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दिल्ली का राजपथ कई मायनों में ख़ास है. इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक जाने वाली इस सड़क के दोनों तरफ़ गार्डन हैं जहां हज़ारों लोग ठंड में धूप सेंकने या गर्मियों की शामों में आइसक्रीम खाने आया करते हैं.
लेकिन तीन किलोमीटर लंबी इस सड़क के चारों ओर अब धूल का अंबार लगा हुआ है. ज़मीन से निकाली गई मिट्टी, गड्ढे और लोगों को अंदर आने से मना करते साइन बोर्ड हर तरफ़ दिख जाएंगे. साथ ही सीवेज की पाइप और फ़ुटपाथ की मरम्मत करते पीली वर्दी पहने मज़दूर.
ये सब सरकार की सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत हो रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत नया संसद भवन, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के लिए नए घर और कई ऑफ़िस बनाए जा रहे हैं. पूरे प्रोजेक्ट की क़ीमत क़रीब बीस हज़ार करोड़ रुपये बताई जा रही है.
यही कारण है कि शुरुआत से ही ये इस प्रोजेक्ट को लेकर विवाद उठते रहे हैं. सितंबर 2019 में इस प्रोजेक्ट की घोषणा की गई थी. तब से ही आलोचकों का कहना है कि इतनी बड़ी रक़म का इस्तेमाल लोगों की भलाई से जुड़े दूसरे कामों के लिए किया जा सकता था, जैसे कि दिल्ली के लिए साफ़ हवा का इंतज़ाम करने के लिए, जो कि दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है.
भारत कोविड महामारी की दूसरी लहर से गुज़र रहा है, इसके बावजूद सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम जारी है. लोगों में इसे लेकर ग़ुस्सा भी है. आलोचकों ने प्रधानमंत्री मोदी की तुलना “जलते हुए रोम के बीच बांसुरी बजाते हुए नीरो” से की है.
विपक्षी नेता राहुल गांधी ने इसे “आपराधिक बर्बादी” बताते हुए पीएम मोदी से महामारी से निपटने की अपील की है. एक खुले ख़त में कई बुद्धिजीवियों ने इस प्रोजेक्ट पर ख़र्च की जा रही रक़म की आलोचना करते हुए लिखा कि “इसका इस्तेमाल कई ज़िंदगियां बचाने के लिए किया जा सकता था.”
Central Vista is criminal wastage.
Put people’s lives at the centre- not your blind arrogance to get a new house!
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 7, 2021
इस प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले पीएम के नए आवास की भी आलोचना की जा रही है, जिसे दिसंबर 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य है.
इतिहासकार नारायणी गुप्ता ने बीबीसी से कहा, “ये पूरी तरह से भाग जाना है. एक ऐसे समय में जब महामारी से हज़ारों लोगों की जान जा रही है, श्मशान और क़ब्रिस्तानों में जगह नहीं बची है, सरकार हवा में महल बना रही है.”
अभी कहां रहते हैं प्रधानमंत्री?
पीएम मोदी अभी भी एक आलीशान परिसर में रहते हैं, जो कि लोक कल्याण मार्ग में 12 एकड़ में फैला है. पाँच बँगले वाली ये जगह राष्ट्रपति भवन से क़रीब तीन किलोमीटर दूर है.
पीएम के अपने घर के अलावा वहां मेहमानों के रहने की एक जगह है, ऑफ़िस हैं, मीटिंग रूम है, एक थियेटर है और एक हेलिपैड है. कुछ साल पहले इस घर से सफ़दरजंग एयरपोर्ट के लिए एक सुरंग भी बनाई गई थी.
दिल्ली के आर्किटेक्ट गौतम भाटिया कहते हैं, “भारत में प्रधानमंत्री की एक पूरी सड़क है. ब्रिटेन में 10 डाउंनिंग स्ट्रीट (ब्रितानी प्रधानमंत्री का घर) सिर्फ़ एक दरवाज़े पर लिखा नंबर है.”
