साल 2009, रजत जायसवाल अमेरिका में पायलट ट्रेनिंग लेकर और उनके स्कूल के दोस्त फरमान बेग यूके से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई कर के लौटे थे। रजत को स्पाइसजेट एयरलाइंस में पायलट की नौकरी मिल गई और फरमान को एक आईटी कंपनी में। लेकिन दोनों हर मुलाकात पर चिंतित रहते कि वो बस नौकरी तक खुद को सीमित नहीं रखना चाहते। फिर क्या करें? इस सवाल का जवाब 2016 में मिला, जब दोनों ने मिलकर एक फास्ट फूड चेन- ‘वाट अ बर्गर’ की शुरुआत की।
आइडियाः बर्गर में स्वाद अचार का
2009 से 2015 करीबन छह साल तक रजत और फरमान बिजनेस के लिए आइडिया तलाशते रहे। चूंकि दोनों नौकरी कर रहे थे तो कभी वीकेंड पर तो कभी महीने में वे बात करते। कुछ बिजनेस के बारे में रिसर्च करते, लेकिन बात नहीं बनती। ऐसे ही एक दिन वे बिजनेस प्लान की मीटिंग के सिलसिले में ही फास्ट फूड स्टोर में बैठे थे।
वहां बर्गर खाते-खाते उन्होंने गौर किया कि लोगों में बाहर खाने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। फिर मैकडोनाल्ड्स हो या बर्गर किंग के बर्गर बनाने का फॉर्मूला विदेशी है। अगर वो ऐसे बर्गर बनाएं जिनके स्वाद में देसीपन हो शायद यही उनके बिजनेस के लिए बेस्ट होगा। कुछ दिनों के रिसर्च के बाद 2016 में दिल्ली में उन्होंने अपना पहला स्टोर खोला।
स्टार्टः पहले जहाज उड़ाते, फिर आलू अचारी बर्गर का फॉर्मूला सोचते
रजत कहते हैं कि दिल्ली में पहला स्टोर खोलते वक्त कई तरह का डर था, लेकिन परिवार में सभी बिजनेसमैन हैं तो एक भरोसा भी था। हालांकि परिवार वालों का कहना था कि उन्हें किसी और बिजनेस में हाथ डालना चाहिए। इसी डर की वजह से रजत ने अपनी पायलट की नौकरी भी नहीं छोड़ी, लेकिन इसके चलते उन्हें हर दिन के दो हिस्से बांटने पड़े। दोहरी जिंदगी जीनी पड़ी। आधे में वे अपनी नौकरी करते तो आधे में अपना बिजनेस।
अहम बात ये कि रजत ने अब भी अपनी नौकरी नहीं छोड़ी है। वे अब भी देश की प्रमुख एयरलाइंस में पायलट हैं। रजत कहते हैं कि ये एक ऐसा प्रोफेशन है जिसमें जहाज का इंजन बंद होने के बाद आपके पास कोई काम नहीं होता। आपका काम केवल तभी है जब आप जहाज उड़ा रहे हैं। इसलिए उनके पास काफी वक्त बचता था।
रजत कहते हैं कि तब सबसे पहला आइटम जिसे लोगों ने पसंद किया वो आलू अचारी था। इस बर्गर में अचार का स्वाद डाला जाता है। तब हमें समझ आया कि लोगों को वो आइटम ज्यादा पसंद आते हैं जो बचपन से वो खाते आए हैं। फिर इसी तर्ज पर हमने कई देसी फास्ट फूड लॉन्च किए।
फंडिंग: अभी सेल्फ फंडिंग से ही चल रहा है बिजनेस
रजत कहते हैं कि उन्होंने और फरमान ने अपनी नौकरी से पैसे जोड़े थे। इसके बाद उन्हें पारिवारिक सपोर्ट भी था। इसलिए शुरुआती दौर में फंड न लेने की स्ट्रैटजी थी, लेकिन अब वो अपने बिजनेस को विदेश भी ले जाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी ओर से फंड पाने के लिए आवश्यक सभी काम कर लिए हैं। जल्द ही उनकी कंपनी में कुछ बड़े इनवेस्ट आने वाले हैं। हालांकि अभी वो इसका खुलासा नहीं करना चाहते।
बिजनेस मॉडलः अपना स्टोर और फ्रेंचाइजी बांटकर भी करते हैं कमाई
रजत कहते हैं कि स्टोर खुलने के साथ ही ग्राहकों की कमी नहीं हुई। इसलिए कभी कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ा। 2016 से लेकर 2019 के आखिर तक कभी कोई चुनौती नहीं आई। बल्कि हर तिमाही में कंपनी ने ग्रोथ ही हासिल की, लेकिन 2020 के शुरुआती महीनों से ही ग्राहकों की कमी होने लगी थी। पहले लॉकडाउन में सेल पूरी तरह से ठप हो गई थी।
लेकिन जब आउटलेट बंद थे तब हमने कई ऐसी चीजें सीखीं जो जिंदगीभर के लिए हमारे लिए फायदेमंद होने वाली हैं। जैसे हमने आउटलेट के खर्च कम कर लिए। उनके बिना भी बिजनेस पर कोई फर्क नहीं पड़ा। पिछले साल जब अक्टूबर तक मार्केट खुला तो हमने पहले से ज्यादा रफ्तार पकड़ ली थी।
रजत के अनुसार उनके बिजनेस के दो सेगमेंट हैं। पहला जिसे वो खुद बनाते हैं, इसे वो कंपनी स्टोर कहते हैं। इसमें ग्राहकों के आधार पर कंपनी को औसतन अब तक एक नियत फायदा होता रहा है। दूसरे सेगमेंट में वो अपनी चेन की फ्रेंचाइजी बेचते हैं। इसमें रॉयल्टी के तौर वो हर महीने की सेल पर 6% देते हैं। फ्रेंचाइजी देते वक्त पांच साल की जो लाइसेंस फीस हमें मिलती है वो 10 लाख रुपए है।
टारगेटः विदेशों में भी इंडियाना बर्गर की है खूब मांग, वहां भी जाएंगे
रजत और फरमान पहले भी विदेश में रह चुके हैं। उनके संबंध विदेशों में पहले से हैं। जब उन्होंने अपने विदेशी दोस्तों को अपने बिजनेस के बारे में बताया तो उन्होंने इसकी फ्रेंचाइजी वहां खोलने की सलाह दी। अब दोनों ही फाउंडर इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
लेकिन इससे पहले रजत एक बात पर जोर देते हैं कि वो फास्ट फूड को भारत के गांवों और शहरों से दूर-दराज इलाकों तक भी पहुंचाना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने राजस्थान, झारखंड, असम और जम्मू में कई जगहों का मुआयना किया हुआ है। फिलहाल वे रांची, जयपुर, गुवाहाटी और उत्तर प्रदेश के कई छोटे शहरों में भी अपने आउटलेट चला रहे हैं। वे अभी और ज्यादा छोटे शहरों यहां तक कि गांवों में भी अपने बिजनेस को लेकर जाना चाहते हैं। साभार-दैनिक भास्कर
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