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कोविड से रिकवर होने के तीन महीने बाद भी कई लोग थकान, बुखार, सिरदर्द और गंध न आने की शिकायत कर रहे हैं। सबसे आम शिकायत है थकान। दिमागी बीमारियां भी लोगों को परेशान कर रही हैं। इस वजह से मेडिकल प्रैक्टिशनर्स और रिसर्चर्स ने इस पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है। स्वास्थ्य विभाग भी चिंतित है कि कुछ लोगों के लक्षण इन्फेक्शन खत्म होने के बाद भी खत्म क्यों नहीं हो रहे? यह भी पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि आखिर यह लक्षण कितने दिनों तक परेशान कर सकते हैं?
डॉक्टर और मेडिकल रिसर्च से जुड़े लोग इस समस्या को लॉन्ग कोविड कह रहे हैं। यह क्या होता है और इसके लक्षण व इलाज क्या हैं, यह जानने के लिए हमने मुंबई के जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के कंसल्टेंट, रेस्पिरेटरी मेडिसिन और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. राहुल बाहोत से बात की। आइए समझते हैं लॉन्ग कोविड के बारे में…
लॉन्ग कोविड क्या है?
लंदन की एलिसा पेरेगो ने पिछले साल कोविड-19 वायरस के शुरुआती इन्फेक्शन से रिकवरी के बाद भी कायम रहने वाले लक्षणों के लिए पहली बार लॉन्ग कोविड शब्द का इस्तेमाल किया था। यह लक्षण कुछ हफ्तों या महीनों बाद तक भी रह सकते हैं। यानी भले ही शरीर से वायरस निकल गया हो, उसके लक्षण खत्म नहीं होते। कुछ लक्षण ऐसे हैं जो जाते नहीं बल्कि बने रहते हैं। वहीं कुछ लक्षण ऐसे हैं जो थोड़े-थोड़े दिन में फिर दिखते हैं। ज्यादातर मरीजों में कोविड-19 RT-PCR टेस्ट रिजल्ट नेगेटिव आना बताता है कि माइक्रोबायोलॉजिकल तौर पर शरीर ने रिकवर कर लिया है। पर क्लीनिकल लक्षण खत्म नहीं हुए हैं। इस आधार पर लॉन्ग कोविड को हम शरीर से वायरस के खत्म होने से लक्षण खत्म होने तक लगने वाला समय कह सकते हैं।
लॉन्ग कोविड के दो स्टेज हैं-
स्टेज-1: पोस्ट एक्यूट कोविडः लक्षण 3 से 12 हफ्ते तक बने रहते हैं
स्टेज-2: क्रॉनिक कोविडः 12 हफ्ते बाद भी लक्षण बने रहते हैं
लॉन्ग कोविड के लक्षण क्या हैं?
इटली के अस्पताल में भर्ती 143 लोगों पर एक स्टडी की गई। पता चला कि 87.4% मरीजों ने शिकायत की कि उनमें कम से कम एक लक्षण कायम रहा। थकान सबसे आम लक्षण था। खांसी, स्किन पर रैशेज, धड़कन का तेज होना, सिरदर्द, डायरिया और ‘पिन्स एंड नीडिल्स’ सेंसेशन अन्य लक्षण हैं जो अब तक रिपोर्ट हुए हैं। कोविड सिम्प्टम स्टडी ऐप पर शेयर किए गए लक्षणों को दो ग्रुप में बांटा जा सकता है। एक ग्रुप में खांसी और सांस लेने में दिक्कत शामिल है तो थकान और सिरदर्द को भी उसमें ही रखा गया है। दूसरे ग्रुप में शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित करने वाले लक्षण हैं, जैसे कि दिल, पेट और दिमाग। धड़कन, पिन्स एंड नीडिल्स, बढ़ी हुई धड़कन और किसी क्षेत्र के सुन्न पड़ने को लक्षण माना गया है।
क्या लॉन्ग कोविड सिर्फ गंभीर लक्षणों वाले मरीजों को होता है?
नहीं। यह हल्के, मामूली या गंभीर लक्षणों वाले मरीजों को हो सकता है। अब तक इसे लेकर कोई स्पेसिफिक ट्रेंड नहीं दिखा है। यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की एक रिपोर्ट में 3,171 कोविड मरीजों की स्टडी की गई, जिन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया था। उनमें से 69% को छह महीने में एक या अधिक बार डॉक्टरों के पास जाना पड़ा।
क्या लॉन्ग कोविड मानसिक तौर पर लोगों को प्रभावित कर सकता है?
लॉन्ग कोविड की वजह से एंग्जाइटी और डिप्रेशन भी हो सकते हैं। रिकवर हो चुके लोगों में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) देखा गया है। लैंसेट साइकाइट्री में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक लॉन्ग कोविड से परेशान वयस्कों में साइकाइट्री समस्याओं से डायग्नोस होने की आशंका अधिक है।
भारत के लिए इसके क्या मायने हैं?
भारत में लॉन्ग कोविड को लेकर कोई स्पेसिफिक डेटा नहीं है। न तो सरकार ने इस पर नजर रखी है और न ही कहीं कोई स्टडी होती दिख रही है। हमारे पास यूके का डेटा है, वहां भी हमने घातक दूसरी लहर देखी है। नेशनल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस के मुताबिक 11 लाख लोगों ने 6 मार्च को समाप्त चार हफ्तों में लॉन्ग कोविड लक्षण रिपोर्ट किए हैं। उनमें से दो-तिहाई के लक्षण 12 हफ्ते से पुराने थे। भारत में दूसरी लहर के आंकड़ों को देखकर अंदाजा लगाए तो लॉन्ग कोविड से जूझ रहे लोगों का आंकड़ा बहुत अधिक हो सकता है। यह पहले से तनावग्रस्त हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर बोझ बढ़ा सकता है।
मरीजों की मदद के लिए क्या किया जा सकता है?
कोविड-19 से रिकवर लोगों में वह शामिल हैं जो इन्फेक्शन की वजह से मरे नहीं है। हालांकि एक्सपर्ट मानते हैं कि रिकवर होने के बाद भी ऐसे लोगों पर एक साल तक निगरानी रखनी जरूरी है। तभी हम भरोसे के साथ कह सकेंगे कि रिकवर हो चुके लोग पूरी तरह से स्वस्थ हैं। लॉन्ग कोविड से जूझ रहे लोगों को मल्टीडिसिप्लिनरी और मल्टी-केयर अप्रोच से ही ठीक किया जा सकता है। इसकी वजह यह है कि कोविड-19 शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचा रहा है।साभार-दैनिक भास्कर
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