टीका लगवाने के बाद लोग खुद को मानसिक और शारीरिक स्तर पर बहुत अधिक सुरक्षित महसूस करते हुए सबकुछ करने के लिए खुद को स्वतंत्र महसूस करेंगे लेकिन कोरोना महामारी के काल में इस तरह के सकारात्मकता भरे व्यवहार में कदम-कदम पर सावधानी बरतना बेहद आवश्यक है।
देश की जनता कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का सामना बेहद नकारात्मक परिस्थितियों के साथ संघर्ष करके लगातार कर रही है। वह ध्वस्त चिकित्सा व्यवस्था और विभिन्न प्रकार के आवश्यक संसाधनों के अभाव के बाद भी कोरोना वायरस के संक्रमण से पूर्ण हिम्मत और हौसले के साथ लड़ रही है। अपनों के असमय काल का ग्रास बनने के चलते कोरोना की बेहद घातक इस दूसरी लहर ने बहुत सारे देशवासियों को जीवन भर के लिए बहुत अधिक गहरे जख्म दे दिए हैं। वैसे एक सच्चाई यह भी है कि जिस समय पूरी दुनिया एक अनजान, अदृश्य और अबूझ बेहद घातक कोरोना वायरस से बुरी तरह डरी-सहमी हुई थी, तब भारत के विज्ञानी विश्व समुदाय को उस जानलेवा घातक कोरोना वायरस की काट उपलब्ध कराने में दिन-रात तत्परता से काम करने में जुटे हुए थे।
आज देश के उन विज्ञानियों की मेहनत के बलबूते ही भारत ने दुनिया को कोरोना का कारगर टीका बनाकर दिया है। वैसे भी आजकल भारत दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चला रहा है। भयंकर आपदाकाल के समय में भारत एक बार फिर दुनिया के लिए उम्मीदों की किरण का बहुत बड़ा केंद्र बनकर उभरा है, क्योंकि हमारे देश में बनने वाला कोरोना वायरस का टीका बेहद प्रभावी होने के साथ-साथ कीमत, तापमान व भंडारण के दृष्टिकोण से विकासशील और विकसित सभी श्रेणी के देशों के लिए बेहद अनुकूल है। वैसे कोरोना की दूसरी लहर के मद्देनजर देखा जाए तो देशवासियों को भविष्य में इस वायरस के संक्रमण से बचाने के लिए जल्द कोरोना का टीका लगवा कर उनके जीवन को सुरक्षित करना होगा। लेकिन यह तो भविष्य में आने वाला समय ही बताएगा कि भारत के कर्ताधर्ताओं ने कोरोना की दूसरी लहर से कुछ सबक लिया है या नहीं। हालांकि विश्व के तमाम देशों के आंकड़ों के आधार पर भारत सरकार लगातार यह कहकर खुद अपनी पीठ थपथपा रही है कि भारत दुनिया में सबसे तेज टीकाकरण करने वाला देश है।
आंकड़ों के अनुसार देखा जाए तो यह बात सत्य भी है, लेकिन इसके लिए इतनी अधिक आत्ममुग्धता ठीक नहीं है। अभी तक के आंकड़ों के अनुसार विश्व में 141 करोड़ लोगों को कोरोना के टीके की पहली डोज दी जा चुकी है, जिसमें से 34.6 करोड़ लोग दूसरी डोज लेकर अपना पूर्णरूप से टीकाकरण करवा चुके हैं, जो पूरी दुनिया की आबादी का मात्र 4.4 प्रतिशत बैठता है। वहीं भारत में 16 जनवरी 2021 को फ्रंटलाइन वर्कर के साथ शुरू हुए टीकाकरण अभियान का विस्तार करके बहुत कम समय में ही 18 करोड़ लोगों को टीके की पहली डोज लगाई जा चुकी है। अब तक करीब चार करोड़ लोगों ने दोनों डोज लेकर अपना टीकाकरण पूरा कर लिया है। लेकिन अगर हम बात जनसंख्या के प्रतिशत की करें तो मात्र तीन प्रतिशत लोगों को ही भारत में कोरोना के टीके की दोनों डोज लग पाई है, जो स्थिति हमें विकासशील व अन्य बहुत सारे देशों से बहुत पीछे करती है। वैसे भी कोरोना की तीसरी लहर के प्रकोप से बचने के मद्देनजर यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। टीके की डोज की भारी किल्लत की वजह से देश में जनसंख्या के हिसाब से टीकाकरण का कार्य बेहद धीमा चल रहा है, उस हिसाब से तो टीके की दोनों डोज देशवासियों को देने में लगभग दो से तीन वर्ष का समय लग सकता है।
