पढ़िये दैनिक भास्कर की ये खबर….
साल के गरम दिन कहा जाने वाला नौ दिन का नौतपा बुधवार को समाप्त हो गया। इस दौरान अधिकतम तापमान 30 मई को कोटा में 43 डिग्री था। ऐसा करीब 10 साल बाद हुआ, जब नौतपा में तापमान इतना कम रहा। विशेषज्ञ इसे मौसम की चरम परिस्थिति कह रहे हैं। बीते 10 सालों में मौसम की चरम परिस्थति वाली घटनाओं में 20 गुना बढ़ोतरी हुई है। मौसम की चरम परिस्थिति का मतलब है भूस्खलन, भारी बारिश, ओले पड़ने, बादल फटने की घटनाओं में बढ़ोतरी। चक्रवात, सूखा और बाढ़ प्रभावित जिलों का बढ़ जाना। 1970-2005 के बीच 250 चरम जलवायु घटनाएं हुई थीं, लेकिन 2005-2020 बीच 310 चरम जलवायु घटनाएं दर्ज की गईं।
स्काईमेट के उपाध्यक्ष महेश पहलावत कहते हैं- मौसम की चरम परिस्थिति को इस तरह से समझा जा सकता है कि पहले केरल और मुंबई में बाढ़ आती थी, लेकिन अब गुजरात और राजस्थान में बाढ़ आने लगी है। भले बारिश की मात्रा में अधिक बदलाव नहीं है, लेकिन बारिश के औसत दिन (रेनी डे) कम हो गए हैं। अब मूसलाधार बारिश हो रही है। 10 साल पहले जितनी बारिश तीन दिन में होती थी, अब वो तीन घंटे में हो जाती है। पहले चार महीनों तक नियमित रिमझिम बारिश होती थी। पानी जमीन में रिसकर नीचे तक पहुंचता और जलस्तर बढ़ जाता था, लेकिन अब तेज बारिश के चलते सारा पानी बहकर नदियों में चला जाता है।
बारिश की मात्रा में बदलाव नहीं, पर जहां बाढ़, वहीं सूखा भी
अगर किसी दिन 2.4 मिलीमीटर से अधिक बारिश होती है तो उसे रेनी डे कहते हैं। पहले 1 जून से 30 सितंबर के बीच के 122 दिन में दीर्घावधि औसत (LPA) 880 मिलीमीटर के आसपास बारिश होती थी। अब भी बारिश की कुल मात्रा में अधिक बदलाव नहीं आया है, लेकिन बारिश वाले दिन अब 60 या इससे कम बचे हैं। ऐसे में तेज बारिश के चलते बाढ़ की स्थिति बन जाती है, लेकिन बेमौसम बारिश और तेज गर्मी के चलते उसी जगह पर सूखा की स्थिति भी बन जाती है।
प्रिपेयरिंग इंडिया फॉर एक्सट्रीम क्लाइमेट इवेंट्स रिपोर्ट के अनुसार 2005 से 2020 तक सूखा प्रभावित जिलों में 13 गुना बढ़ोतरी हो गई है। 2005 तक भारत में सूखे से प्रभावित जिले केवल 6 बचे थे, लेकिन बाद में मौसम तेजी से आए बदलाव के चलते अब इनकी संख्या 79 हो गई है। इसमें चौकाने वाली बात ये है कि अब 40% बाढ़ ग्रस्त जिले ही सूखा का भी सामना करते हैं।
नौतपा में गर्मी न होना नकारात्मक है, मानसून पर पड़ता है असर
मौसम की चरम परिस्थिति यह कहती है कि बेहद अजीबोगरीब आंकड़े देखने को मिलेंगे। नौतपा के दौरान गर्मी का स्तर 2011 के आंकड़े से भी नीचे चला गया। मौसम वैज्ञानिक डीपी दुबे कहते हैं कि केवल नौतपा में ही नहीं, पूरी मई के दौरान जितनी गर्मी पड़ती थी, उतनी नहीं पड़ी। इस कारण जितना वाष्प बनना चाहिए, उतना नहीं बना। इसके चलते मानसून की तारीख प्रभावित होती है।
मध्य प्रदेश समेत मध्य भारत के राज्यों में मानसून 2011 तक 13 जून को आ जाता था, लेकिन 2021 तक यह तारीख 19 जून हो गई है।
बीते पांच सालों में सबसे ज्यादा गर्म साल 2016 था। तब तापमान करीब 47 डिग्री तक पहुंचा था, लेकिन तब साल में 44 डिग्री से अधिक पारा केवल 4 बार चढ़ा। लेकिन 2018 में ऐसा 6 बार हुआ। जबकि 2020 में ऐसा केवल 2 बार ही हुआ। इसे ही मौसम वैज्ञानिक चरम परिस्थिति कह रहे हैं। इसमें मौसम का रौद्र और विकराल रूप देखने को मिल सकता है।
मौसम विभाग के डॉ. एसएस तोमर कहते हैं- मई महीने में हर साल तापमान ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते घटता है। इससे बारिश की स्थिति प्रभावित होती है। लगातार कम हो रहे तापमान से बारिश के लिए उचित परिस्थितियां नहीं बन पा रही हैं।
अरब सागर से आने वाले चक्रवात भारत के लिए घातक, अगले पांच सालों में बारिश पर होगा बड़ा असर
2021 में आए तूफान ‘ताऊ ते’ और ‘यास’ ने भारत के मानसून को प्रभावित किया है। मौसम विभाग ने 31 मई को मानसून केरल पहुंचने का अनुमान लगाया था, लेकिन बाद में 3 जून तक के लिए आगे बढ़ा दिया। इसकी वजह हाल में आए तूफान थे।
मौसम वैज्ञानिक जेडी मिश्रा कहते हैं कि ‘ताऊ ते’ और ‘यास’ भारत के मौसम से नमी लेकर अरब की ओर चले गए। पहले ज्यादातर तूफान बंगाल की खाड़ी से आते थे। इससे भारत की बारिश ज्यादा प्रभावित नहीं होती थी, लेकिन अरब सागर से आए तूफान भारत के मौसम की नमी को खींचकर सऊदी अरब की ओर ले जाते हैं।
स्काईमेट के महेश पहलावत कहते हैं कि पहले अरब सागर के तूफान दो साल में एक बार आते थे, अब एक साल में दो-दो बार आने लगे हैं। यह खतरनाक है। इससे अगले पांच सालों में भारत में बारिश बुरी तरह प्रभावित होगी।
साल 2005 के बाद से चक्रवातों से प्रभावित जिलों की संख्या सालाना औसतन दोगुनी हो गई है। बीते एक दशक में पूर्वी तट के लगभग 258 जिले चक्रवात से प्रभावित हुए हैं। साभार-दैनिक भास्कर
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