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सितंबर, 2020 में जब दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन को तैयार करने और इंसानों पर उसके परीक्षण की शुरुआत हुई तब हमने पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट का दौरा किया था. कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका से समझौता किया हुआ था.
सीरम इंस्टीट्यूट कोविशील्ड वैक्सीन का भारत और दुनिया के दूसरे देशों में सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. हमलोग जिस दिन सीरम इंस्टीट्यूट के कैंपस में गए थे, उसी दिन से प्लांट में बड़े पैमाने पर कोविशील्ड का उत्पादन शुरू हुआ था.
हालांकि, तब तक दुनिया के किसी हिस्से में कोविशील्ड का इंसानों पर परीक्षण नहीं हुआ था और किसी भी सरकार ने वैक्सीन को मंज़ूरी नहीं दी थी.
लेकिन दुनिया भर में कोरोना संक्रमण को लेकर आपातकालीन स्थिति को देखते हुए अनुमति मिलने से पहले ही कोविशील्ड का जोख़िम भरा उत्पादन शुरू किया गया था. परीक्षणों में वैक्सीन की नाकामी की सूरत में ये सब बेकार हो जाता, लेकिन उस वक़्त दुनिया के सामने इतना जोख़िम उठाने के अलावा दूसरा विकल्प मौजूद नहीं था.
इस दौरान सीरम इंस्टीट्यूट के एक अधिकारी ने कहा, “आइए आपको एक दूसरी जगह ले चलते हैं. सीरम कैंपस के अंदर ही एक फ्लाइओवर था जो सीरम इंस्टीट्यूट के अंदर इकलौती प्राइवेट रोड थी जो सीधे उस दूसरी जगह ले जा रही थी. वहां पहुँचने से पहले एक विशाल हेलीपैड दिखाई दिया, वहां एक हेलिकॉप्टर भी पार्क था. साथ ही एक बड़ा यात्री विमान भी वहां दिखाई दे रहा था. वह विमान कोई चार्टेड विमान नहीं था बल्कि एयरबस 320 का विमान था.”
हमें तो यह समझ नहीं आया कि हमलोग सीरम प्लांट के अंदर थे अचानक एयरपोर्ट कैसे पहुँच गए. लेकिन साथ चल रहे अधिकारी ने हमें बताया, “यह अदार पूनावाला का दफ़्तर है. यह विमान यहां स्थायी तौर पर रहता है और इसे पूनावाला अपने दूसरे दफ़्तर के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.”
इस हेलिपैड से सटी इमारत काफ़ी हद तक एयरपोर्ट टर्मिनल से मिलती जुलती थी. इस दफ़्तर का नाम भी था- टर्मिनल वन. उस दिन पूनावाला पुणे में नहीं थे, इसलिए हम दफ़्तर के अंदर नहीं जा सके लकिन हमने बाहर से ही उनके दफ़्तर का स्टाइल देखा.
हमने इन दो जगहों पर जो देखा उसमें एक तरह से पूनावाला के साम्राज्य का सूत्र दिखाई दिया. एक तरफ़ जहां दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले बाज़ार पर नज़र दिखी तो दूसरी ओर निवेश के लिए जोख़िम उठाने का भाव दिखा जिसके ज़रिए पूनावाला अपने साम्राज्य को बढ़ा रहे हैं.
सीरम इंस्टीट्यूट के सामने चुनौती
कोरोना संक्रमण के आने के साथ ही पूनावाला और सीरम इंस्टीट्यूट का नाम हर किसी की ज़ुबान पर चढ़ गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख से लेकर गांव के लोगों को सीरम इंस्टीट्यूट के वैक्सीन का इंतज़ार था. भारत दुनिया में सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक है, लेकिन इसके बारे में पुणे में भी लोगों को मालूम नहीं था.
सीरम इंस्टीट्यूट के सामने दुनिया भर की वैक्सीन की माँग को पूरा करने की चुनौती है, वह भी ऐसे समय में जब दुनिया का अस्तित्व वैक्सीन पर टिका है. यह काफ़ी कम समय में तैयार हुआ है, कह सकते हैं कि आधुनिक मेडिसिन के दौर में सबसे तेज़ी से यह वैक्सीन तैयार हुई है. जब दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन के लिए कई प्रोजेक्ट पर काम चल रहा था तब लोगों की नज़र ऑक्सफ़ोर्ड-ऐस्ट्राज़ेनेका पर टिकी हुई थीं.
