हरियाणा के रहने वाले गौतम मलिक दिल्ली में पले-बढ़े। 12वीं के बाद उन्होंने पुणे से आर्किटेक्चर में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद दिल्ली लौट आए। यहां सालभर काम करने के बाद मास्टर्स की डिग्री के लिए अमेरिका चले गए। पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में ही उनकी नौकरी लग गई। वहां उन्होंने करीब 10 साल काम किया। फिर भारत लौट आए। 2015 में उन्होंने वेस्ट मटेरियल को अपसाइकल कर हैंड पर्स और बैग तैयार करने का स्टार्टअप शुरू किया। आज भारत के साथ विदेशों में भी उनके प्रोडक्ट की डिमांड है। और सालाना 80 लाख रुपए उनकी कंपनी का टर्नओवर है।
गौतम अमेरिका में डिजाइनिंग सेक्टर में काम करते थे। इस दौरान उन्होंने देखा कि यहां के लोगों में लुक और डिजाइनिंग को लेकर काफी क्रेज है। खास करके हैंड पर्स और बैग के मामले में। ज्यादातर लोग फैशन ट्रेंड, पर्सनालिटी और अपनी ड्रेसिंग के हिसाब से पर्स और बैग का इस्तेमाल करते हैं। यानी वे विजुअल कम्यूनिकेशन पर जोर देते हैं। ये बात उनके दिमाग में क्लिक कर गई। उन्होंने बैग तैयार करने वाली कंपनियों के बारे में जानकारी और उसकी प्रोसेसिंग को लेकर रिसर्च करना शुरू किया। तब उन्हें पता चला कि स्विट्जरलैंड की एक कंपनी ट्रकों में इस्तेमाल होने वाले तिरपाल को अपसाइकल करके बैग तैयार करती है।
वेस्ट मटेरियल को लेकर रिसर्च किया, जानकारी जुटाई
44 साल के गौतम को लगा कि ये काम तो भारत में भी शुरू किया जा सकता है। वहां इस तरह के वेस्ट मटेरियल की कोई कमी नहीं है। और ज्यादातर वेस्ट तो लैंडफॉल में डीकंपोज कर दिए जाते हैं। गौतम कहते हैं कि मैंने तब तय तो कर लिया था कि मुझे इसको लेकर कुछ न कुछ शुरू करना है, लेकिन मैं तब तक कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था जब तक मुझे पूरी प्रोसेस और मार्केट के बारे में जानकारी न मिल जाए। इसलिए मैंने कुछ साल और नौकरी करने का फैसला किया। इस दौरान मैं वेस्ट मटेरियल अपसाइकल को लेकर लगातार रिसर्च करता रहा, जानकारियां जुटाता रहा और लोगों से फीडबैक लेता रहा।
गौतम कहते हैं कि जब वेस्ट मटेरियल अपसाइकल के बारे में मुझे ठीक-ठाक जानकारी हो गई तो मैंने तय किया कि अब भारत लौटा जाए। इसके बाद वे 2011 में भारत आ गए। यहां उन्होंने देखा कि अभी लोगों में अवेयरनेस कम है और इस सेक्टर में काम करने वाले लोगों की भी कमी है। साथ ही वेस्ट मटेरियल जुटाना और उसकी मार्केट में खपत कराना भी चैलेंजिंग टास्क है। इसलिए उन्होंने सीधे स्टार्टअप शुरू करने के बजाय पहले मार्केट बनाने पर फोकस किया।
पुरानी कार की सीट बेल्ट से बैग तैयार करना शुरू किया
वे बताते हैं कि 2012 में मैंने एक कंपनी भी जॉइन कर ली ताकि पैसे की दिक्कत नहीं हो। साथ ही अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और पास के दुकानदारों से बातचीत और सर्वे करना शुरू किया कि वे किस तरह के बैग पसंद करते हैं। वे किस तरह की डिजाइनिंग चाहते हैं? उनका बजट कितना रहता है? और अगर उन्हें इको फ्रेंडली बैग दिया जाए तो क्या वे इसे खरीदना चाहेंगे? गौतम बताते हैं कि लोगों का बढ़िया रिस्पॉन्स मिला। कई लोगों ने दिलचस्पी दिखाई।
इसके बाद 2015 के अंत में गौतम ने 10 लाख रुपए की इन्वेस्टमेंट के साथ अपना स्टार्टअप लॉन्च किया। उन्होंने अपनी वेबसाइट तैयार की, कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराया, ऑफिस के लिए गुरुग्राम में जगह ली। कुछ स्किल्ड लोगों को हायर किया और फिर काम करना शुरू किया। पहले उन्होंने तिरपाल को अपसाइकल करने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली, क्योंकि उन्हें यहां वो क्वालिटी नहीं मिली जो स्विट्जरलैंड की कंपनी के पास थी। इसके बाद उन्हें दिल्ली की मायापुरी (जिसे इंडस्ट्रियल वेस्ट के लिए जाना जाता है) के बारे में जानकारी मिली। यहां से उन्होंने पुरानी कार की सीट बेल्ट को अपसाइकल कर बैग तैयार करना शुरू किया।
कहां से लाते हैं रॉ मटेरियल?
