भास्कर के 4 रिपोर्टर अलीगढ़ के उन 8 गांव में पहुंचे, जहां जहरीली शराब से सबसे ज्यादा मौतें हुईं। अलीगढ़ के 80 किलोमीटर के दायरे के गांवों में अब तक 95 मौतें हो चुकी हैं। कई लोग अस्पतालों में भर्ती हैं।
पढ़िए…पहले 4 गांवों…पचपेडा, राइट, मुकटपुर और अंडला…की ग्राउंड रिपोर्ट, यहां 15 लोगों की मौत हुई है। 10 लोग अस्पताल में भर्ती हैं।
अलीगढ़ आज गमगीन लोगों के आंसुओं से गीला है। नशे के आदी इनके परिजन की मौत जहरीली शराब से हो चुकी है। मृतकों के परिजन कहते हैं, ये शराब तो उनकी जिंदगी का हिस्सा थी, मजदूरी कर शाम को खेतों से घर लौटते तो हाथ में शराब की थैली जरूर होती थी। रोटी खाने से पहले प्लास्टिक की बोतल से सुनहरा पानी न पिएं तो रोटी हजम नहीं होती थी। उस दिन भी रोज की तरह शराब के घूंट भरे थे, पर उस दिन इससे खाना हजम नहीं हुआ। उल्टियां हुईं और जिंदगी हमेशा के लिए खत्म हो गई।
नेशनल हाईवे की चिकनी सड़क पर गभाना से आगे बढ़ते हुए राहगीरों से पचपेडा गांव का रास्ता पूछने पर लोगों ने कहा- वही गांव जहां मिलावटी शराब का ठेका है, जिससे लोग मर रहे हैं।
जिस गांव में ठेका, वहां का नियम शराब नहीं पीना
पचपेडा पहुंचे तो सबसे पहले देसी शराब का वही हत्यारा ठेका मिला, जिसकी शराब से 26-27 मई की रात लोगों ने जान गंवाई थी। आज इस ठेके पर सरकारी सील चमक रही थी। मगर आज से पहले हर शाम यह ठेका रंगीन होता था। लोगों ने बताया कि शराब पीने और खरीदने वालों का यहां दिनभर मजमा रहता। शाम गहराने के साथ ठेके की भीड़ इतनी बढ़ जाती कि बहन-बेटियों का निकलना मुश्किल हो जाता। मजबूरी भी आ जाए, तो औरतें गांव की इस इकलौती मुख्य सड़क से निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं। भोर होने पर ठेके का सूनापन ही उन्हें गांव से निकलने की इजाजत देता।
कुछ दूरी पर मिट्टी के चबूतरे पर सफेद धोती में बैठे बुजुर्गों से पूछा- पचपेडा गांव यही है? उनका जवाब हां था। नई आवाज सुनकर आसपास से घरों के युवा भी जमा हो गए। शराब से मौत यहीं हुई हैं, बुजुर्ग ने कहा- नहीं हमारे गांव में कोई शराब नहीं पीता। ठेका बेशक हमारे गांव से सटा है, मगर पचपेडा का नियम है, यहां के लोग शराब नहीं पीते। आगे दूसरे गांवों के लोग ठेके पर शराब लेने आते हैं, वही पीते भी हैं। उन गांवों में कई मौतें हुई हैं।
काली टी-शर्ट, लोअर पहने युवक ने कहा दो-तीन दिन से तो ठेका बंद है, इसलिए कोई नहीं आया। दूसरे गांवों की तरफ बढ़ ही रहे थे कि एक बाइक सवार नौजवान ने चिल्लाकर कहा- ये शराब बिकनी बंद क्यों नहीं होती? इतने लोग जहरीली शराब पीकर मर गए, भले वो दूसरे गांव के थे, मगर थे तो वे भी इंसान, कब से जे ठेका यहां पर है, न ठेका बंद हो रहा है, न जहरीली शराब का कारोबार। दूसरे इलाकों से मिलावटी शराब लाकर यहां बेचते हैं, इस पर कुछ होना चाहिए। इस नौजवान की आंखों में गुस्से के डोरे तैर रहे थे।