सीरम इंस्टीट्यूट ने जब शुरुआती दौर में ही ऐस्ट्राज़ेनेका के साथ अनुबंध किया तब भारत ने भी राहत की साँस ली थी. सीरम ना केवल कोविशील्ड का उत्पादन कर रहा है बल्कि वह अपनी दो कोरोना वैक्सीन विकसित करने पर भी काम कर रहा है, जिसमें नोवावैक्स भी शामिल है.
भारत में जनवरी, 2021 से वैक्सीनेशन शुरू हुआ और वैक्सीन ढोने वाले कंटेनरों के साथ अदार पूनावाला की तस्वीर मीडिया की सुर्ख़ियों में देखने को मिली. भारत में कोविशील्ड को कोवैक्सीन के साथ मंज़ूरी मिली. कोविशील्ड के साथ बड़ा सर्कुलेशन का सिस्टम मौजूद है, इसलिए यह भारत ही नहीं बल्कि दुनिया में सबसे ज़्यादा वितरित वैक्सीन है. सीरम इंस्टीट्यूट के प्लांट में तैयार कोविशील्ड वैक्सीन के करोड़ों डोज़ भारत से बाहर भी भेजे गए.
दूसरे देशों को भी भेजनी है वैक्सीन
कोवैक्स देशों के बीच हुए सहमति के मुताबिक़ भी आपूर्ति शुरू होनी थी, लेकिन मार्च में भारत के अंदर कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर देखने को मिली. भारत में अचानक से वैक्सीनों की माँग बढ़ गई, राज्यों की ओर से दबाव बढ़ने लगा, आपूर्ति और उत्पादन को काफ़ी बढ़ाना पड़ा लेकिन माँग के सामने आलोचनाओं का दौर भी शुरू हो गया.
भारत के अंदर एक मई, 2021 से 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन देने की घोषणा के बाद स्थिति और विकट हो गई. केंद्र सरकार से मिलने वाली आपूर्ति ना तो पर्याप्त है और ना ही नियमित. राज्य सरकारें वैक्सीन के लिए भुगतान करने को तैयार हैं लेकिन वैक्सीन का उत्पादन ज़्यादा नहीं हो रहा है. सीरम इंस्टीट्यूट में तैयार कोविशील्ड का निर्यात भी बंद किया जा चुका है.
जिन दूसरे देशों ने कोरोना वैक्सीन के लिए भारत से समझौता किया है उन्हें कम से कम साल के अंत तक इंतज़ार करना होगा. देश के अंदर भी वैक्सीनेशन की प्रक्रिया धीमी है. ऐसे में एक बार फिर से सीरम इंस्टीट्यूट और पूनावाला उम्मीद और आलोचनाओं के केंद्र में हैं.
अदार, अपने पिता सायरस और परिवार के साथ लंदन जा चुके हैं. अफ़वाह यह भी है कि वे धमकियों के चलते बाहर गए हैं, हालांकि उन्होंने इन आरोपों का खंडन किया है. उन्होंने ब्रिटेन में एक बड़े निवेश की घोषणा भी की है.
ऐसे में लोगों की दिलचस्पी यह जानने में हो सकती है कि पूनावाला और सीरम के साम्राज्य की कहानी कहां से शुरू होती है?
घोड़ों के व्यापार से वैक्सीन के व्यापार तक
यह कहा जाता है कि पूनावाला का परिवार ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी में पुणे आया. कई पारसी परिवार ब्रिटिशों के शासन के दौरान भारत में बसे और प्रशासन से लेकर कारोबार तक की दुनिया में स्थापित हुए. पारसी परिवार जहां बसे उन शहरों के नाम उनके नाम में देखने को मिलते हैं. उसी तरह से अदार के परिवार का नाम पूनावाला पड़ा.
स्वतंत्रता से पहले के दौर में यह परिवार कंस्ट्रक्शन के कारोबार में था. लेकिन उससे ज़्यादा इनका नाम घोड़ों के कारोबार से हुआ, आज भी इस परिवार को घोड़ों के कारोबार से लोग जानते हैं. घोड़ों का कारोबार अदार के दादा सोली पूनावाला ने शुरू किया था.
उन्होंने घुड़साल बनाया जिसमें उन्नत क़िस्म के घोड़ों को रेस के लिए तैयार किया जाता था. ब्रिटिश अधिकारी, बड़े उद्योगपतियों से इस परिवार का रिश्ता घोड़ों के कारोबार के ज़रिए बना. पूनावाला साम्राज्य की नींव इसी कारोबार से पड़ी.