इस प्रॉपर्टी का चयन 1984 में राजीव गांधी ने किया था. इसे एक अस्थायी घर होना था लेकिन उसके बाद से सभी प्रधानमंत्री इसी घर में रहने लगे.
राजनीतिक विश्लेषक मोहन गुरुस्वामी के मुताबिक़, “राजीव गांधी तीन बँगले का इस्तेमाल करते थे. चौथा और पांचवा बँगला बाद में ज़्यादा स्टाफ़ और सुरक्षा कर्मचारियों के लिए जोड़ा गया.”
गौतम भाटिया के मुताबिक़, “ये अपेक्षाकृत नया निर्माण है.” इसके अलावा समय-समय पर इसे बेहतर बनाने के लिए “काफ़ी पैसे ख़र्च किए गए हैं.”
पिछले कुछ समय में पीएम मोदी के घर की झलक लोगों की मिली है. उन्होंने वीडियो शेयर किए हैं, जिसमें वो मोर को खाना खिलाते, योगा करते और अपनी मां को व्हीलचेयर पर घुमाते नज़र आए हैं.
नए घर के बारे में हमें क्या पता है?
ये दिल्ली के पावर कॉरिडोर में होगा, इसके एक छोर पर राष्ट्रपति भवन होगा, तो दूसरे छोर पर सुप्रीम कोर्ट. पीएम के घर के बग़ल में ही संसद भवन होगा.
सरकारी दस्तावेज़ों के मुताबिक़ 15 एकड़ में फैले इस परिसर में 10 चार मंज़िला इमारतें होंगी. ये परिसर राष्ट्रपति भवन और साउथ ब्लाक के बीच होगा, जहां पीएम और रक्षा मंत्रालय के दफ़्तर हैं. 1940 में अंग्रेज़ो द्वारा बनाए गए बैरेक जिनका इस्तेमाल अभी अस्थायी दफ़्तरों की तरह होता है, उन्हें तोड़ दिया जाएगा.
पीएम के घर के बारे में इससे अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है. बीबीसी के मेल के जवाब में प्रोजेक्ट के आर्किटेक्ट बिमल पटेल के ऑफ़िस ने कहा, “सुरक्षा कारणों से हम ज़्यादा जानकारियां या ब्लूप्रिंट साझा नहीं कर सकते.”
एक आर्किटेक्ट अनुज श्रीवास्तव कहते हैं, “इसे लेकर जनता के बीच कोई बात नहीं हुई है. इससे जुड़ी जानकारियां आती रहती हैं लेकिन कुछ साफ़ नहीं है.”
माधव रमन कहते हैं कि “इतनी बड़ी इमारत” का साउथ ब्लॉक के क़रीब होना जो कि एक संरक्षित इमारत है और जिसे मशहूर ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडवर्ड लुटियन्स और हर्बर्ट बेकर ने बनाया था, चिंता का विषय है.”
“भारत के पुरातत्व विभाग के नियमों के मुताबिक़, किसी भी हेरिटेज बिल्डिंग से किसी भी दूसरी इमारत की दूरी 300 मीटर होनी चाहिए, लेकिन पीएम का घर सिर्फ़ 30 मीटर दूर है. उस प्लॉट पर कई पेड़ हैं, उनका क्या होगा?”
अधिकारियों का कहना है कि पीएम का घर “सही जगह पर नहीं है” और “उसकी सुरक्षा मुश्किल है” और “बेहतर ढांचे की ज़रूरत है जिसे मेंटेन करना आसान हो और किफ़ायती हो.”
उनके मुताबिक़ “घर और ऑफ़िस की दूरी कम होगी ताकि जब पीएम निकलें तो सड़क को बंद न करना पड़े जिसके कारण “शहर के ट्रैफ़िक पर बुरा असर होता है.”
लेकिन मोहन गुरुस्वामी की राय अलग है.