सबकी मौत एक सी, मगर प्रशासन का इनकार
अब पचपेडा गांव से राइट गांव की ओर बढ़ते हैं। गांव में मातम का सन्नाटा पसरा है, चाय की गुमटी पर बैठे कुछ युवाओं ने बताया कि लाॅकडाउन का असर गांव में नहीं था, न यहां कोरोना आया। मास्क, सैनिटाइजर तो हममें से किसी ने लगाया ही नहीं।
प्रधानी चुनाव के बाद भी हमारे गांव में किसी को कोरोना न हुआ। आज से चार रोज पहले तक गांव की गलियां दिनभर चलती थीं। जब से जे जहरीली शराब से लोग मरे हैं, माहौल ही बदल गया। कोई बोल बता नहीं रहा, बस मौत का सन्नाटा गूंज रहा है।
राइट गांव में जहरीली शराब से 8 मौतें हो चुकी हैं, पहली मौत अंग्रेज खां (36) की हुई थी। दूसरी मौत अंग्रेज के चचेरे भाई हारुन की हुई, आस मोहम्मद, ताहिर खां, मुनीर खां, मुकेश, वाहिद, सुरेश की भी मौत हुई। ताहिर, सुरेश और हारुन का ही पोस्टमॉर्टम हुआ। बाकी सबकी मौत को प्रशासन जहरीली शराब से नहीं मानता, क्योंकि पीएम नहीं हुआ। जबकि हर मौत के कारण एक थे और लक्षण भी उल्टी, सांस उखड़ना, सीने से पेट में भीतर ही भीतर जलन और आंखों के आगे अंधेरा छाना था।
बहुत रोका था मत पियो, कल बेटी का निकाह है
राइट गांव में घुसते ही चंद कदम चलते ही बाएं हाथ पर हम अंग्रेज खां के घर पहुंचे। गोबर से लिपा आंगन चारपाइयों से पटा है। पंखा झलती घर की जनानिया गाल पर बहते आंसुओं को दुपट्टे से पोछती हैं। किनारे बैठी अंग्रेज की खाला (मौसी) अंग्रेज की गमजदा बीवी आबदा को तसल्ली देती हैं कि नन्ही जान (5 दिन की बेटी) की फिक्र कर ले।
सुबकती आबदा कहती हैं बहुत रोका था कि आज मत पियो, दो दिन बाद बड़ी बेटी का निकाह है, मैं भी जच्चा हूं, कुछ भी हो सकता है, पर माने नहीं। रोज जैसे पी ली और सो गए। रात डेढ़ बजे करीब उल्टी हुई। थोड़ी देर बाद दूसरी, तीसरी उल्टी होती गई। बेचैनी बढ़ती गई, सांसें फूलने लगी, बोले- भीतर जलन सी है रई है। गुस्से में हाथ भी उठा दिया कि सब्जी में मिर्च ज्यादा डाल दी, जिससे जलन होने लगी, मगर वो जलन मिर्च की नहीं, उस जहर की थी, जो शराब में मिला था।
बाजी से बोले कुछ दिख न रहा, आंखों के आगे अंधेरा छा गया। घबराकर मैंने आपा, भाई जान सबको बुलाया, पानी पिलाया, चीनी चटाई मगर जलन नहीं गई, हारकर सुबह मेडिकल ले गए, मगर रास्ते में ही वो हमें छोड़ गए। डाॅक्टरों ने कहा- कोई गलत चीज पी थी, जिससे तबीयत बिगड़ी। तीसरे रोज बेटी का निकाह तय था, मजबूरी में करना पड़ा।