लेकिन वैक्सीन बनाने वाले सीरम इंस्टीट्यूट की शुरुआत कैसे हुई? दरअसल इसका कनेक्शन भी घोड़ों के कारोबार से जुड़ा हुआ था. अदार के पिता सायरस ने जब घोड़ों के कारोबार को बढ़ाने के बारे में सोचा तो उनका ध्यान एक ऐसी इंडस्ट्री पर गया जिसके बारे में ज़्यादा जानकारी मौजूद नहीं थी और ना ही कोई भविष्य की गारंटी दे सकता था.
लेकिन सायरस ने यह जोख़िम उठाया और वैक्सीन बनाने के कारोबार में क़दम रखा. यह वह दौर था जब भारत में सीमित स्तर पर वैक्सीन का उत्पादन होता था और उसमें भी सरकार की भूमिका ज़्यादा होती थी.
तब मुंबई में हाफ़किन इंस्टीट्यूट वैक्सीन का उत्पादन करती थी. पूनावाला के फ़र्म से जो घोड़े बूढ़े हो जाते थे उनका इस्तेमाल सर्पदंश और टिटनेस का टीका बनाने में होता था. इसकी वजह यह थी कि घोड़ों के रक्त में मौजूद सीरम से एंटीबॉडी का निर्माण किया जाता था. सायरस की नज़र इस पर गयी तो उन्होंने अपने घोड़ों का इस्तेमाल ख़ुद ही करने का फ़ैसला लिया.
सायरस पूनावाला ने टीवी टुडे को एक इंटरव्यू में बताया है, “हमलोग अपने घोड़ों को मुंबई के हाफ़किन इंस्टीट्यूट को दिया करते थे. वहां के एक डॉक्टर ने मुझे बताया कि आपके पास घोड़े हैं, ज़मीन है. अगर आप वैक्सीन उत्पादन में आना चाहते हैं तो आपको केवल एक प्लांट स्थापित करना है.”
इस सलाह में उन्होंने नई इंडस्ट्री के लिए अवसर देखा. 1966 में उन्होंने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की स्थापना की.
यह वह दौर था जब भारत सहित दुनिया भर में संक्रामक बीमारियों के ख़िलाफ़ सरकारें टीकाकरण का अभियान चला रही थीं, जिसके चलते वैक्सीन रिसर्च, उसके विकास और उसके इस्तेमाल पर ध्यान दिया जा रहा था. जल्द ही सीरम इंस्टीट्यूट ने कई बीमारियों के लिए वैक्सीन का उत्पादन शुरू कर दिया.
हाफ़किन इंस्टीट्यूट के कई रिसर्चर सीरम आ गए. 1971 में विकसित खसरा और कंठमाला रोग के टीके प्रभावी रहे. जल्दी ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया गया, सीरम ने इस कार्यक्रम को अवसर के तौर पर देखा. सीरम ने यूरोप और अमेरिकी तकनीक लाकर अपना उत्पादन बढ़ाया और उत्पादों की क़ीमत सस्ती रखी.
हालांकि सामाजिक स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रम, मसलन टीकाकरण आज भी सरकार के हाथों में है, ऐसे में हर किसी को सरकार के प्रावधानों और अवरोधों का सामना करना पड़ता है, सीरम को भी इससे गुज़रना पड़ा.
सायरस पूनावाला ने एक इंटरव्यू में बताया है, “कई तरह के परमिट हासिल करने होते थे, उसमें महीनों और सालों लगते थे. पहले 25 साल तो काफ़ी मुश्किल भरे रहे. इसके बाद हमारी वित्तीय स्थिति बेहतर हुई. पेपरवर्क करने के लिए हमारे पास उपयुक्त लोगों की टीम थी जो दिल्ली जाकर सरकारी अधिकारियों के रहमो-करम पर काम करते थे. ऐसी ही स्थिति आज भी है. अगर इन सरकारी अधिकारियों का ख़याल नहीं रखा जाए तो परमिट हासिल करने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है. हालांकि इतने सालों के बाद सीरम इंस्टीट्यूट के आवेदन को संदेह की नज़र से नहीं देखा जाता है.”
सायरस के समय में ही सीरम इंस्टीट्यूट का वैक्सीन उत्पादन में दबदबा स्थापित हो गया. वह दुनिया भर के देशों में वैक्सीन की आपूर्ति करने लगी और सायरस की गिनती दुनिया के अमीर लोगों में होने लगी.