गौतम और उनकी टीम रॉ मटेरियल के रूप में हर उस वेस्ट का इस्तेमाल करती हैं जिसको अपसाइकल करके बैग तैयार किया जा सकता है। इसके लिए वे देश के अलग-अलग हिस्सों से वेस्ट इकट्ठा करते हैं। वे पुरानी कार की सीट बेल्ट, तिरपाल, ट्रकों और गाड़ियों के टायर, पुराने कपड़े, आर्मी कैनवास, खराब हो चुके पैराशूट जैसे वेस्ट से बैग तैयार करते हैं। इसके साथ ही वे पुराने बैग को रिप्लेस करके भी नया बैग तैयार करते हैं। जैसे किसी का बैग पुराना हो गया हो, या उसे यूज करते हुए उसका मन ऊब गया हो। तो गौतम की टीम उस पर वर्क करती हैं और उसे ट्रेंड के हिसाब से नया तैयार करके कस्टमर्स को देती है।
कैसे तैयार करते हैं प्रोडक्ट?
इसके बाद गौतम ने अपनी कंपनी का दायरा बढ़ाया। उन्होंने विदेशों में अपने कुछ दोस्तों से बात की और उनके जरिए कुछ बड़ी कंपनियों से टाइअप किया। वे उनके लिए रेगुलर बैग की सप्लाई करते हैं। वे कहते हैं कि हम बिजनेस टू ब्रांड B2B और बिजनेस टू कस्टमर B2C दोनों ही मॉडल पर काम कर रहे हैं। कई कंपनियों के लिए हम प्रोडक्ट तैयार करते हैं। साथ ही कई लोग व्यक्तिगत रूप से भी हमसे प्रोडक्ट खरीदते हैं।
अपने स्टार्टअप के जरिए, गौतम अब तक 3960 मीटर से ज्यादा बेकार और पुरानी कार सीट बेल्ट तथा 900 मीटर से ज्यादा कार्गो सीट बेल्ट को अपसाइकल कर चुके हैं। ओवरऑल 9 हजार उनके कस्टमर्स हैं। इनमें से ज्यादातर उनसे रेगुलर प्रोडक्ट खरीदते हैं। उनकी पत्नी भावना एक कॉलेज में प्रोफेसर हैं और उनकी कंपनी में ‘मटेरियल एक्सपर्ट’ का काम देखती हैं। जबकि उनकी मां डॉ. ऊषा मलिक कंपनी में फाइनेंस का काम संभालती हैं।
गौतम कहते हैं कि लॉकडाउन की वजह से उनका काम प्रभावित हुआ है। काम करने में भी दिक्कत हो रही है और रॉ मटेरियल जुटाने में भी परेशानी हो रही है। हालांकि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए अभी भी वे मार्केटिंग कर रहे हैं। साभार-दैनिक भास्कर
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