आबिदा की आंखों में गुजरते गम में कल की चिंता है कि गोदी में लेटी चार दिन की बच्ची के साथ और घर कैसे पलेगा। तब तक गांवों में किसी और की मौत नहीं हुई थी, इसलिए पोस्टमॉर्टम भी नहीं हुआ। ये कैसे साबित होगा कि मेरे शौहर की जान जहरीली शराब से गई है, मुआवजा मिलेगा, इसका भरोसा नहीं है।
आंखों के आगे अंधेरा छाया और मौत आ गई
अंग्रेज खां के चचेरे भाई हारुन ने भी 26 की रात अंग्रेज के साथ ठेके से शराब ली थी, दोनों साथ गांव आए थे, फिर अपने-अपने घर चले गए, अंग्रेज की मौत के 10 घंटे बाद हारुन की भी मौत हो गई। सीमेंट की बोरी के पर्दे की आड़ में हारुन के घर में गांव, रिश्तेदारी की औरतें बैठी हैं। भीतर अंधेरी कोठरी में दरी पर सिमटी सुबकती हारुन की पत्नी तहसीना कहती हैं कि चार बच्चे हैं, इसमें एक दिव्यांग है, चलने में दिक्कत है। किसके सहारे पलेंगे। मेहनत मजदूरी से घर चल जाता था, मगर पीने की लत थी।
तहसीना कहती हैं कि मना करती तो मानते नहीं थे, उस दिन भी पी ली, सवेरे भाई जान को देखने गए कि उन्हें उल्टी हो रही है, सांस नहीं आ रहा। शाम को इनको भी उल्टी होने लगी। उस दिन पहली बार शराब पीने के बाद इनको उल्टी हुई जो थमी नहीं। सौंठ भी चटाई कि उल्टी रुक जाए, मगर ऐसा हुआ नहीं। अचानक आंखों के आगे अंधेरा छा गया, मेडिकल ले गए तो वहां वो नहीं रहे।
सरकार न सुनती है, न मानती है
भाई के इंतकाल से गमगीन हारुन का छोटा भाई इशरत कहता है, अंग्रेज भाई की तरह उनकी हालत बिगड़ने लगी तो हम भाई को मेडिकल ले गए, जहां कुछ देर बाद डाॅक्टरों ने जहरीली चीज खाई है, कहकर मौत बता दी, तब शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है। दो दिनों में ही आसपास के गांवों से ऐसे ही लोगों के मरने की खबर आई तो मामला खुला कि ये सब जहरीली शराब के कारण हुआ, इसलिए हम पोस्टमॉर्टम करा लाए, वर्ना हम साबित न कर पाते कि मौत कैसे हुई। अब मुआवजा मिले तो ये बच्चे पल जाएं।
हारुन के घर के बाहर चौपाल पर बैठे अब्दुल कहते हैं, मौतें तो सब जहरीली शराब से हुई हैं, मगर प्रशासन मानता नहीं। लोगों के पास पीएम रिपोर्ट नहीं है। 12 हजार की आबादी का गांव है हमारा, पर महामारी से बड़ी मौत पहली बार देखी है। इसका कारण मिलावटी शराब है। कोरोना का तो खौफ भी नहीं था।
गुनहगारों की सजा का पता नहीं, मगर हमें मिल गई
राइट से आगे बढ़कर अंडला गांव की तरफ लगभग डेढ़ किमी का सफर तय कर पहले मुकटपुर गांव पहुंचे। गांव के मुहाने पर स्थित हनुमान मंदिर के पास से गुजरती महिला ने बताया कि मेरे बहनौत मनोज की मौत भी जहरीली शराब से हुई है। जवान लड़का था, उस दिन किसी ने जबरन पिला दी, वो तो रोज पीता भी न था। देखो चला गया।