सायरस ने सीरम इंस्टीट्यूट की शुरुआत पाँच लाख रुपये से की थी और फ़ोर्ब्स की सूची के मुताबिक़ वे दुनिया के 165वें नंबर के अमीर शख़्स हैं. फ़ोर्ब्स इंडिया की सूची के मुताबिक़ वे भारत के छठे सबसे अमीर आदमी हैं.
अदार का दौर और 35 देशों से 165 देशों में फैला कारोबार
अदार पूनावाला इंग्लैंड से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 2001 में सीरम इंस्टीट्यूट से जुड़े. पहले उन्होंने सेल्स विभाग से काम शुरू किया. आज की तारीख़ में बदलते और विस्तृत होते सीरम समूह पर अदार की छाप ज़्यादा दिखती है, उनके पिता की कम. सायरस के दौर तक सीरम मुख्यतौर पर भारत में ही सक्रिय था.
2011 में अदार पूनावाला सीरम समूह के सीईओ बने. इसके बाद उन्होंने दो चीज़ों पर ध्यान केंद्रित किया है- उन्होंने एक तो उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर ध्यान दिया और सीरम के ज़रिए दुनिया के ज़्यादा से ज़्यादा देशों में वैक्सीन आपूर्ति पर ध्यान दिया.
विस्तार करने की योजना के तहत सीरम ने 2012 में डच सरकारी वैक्सीन निर्माता कंपनी का अधिग्रहण कर लिया. इसके बाद दुनिया की नज़र में सीरम आ गया क्योंकि इसके बाद कंपनी दुनिया भर में सबसे ज़्यादा वैक्सीन उत्पादित करने वाली कंपनी बन गई.
2001 में सीरम 35 देशों को वैक्सीन की आपूर्ति किया करता था, आज की तारीख़ में सीरम दुनिया भर के 165 देशों में वैक्सीन की आपूर्ति करता है.
हालांकि इस विस्तार और तकनीक में निवेश की एक अन्य वजह की चर्चा पूनावाला लगातार करते रहे हैं कि यह पूरी तरह से उनका पारिवारिक कारोबार है. इसमें केवल परिवार का पैसा लगा हुआ है.
कंपनी ने कुछ प्राइवेट इक्विटी के ज़रिए पैसा जुटाने की कोशिश भी की थी लेकिन वह संभव नहीं हो पाया, अगर ऐसा हुआ होता तो सीरम समूह आम लोगों के बीच पैसा जुटाने के लिए जाता.
हालांकि कोरोना की वैक्सीन तैयार करने के लिए सीरम ने बड़े निवेश का जोख़िम उठाया. अदार पूनावाला ने फ़ोर्ब्स इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा है, “हमलोग जोख़िम उठाने में इसलिए सक्षम हुए क्योंकि यह लिस्टेड कंपनी नहीं है. अगर ऐसा होता तो हमें निवेशकों, बैंक और कई लोगों को जवाब देने होते.”
इस लेख की शुरुआत में ही मैंने ज़िक्र किया है कि पूनावाला साम्राज्य का सूत्र जोख़िम लेने का भाव है. कोरोना की वैक्सीन तैयार करने के लिए भी अदार पूनावाला ने तब बड़े निवेश का फ़ैसला लिया जब वैक्सीन को लेकर रिसर्च का दौर शुरू ही हुआ था. उन्होंने मई, 2020 में ऐस्ट्राज़ेनेका से इस बारे में बातचीत की और वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया से जुड़े.
एक दौर ऐसा भी आया जब हर साल 100 करोड़ डोज़ वैक्सीन तैयार करने का फ़ैसला लिया गया. लेकिन इसके लिए बड़े निवेश, बड़ी जगह, तकनीक, श्रमिक और कच्चे माल की ज़रूरत होती. यह भी फ़ैसला लिया गया कि ग़रीब देशों को सस्ती वैक्सीन मुहैया कराने के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन से जुड़ा जाए.
इन सबके साथ भारत में वैक्सीन की आपूर्ति की ज़िम्मेदारी भी निभानी थी. ऐस्ट्राज़ेनेका के साथ कोविशील्ड के लिए अनुबंध करने के साथ सीरम ने अमेरिका और यूरोप के दूसरे वैक्सीन तैयार करने के साथ-साथ अपनी वैक्सीन के लिए भी रिसर्च किया है.
कोरोना की चार से पाँच वैक्सीन सीरम इंस्टीट्यूट में तैयार करने की योजना थी. यही वजह है कि दुनिया के अन्य देशों के नेताओं ने खुले तौर पर कहा कि उन्हें सीरम इंस्टीट्यूट से ईर्ष्या है.