वो कहते हैं, “हर फ़ैसला पीएम के घर में होता है. उनके पास 100 से अधिक स्टाफ़ हैं जो हर दिन 300 से ज़्यादा फ़ाइल देखते हैं. उन्होंने सत्ता का केंद्र अपने हाथ में रखा है. वो प्रेसिडेंशियल सरकार चलाना चाह रहे हैं, इसके लिए बड़ी बिल्डिंग चाहिए – जैसे कि व्हाइट हाउस या क्रेमलिन”
गुरुस्वामी कहते हैं, “भारतीय प्रधानमंत्री हमेशा ही “पीछे की इमारतों में रहते हैं.” लेकिन इस घर की मदद से मोदी ख़ुद को दिल्ली के पावर कॉरिडोर के केंद्र में लाना चाहते हैं.
“लेकिन सत्ता का बदलाव दिखना भी चाहिए. वो सिर्फ़ एक नया घर नहीं बना रहे, वो सरकारी संस्थाओं में बदलाव ला रहे हैं. ढांचे के बदलाव से सत्ता की ताक़त का स्वरूप भी बदलता है.”
राजपथ का क्या होगा
राजपथ, दिल्ली का वह इलाक़ा जिसे विरोध प्रदर्शन और कैंडल मार्च के लिए जाना जाता है.
सरकार ये कह रही है कि ये आम जनता के लिए खुला रहेगा लेकिन आलोचकों का मानना है कि प्रधानमंत्री आवास से इसकी नज़दीकी बढ़ने के कारण बड़ी संख्या में लोगों को जमा होने से रोका जा सकता है.
इतिहासकार नारायणी गुप्ता कहती हैं, ”बहुमंज़िला दफ़्तरों की बिल्डिंग सांस्कृतिक केंद्रों की जगह ले लेंगी जैसे इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फ़ॉर आर्ट, नेशनल म्यूज़ियम फ़ॉर मॉर्डन ऑर्ट, नेशनल आर्काइव इंडिया गेट को ढक लेंगे.”
ये लोग बेहद दुर्लभ पांडुलिपियों और नाज़ुक चीज़ों को हटा कर अस्थाई जगहों पर रख रहे हैं, हमें कैसे पता चलेगा कि इस दौरान उन्हें कोई नुक़सान नहीं होगा.”
शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इस प्रोजेक्ट का समर्थन करते हुए इस तरह की आलोचनाओं को ख़ारिज कर दिया है जिसमें कहा जा रहा है कि सरकार महामारी के दौर में भी करोड़ों की लागत वाले सेंट्रल विस्टा प्रोजक्ट पर काम जारी रख रही है.
हरदीप सिंह पुरी ने इस संबंध में कई ट्वीट भी किये हैं. एक ट्वीट में उन्होंने लिखा है, ”सरकार ने वैक्सीनेशन पर इससे दोगुना बजट आवंटित किया है, लोगों को सेंट्रल विस्टा पर चल रहे काम की फ़ेक तस्वीरों और अफ़वाहों पर यक़ीन नहीं करना चाहिए.”
”सेंट्रल विस्टा को विश्व स्तरीय सार्वजनिक स्थान बनाया जा रहा है, ये आने वाले वक़्त में ऐसी चीज़ होगी जिस पर हर भारतीय को गर्व होगा.”
एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा “हरदीप पुरी ‘उस चीज़’ का बचाव करने की कोशिश कर रहे हैं जिसका बचाव करना मुश्किल है. मुझे इस बात पर कोई शक नहीं है कि जो बनेगा उस पर हर भारतीय गर्व करेगा, लेकिन मैं ये ज़रूर मानता हूं कि ये वक़्त इस प्रोजेक्ट का काम जारी रखने के लिए ग़लत है, जब हमारे आसपास लोग मर रहे हैं तो एक और इमारत खड़ी करने की क्या जल्दी है.”साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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