इतने लंबे समय तक कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए हम सभी देशवासियों को सरकार की कोरोना गाइडलाइंस का अक्षरश: पालन करना होगा। हालांकि कोरोना विशेषज्ञों के अनुसार जब तक आप बचाव के उपाय करते हुए सावधानियां बरतते हैं तब तक सब ठीक है। लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि टीका लगने के बाद कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा बेहद कम हो जाता है। लेकिन अगर आप टीका लगने के बाद भी रोजमर्रा के जीवन में लापरवाही करते हैं, तो उसका परिणाम यह होगा कि आप भी वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। वैसे टीका लगवाने के बाद लोग खुद को मानसिक और शारीरिक स्तर पर बहुत अधिक सुरक्षित महसूस करते हुए सबकुछ करने के लिए खुद को स्वतंत्र महसूस करेंगे, लेकिन कोरोना महामारी के काल में इस तरह के सकारात्मकता भरे व्यवहार में कदम-कदम पर सावधानी बरतना बेहद आवश्यक है।
कोरोना आपदाकाल के आने वाले समय में हम सभी देशवासियों के रोजमर्रा के जीवन को सुरक्षित व सरल बनाने के लिए कोरोना का टीका लगवाना आवश्यक है। भारत जैसे करीब 138 करोड़ की आबादी वाले देश में इसके लिए भारी मात्रा में टीके की डोज की आवश्यकता है। फिलहाल 18 वर्ष से कम आयु वर्ग वाले 32 करोड़ लोगों के लिए टीके का ट्रायल चलने के कारण देश में कोरोना के टीके अभी उपलब्ध नहीं हैं। तो देश में बाकी बची आबादी को कोरोना का टीका सरकार को जल्द उपलब्ध करवाने हैं। देश में हर्ड इम्युनिटी यानी सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता लक्ष्य हासिल करने के लिए आबादी का लगभग 70 प्रतिशत यानी करीब सौ करोड़ लोगों का दोनों डोज लगाकर टीकाकरण होना बेहद आवश्यक है। इसके लिए कम से कम 193.2 करोड़ डोज चाहिए, जिसमें से 18 करोड़ डोज लोगों को दी जा चुकी हैं। अभी कम से कम 175.2 करोड़ टीके की डोज देशवासियों के टीकाकरण करने के लिए चाहिए, क्योंकि हर्ड इम्युनिटी विशेष तौर पर टीका लगाए जाने से हासिल की जाती है। वैसे इस संबंध में अधिकतर विज्ञानियों का मत है कि वायरस के प्रसार को रोकने के लिए क्षेत्र विशेष में रहने वाली कम से कम 70 प्रतिशत आबादी में घातक विषाणु को हराने के लिए एंटीबॉडीज विकसित होनी चाहिए। इस लक्ष्य को एक वर्ष के अंदर हासिल करने के लिए प्रतिदिन 48 लाख लोगों को टीका लगाना होगा, जबकि आज के समय में हम 20 से 25 लाख डोज ही प्रतिदिन लगा पा रहे हैं।
हालांकि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत सरकार व कंपनियों की निजी स्तर पर जबरदस्त तैयारियां चल रही हैं। इस कड़ी में 18 साल से कम उम्र के लोगों को टीका उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से ट्रायल की अनुमति भारत बायोटैक को दे दी है। अभी हमारे देश में र्नििमत कोविशील्ड और कोवैक्सीन के टीके की डोज देश में टीकाकरण के लिए उपलब्ध हैं। रूस के टीके स्पूतनिक का इस्तेमाल भी शुरू हो गया है। अन्य कंपनियों के टीकों की डोज उपलब्ध करवाने के लिए विचार चल रहा है। लेकिन इस सबकी मौजूदा डोज व भविष्य में उपलब्ध होने वाली डोज से भारत में टीका कार्यक्रम का लक्ष्य जल्द हासिल नहीं हो सकता है, इसके लिए सरकार को कंपनियों के साथ मिलकर टीके के उत्पादन को बढ़ाने के तरीकों पर कार्य करना होगा, क्योंकि कोरोना से बचाव के लिए लगने वाले लॉकडाउन से लोगों व भारत सरकार को जबरदस्त राजस्व की हानि बहुत लंबे समय से हो रही है। इसके सामने सरकार के द्वारा टीकाकरण पर खर्च होने वाली धनराशि कुछ भी मायने नहीं रखती है। इसलिए भारत सरकार को देश में टीका बनाने वाली कंपनियों को कार्य करने के लिए धन के साथ दबाव मुक्त बेहतर माहौल, कच्चा माल व अन्य सभी संसाधन बड़े पैमाने पर उपलब्ध करवाने चाहिए। साभार-दैनिक जागरण
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