टीकाकरण की शुरुआत और…
सीरम इंस्टीट्यूट के विकास ही नहीं बल्कि कोरोना संक्रमण महामारी को लेकर दूरदर्शी सोच रखने वाले पूनावाला को टीकाकरण की शुरुआत से आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ रहा है. इस आलोचना की वजह भारत में टीकाकरण की धीमी गति है.
भारत में जब कोरोना संक्रमण की दूसरी घातक लहर का प्रकोप बढ़ा तो टीकाकरण के लिए भी दबाव बढ़ा. लेकिन वैक्सीन के लिए कई विकल्प भी मौजूद नहीं हैं और ना ही आने वाले दिनों में यह संभव होता दिख रहा है. इसके लिए भारत की नाकाम टीकाकरण नीति ज़िम्मेदार है.
शुरुआत में देश के साथ हुए समझौते के तहत वैक्सीन विदेश भेजी गईं. भविष्य की योजना नहीं बनाई गई और ना ही वैक्सीन के ऑर्डर दिए गए और इसके बाद कई उम्र वर्ग के लिए टीकाकरण की घोषणा कर दी गई. जब वैक्सीन का उस स्तर पर उत्पादन ही नहीं हो रहा है फिर भी राज्यों को वैक्सीन ख़रीदने की अनुमति दी गई. इसके अलावा दुनिया भर में उपलब्ध दूसरी वैक्सीनों के भी ऑर्डर नहीं दिए गए
इन सबके बाद भी यह सवाल सरकार के साथ-साथ सीरम इंस्टीट्यूट से पूछा जा सकता है कि जब उसके पास दुनिया की सबसे बड़ी उत्पादन क्षमता है तो फिर ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई?
अदार पूनावाला ने वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू होने से पहले सलाह दी थी. उन्होंने ट्वीट किया था कि भारतीय लोगों को वैक्सीन की दो डोज़ देने के लिए 80,000 करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी. उन्होंने यह भी कहा था कि जितने डोज़ चाहिए उनकी आपूर्ति के लिए थोड़ा समय भी लगेगा.
Quick question; will the government of India have 80,000 crores available, over the next one year? Because that's what @MoHFW_INDIA needs, to buy and distribute the vaccine to everyone in India. This is the next concerning challenge we need to tackle. @PMOIndia
— Adar Poonawalla (@adarpoonawalla) September 26, 2020
उन्होंने भारत को प्राथमिकता देने की नीति पर काम भी शुरू किया और वैक्सीन की सभी ख़ुराक केंद्र सरकार को सौंपी. उन्होंने ग़रीब देशों के साथ हुए समझौते के तहत उनके टीकाकरण की ज़िम्मेदारी की बात भी उठायी.
इसके अलावा वैक्सीन की लागत और सरकार को जिन पैसों पर वैक्सीन मुहैया करायी जा रही है, उसमें भी अंतर है. इन सबके बीच अमेरिका ने कच्चे माल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी, जिसके बाद अदार पूनावाला ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को टैग करते हुए ट्वीट भी किया.
Respected @POTUS, if we are to truly unite in beating this virus, on behalf of the vaccine industry outside the U.S., I humbly request you to lift the embargo of raw material exports out of the U.S. so that vaccine production can ramp up. Your administration has the details. 🙏🙏
— Adar Poonawalla (@adarpoonawalla) April 16, 2021
हालांकि इन सबके बाद भी टीकाकरण की नीति और वास्तविक कार्यक्रम की आलोचना जारी है. सीरम इंस्टीट्यूट और अदार पूनावाला को समय-समय पर अपना पक्ष रखना पड़ रहा है. जब केंद्र सरकार ने राज्यों को वैक्सीन ख़रदीने की अनुमति दी है तब से इस बात का कोई स्पष्ट जवाब उपलब्ध नहीं है कि वैक्सीन कब तक उपलब्ध होगी.
केंद्र सरकार ने इस बात का जवाब नहीं दिया है कि केंद्र को 150 रुपये में मिलने वाली वैक्सीन राज्य सरकारों को 400 रुपये में क्यों मिलेगी. इस मामले पर अदालत में भी सुनवाई चल रही है.
राज्य सरकारें वैक्सीन उत्पादकों पर दबाव बढ़ा रही हैं. बढ़ते दबाव के चलते ही केंद्र सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट के वैक्सीनों के निर्यात पर पाबंदी लगाई है. जिसके बाद से सीरम इंस्टीट्यूट के दूसरे देशों के साथ क़रार का अस्तित्व संकट में है.
