मौसम के दौरान आसपास के इलाकों में धूल भरी आंधी, जंगल की आग, और पराली की आग जलती है। एक आंकड़े के मुताबिक, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में हर साल 39 मिलियन टन पराली जलती है। 3,182 उद्योग दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में स्थित हैं। दिल्ली के प्रदूषण में औद्योगिक प्रदूषण की हिस्सेदारी 18.6 प्रतिशत और वाहनों के उत्सर्जन की 41 फीसद है। पिछले दो दशक में दिल्ली में जनसंख्या और वाहन की संख्या (10.9 मिलियन, 2018 का आंकड़ा) काफी बढ़ी है। इस प्रदूषण के चलते ही हर साल दिल्ली में लोगों को हफ्तों तक स्मॉग वाली हवा में सांस लेनी पड़ती है।
कोरोना काल में कम हुआ प्रदूषण
2019 में जहां देश में पीएम 2.5 औसतन 58.1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, वहीं दिल्ली में इसकी सघनता 98.1 प्रति क्यूबिक मीटर थी। हालांकि, पिछले साल लॉकडाउन के वक्त प्रदूषण में काफी कमी आई थी, लेकिन अनलॉक होते ही प्रदूषण भी बढ़ गया। कोरोना आपदा के शुरुआती कुछ माह में गैर-जरूरी मूवमेंट पर रोक लगाई गई, जिसके परिणामस्वरूप प्रदूषण के स्तर में कमी आई। इसकी वजह से नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के 2024 के लक्ष्य को 74 दिनों में पूरा कर लिया गया। ट्रांसपोर्ट, निर्माण और इंडस्ट्रियल सेक्टर का काम बंद था, जिससे भी प्रदूषण में कमी आई। गौर करने वाली बात यह है कि यह आपदा सिर्फ एक बार की नहीं है, इसके लिए समुचित दीर्घकालिक कदम उठाने होंगे।
प्रदूषण रोकने के लिए जरूरी कदम
शोधकर्ता अरपन चटर्जी के मुताबिक, दिल्ली की तरह ही पूरे एनसीआर में डीजल जेनरेटर सेट पर रोक लगानी होगी। बस और मेट्रो की फ्रीक्वेंसी और बढ़ानी होगी। दिल्ली के आसपास के इलाकों में कोल पॉवर प्लांट पर रोक जरूरी है। दिल्ली में अब भी ज्यादा ट्रकों की एंट्री हो रही है, जबकि सिर्फ अतिआवश्यक वस्तुओं के लिए ट्रकों की इजाजत होनी चाहिए। ऑड-ईवन फार्मूला पूरे एनसीआर में लागू करना चाहिए और इसमें मिलने वाली छूट भी कम होनी चाहिए। उद्योग और वाहनों के उत्सर्जन के मानकों को कठोरता से लागू कराना होगा। इनके अलावा, भारत स्टेज-6 के वाहन, आसपास की इंडस्ट्री, क्रॉप बर्निंग पर रोक आदि को सख्ती से लागू किए जाने की आवश्यकता है। स्थायी और हरित इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए जाने की भी आवश्यकता है। इसके साथ ही सार्वजनिक परिवहन को भी बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है, जिससे सड़कों पर गाड़ी के बोझ को कम किया जा सके।
रिपोर्ट में दिया इन स्टडी का हवाला
आईक्यूएयर एयरविजुअल 2019 वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट कहती है कि सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले दुनिया के 30 शहरों में 21 भारत के हैं। यही नहीं, दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में टॉप-10 में 6 भारतीय शहर शामिल हैं। इनके अतिरिक्त शीर्ष 30 प्रदूषित शहरों में लखनऊ, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, बागपत, जिंद, फरीदाबाद, कोरट, भिवाड़ी, पटना, पलवल, मुजफ्फरपुर, हिसार, कुटेल, जोधपुर और मुरादाबाद भी शामिल हैं। सिर्फ जीवाश्म ईंधन से जो वायु प्रदूषण होता है, उससे देश को 10,700 अरब रुपये की चपत लगती है। जो देश के वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद का 5.4 प्रतिशत है। वहीं, इससे 10 लाख मौत और 9.8 लाख नवजातों का प्री-बर्थ होता है।
सही योजनाओं से कम हो जाएगा प्रदूषण
एक फरवरी, 2020 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में शहरों की हवा साफ करने के लिए 4,400 करोड़ रुपये के बजट का एलान किया। इस फंड को आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को 46 शहरों को दिया जा रहा है। दिल्ली सरकार ने 7 अगस्त, 2020 को दिल्ली इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी लागू की थी। इसमें इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु कई तरह के प्रबंध किए गए थे। अगर सरकारी नीतियां इलेक्ट्रिक व्हीकल की खरीद में 2024 तक अपना 25 फीसद लक्ष्य पूरा कर लेती है तो विभिन्न तरह के करीब 5,00,000 इलेक्ट्रिक व्हीकल सड़कों पर होंगे।
इससे दिल्ली में करीब 159 टन पीएम 2.5 और 4.8 मिलियन टन कॉर्बन डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आएगी। इससे करीब एक लाख पेट्रोल कारों द्वारा पूरे जीवन भर के कॉर्बन डाइ-ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आएगी।
शिकागो यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट ने भी चौंकाया
प्रदूषण की वजह से भारत में आदमी की औसत आयु में 5.2 वर्ष (डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुरूप) और राष्ट्रीय मानकों के अनुसार 2.3 वर्ष कम हो रही है। यह खुलासा शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 1.4 बिलियन आबादी ऐसी जगहों पर रहती है, जहां पर्टिकुलेट प्रदूषण का औसत स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों से अधिक है, जबकि 84 फीसदी लोग ऐसी जगहों पर रहते हैं, जहां प्रदूषण का स्तर भारत द्वारा तय मानकों से अधिक है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 1998 से 2018 तक भारत के प्रदूषण में 42 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। भारत की राजधानी दिल्ली में भी प्रदूषण का स्तर खतरनाक है। ऐसे में अगर यही स्तर जारी रहा तो औसतन 9.4 साल आयु कम हो जाएगी।
पर्टिकुलेट मैटर
पर्टिकुलेट मैटर या कण प्रदूषण वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से भी नहीं देख सकते हैं। कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है। कण प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल हैं, जो बहुत खतरनाक होते हैं। पर्टिकुलेट मैटर विभिन्न आकारों के होते हैं और ये मानव और प्राकृतिक दोनों स्रोतों के कारण से हो सकते हैं। इनके स्रोत प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों हो सकते हैं। प्राइमरी स्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआं शामिल हैं। प्रदूषण का सेकेंडरी स्रोत सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया है। ये कण हवा में मिश्रित हो जाते हैं और इसको प्रदूषित करते हैं। इनके अलावा, जंगल की आग, लकड़ी के जलने वाले स्टोव, उद्योग का धुआं, निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल वायु प्रदूषण आदि स्रोत हैं। ये कण आपके फेफड़ों में चले जाते हैं, जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पड़ सकते हैं। उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है। साभार-दैनिक जागरण
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