महिला के साथ मृतक मनोज के घर पहुंचे। लोहे के ऊंचे दरवाजों के बीच सीमेंट के चौड़े आंगन पर आदमियों की बैठक जमी है। दरी के बीच में रखी स्टील की प्लेट में पडे़ सिगरेट के सुलगते टुकडे़ बता रहे थे कि आज सुबह से यहां दुख जताने वालों की खासी आमद रही है।
मनोज के पिता ने कहा- कभी-कभार पीता था, किसी ने जबरदस्ती पिला दी तो पी लेता था, उस दिन सुबह चार बजे उल्टी हुई, फिर आंखें नहीं खुलीं। मनोज की बेटी प्रिया बोली पापा को अस्पताल ले गए, बोतल चढ़ी, मगर बचा नहीं सके। घर के अंदर से सुबकने की आवाजें अब तेज हो चुकी थीं, अंदर महिलाओं की बैठक थी। मृतक की पत्नी शीलम को दो महिलाओं ने सहारा देकर उठाया और दालान से सटे कमरे में बैठा दिया।
शीलम बोलीं- कभी-कभी पीते थे, कई बार तो छह महीना हो जाएं, पांच साल हो जाएं तब पीते थे, उस दिन संग साथ वालों ने पिला दी होगी। घर आए, सुबह चार बजे उल्टी हुई, उल्टी तो पहले भी हो जाती थी, मगर समझ नहीं पाए कि शराब से हो रही है। अस्पताल भी कुछ न कर पाया, अब दो बच्चे हैं मेरे, किसके सहारे रहूं। सरकार क्या साथ देगी, जब आदमी ही गुजर गया।
शीलम को न सिस्टम पर भरोसा है, न कानून पर, बोली गुनहगारों को क्या सजा होगी, कब होगी ये कौन जानता है, मगर मेरे परिवार को तो सजा मिल गई, जो हम जिंदगी भर काटेंगे।
शराब लील गई इकलौता सहारा
अब कदमों के साथ मन भी जवाब दे रहा है। मुकटपुर से अंडला चलते हुए सूरज ढल चुका है, गांव में पसरी खामोशी में फैलते अंधियारे में बस जहरीली शराब की चर्चा है। अंडला गांव में दशरथ, देवेश, नीरज, धर्मपाल, राकेश पांच मौतों की पुष्टि जहरीली शराब से हो चुकी है। इसमें युवा खेतिहर किसान देवेश भी शामिल हैं। जिसे शराब पीने की पुरानी लत थी।
देवेश के 84 वर्षीय दादा ओमप्रकाश गांव में मास्टरजी के नाम से मशहूर हैं। ओमप्रकाश बताते हैं कि मानता नहीं था, पुरानी आदत थी पीने की, अब चला गया, मुझे अकेला छोड़कर उसकी पत्नी, बच्चे किसके सहारे रहेंगे। मेरा तो बुढ़ापे का इकलौता सहारा था। मेरे बेटे, बहू तो पहले ही चले गए, बस ये पोता था, जिसके कंधों पर जाने की उम्मीद थी, मगर उल्टा उसे अपने कंधों पर छोड़कर आया हूं, ऐसा अभागा कोई न हो।
बगल में बैठे देवेश के चाचा राजेश संस्कृत के शिक्षक हैं, चाचा का आरोप है कि ठेका पूरी तरह अवैध है, पुलिस प्रशासन की मिलीभगत से ठेका चल रहा है। ट्यूबवेल में ठेका चल रहा है, दिन-रात शराब बिकती है। शासन जिम्मेदार लोगों को बचाना चाहता है, हम बेसहारों को न्याय कौन दिलाएगा? गांव के दूसरे बुजुर्ग भी गम और गुस्से में हैं।
देवेश के घर के ठीक सामने दर्जी की दुकान पर कपड़े सिलने वाले कारीगर की भी मौत जहरीली शराब से हो चुकी है। आमने-सामने के घरों से पूरे गांव में मातम पसरा है। साभार-दैनिक भास्कर
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