कुछ दिनों पहले, अदार ने एक प्रेस रिलीज के ज़रिए दो रहस्यों से पर्दा उठाया है. एक तो उन्होंने यह बताया कि भारतीय टैक्सपेयरों के पैसे से उत्पादित कोई भी वैक्सीन निर्यात नहीं की गई है और दूसरी बात उन्होंने यह बताई कि साल के अंत तक वे वैक्सीन निर्यात करने की स्थिति में नहीं हैं.
हालांकि उन्होंने अपनी प्रेस रिलीज़ में दूसरे देशों की मदद की बात ज़रूर की है.
प्रेस रिलीज के मुताबिक़, “कोरोना की पहली लहर के दौरान हमने दूसरे देशों की मदद की, यही वजह है कि दूसरे लहर के दौरान वे हमारी मदद कर रहे हैं.” इससे सीरम इंस्टीट्यूट मौजूदा समय में किस संकट में फँसा हुआ है, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
इन विवादों के बीच अदार पूनावाला लंदन चले गए. उन्होंने एक स्थानीय समाचार पत्र को दिए इंटरव्यू में कहा कि अगर वे कुछ मुद्दों पर बोलेंगे तो उनके जीवन को ख़तरा उत्पन्न हो जाएगा. कुछ ही दिन पहले केंद्र सरकार ने उन्हें सुरक्षा मुहैया करायी है. लंदन के मेफ़ेयर इलाक़े में बड़ी रक़म ख़र्च करके उन्होंने एक लग्ज़री मकान लीज़ पर लिया है, जिसकी स्थानीय मीडिया में काफ़ी चर्चा है.
उन्होंने लंदन में दिए एक इंटरव्यू में यह भी कहा कि सीरम अब भारत से बाहर उत्पादन शुरू करेगा. इसके तुरंत बाद उन्होंने ब्रिटेन में एक बड़े निवेश की घोषणा की. ऐसी स्थिति में इस बात की चर्चा भी हो रही कि क्या अदार पूनावाला ने देश छोड़ दिया है?
हालांकि पूनावाला परिवार और सीरम इंस्टीट्यूट ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि वे भारत में वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और प्रत्येक शख़्स को वैक्सीन मिलेगी. लेकिन भारत से बाहर जाने के बाद अदार क्या कुछ करते हैं यह अभी किसी को नहीं मालूम है.
अदार लाइफ़स्टाइल की वजह से भी चर्चा में रहे हैं
अदार पूनावाला इन दिनों भले कोरोना वैक्सीन के चलते चर्चा में हैं, लेकिन उनका परिवार अपने लाइफ़स्टाइल की वजह से भी चर्चा में रहा है. पुणे में अदार का स्टड फ़र्म और फ़ॉर्म हाउस भी बेहद शानदार हैं, हालांकि इन दिनों चर्चा उनके लंदन के मेफ़ेयर स्थित मकान की हो रही है.
2015 में उन्होंने मुंबई में समुद्री तट पर एक बड़ा मकान ख़रीदा था, जो पहले अमेरिकी वाणिज्यिक दूतावास था. उन्होंने यह मकान 11 करोड़ अमेरिकी डॉलर में ख़रीदा था. यह उस वक़्त मुंबई का सबसे महँगा मकान था.
उनका आलीशान अंदाज़ हवाई जहाज़ में बने उनके दफ़्तर या फिर पुणे स्थित उनके घर की छत से ज़ाहिर होता है. फ़ोर्ब्स इंडिया में प्रकाशित एक लेख के मताबिक़ उनके घर की छत पर रोम के चित्रकार माइकल एंजेलो और दूसरे यूरोपीय कलाकारों की कलाकृतियों के प्रतिरूप बने हुए हैं.
अपने पिता सायरस की तरह ही अदार को महँगी कारों का भी शौक़ है. उनके पास क़रीब 20 कारें हैं जिनमें रॉल्स रॉयस, फ़ेरारी, बेंटले और लैम्बोर्गिनी जैसी महँगी गाड़ियां शामिल हैं.
पूनावाला को स्पीड पसंद है, इसलिए उन्होंने अपने घर में बोइंग 737, फ़ॉर्मूला वन और फ़ाइटर जेट के मॉडल लगाए हैं. वैसे अदार पूनावाला अपनी पत्नी नताशा पूनावाला के साथ बॉलीवुड की पार्टियों में भी शिरकत करते रहे हैं. साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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