पढ़िए बीबीसी न्यूज़ हिंदी की ये खबर…
हो सकता है कि आपके जानने वालों में भी किसी के साथ ऐसा हुआ हो.
कोरोना की जंग जीत कर वो घर आ गए हों. लेकिन अचानक कुछ हफ़्तों बाद एक दिन उनके ना होने की ख़बर आपको मिली हो.
कई मरीज़ों में कोविड19 के दौरान या उससे ठीक होने के बाद दिल संबंधित या दूसरी बीमारियाँ और कॉम्प्लिकेशन देखने को भी मिल रहे हैं. आख़िर क्यों?
कोविड19 बीमारी का दिल से क्या कनेक्शन है?
इसे समझने के लिए ये जानना ज़रूरी है कि दिल का कोविड ये क्या संबंध है.
दरअसल हार्ट को काम करने के लिए ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ी है. ऑक्सीजन युक्त खून को शरीर के दूसरे अंगों में पहुँचाने में हार्ट की भूमिका होती है. ये ऑक्सीजन हार्ट को लंग्स यानी फेफड़ों से ही मिलता है.
कोरोना वायरस का संक्रमण सीधे फेफड़ों पर असर करता है. कई मरीज़ों में ऑक्सीजन लेवल कम होने लगता है. ऑक्सीजन की कमी, कुछ मरीज़ में दिल पर भी असर कर सकती है. ऐसा होने पर दिल की मांसपेशियों को ऑक्सीजन युक्त खून पंप करने के लिए ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जिसका सीधा असर हार्ट के टिश्यू (ऊतक) पर पड़ता है.
इसके जवाब में शरीर में इंफ्लेमेशन पैदा होती है. लेकिन कभी-कभी ज़्यादा इंफ्लेमेशन की वजह है हार्ट मसल पर बुरा असर पड़ता है, हार्ट बीट तेज़ हो सकती है, जिसकी वजह से हार्ट के खून पंप करने की क्षमता कम हो सकती है. जिनको ऐसी कोई बीमारी पहले से है, उनमें दिक़्क़त बढ़ भी सकती है.
य़े तो हुई कोविड19 बीमारी के दिल से संबंध की बात.
लेकिन कोविड19 के मरीज़ कैसे पहचाने कि उन्हें हृदय संबंधित दिक़्क़त है? क्या सभी कोविड19 के मरीज़ में हार्ट पर बुरा असर पड़ता ही है? वो कौन से मरीज़ हैं जिनको अपने हार्ट की चिंता ज़्यादा करनी चाहिए?
ऐसे तमाम सवाल हमने पूछे देश के दो जाने माने हृदय रोग विशेषज्ञों से. जानिए क्या है उनकी सलाह.
हार्ट पर हुआ असर या नहीं – कैसे पता लगाएँ?
डॉक्टरों के मुताबिक़ किसी भी कोविड19 के मरीज़ को
- साँस लेने में दिक़्क़त हो (ब्रेथलेसनेस) या
- सीने में दर्द की शिकायत (चेस्ट पेन) या
- अचानक से दिल की धड़कन रह रह कर तेज़ हो रही हो ( पैल्पिटेशन ) – तो डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए.
इन तीनों लक्षणों को कोविड19 के मरीज़ – चाहे वो ठीक हो गए हों या आइसोलेशन में हैं, उन्हें दरकिनार नहीं करना चाहिए.
कोरोना मरीज़ में हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट की शिकायत क्यों?
डॉक्टर अशोक कहते हैं, “सीने में दर्द, ब्लड क्लॉटिंग की वजह से हो सकता है. जिसकी वजह से हार्ट अटैक की शिकायतें सामने आ रही है.
कोविड19 के गंभीर लक्षण वाले मरीज़ में हार्ट अटैक की संभावना अस्पताल से छुट्टी के 4-6 हफ़्तों के बीच कभी भी हो सकती है. पहला महीना सबसे ज़्यादा अहम होता है. ऐसे मरीज़ को डिस्चार्ज के बाद 4-6 हफ़्ते तक ब्लड थिनर का इस्तेमाल करना चाहिए. डोज़ मरीज़ डॉक्टर से पूछ कर ही लें.
इसके अलावा साँस लेने में दिक़्क़त होने (ब्रेथलेसनेस) की वजह से कई बार कार्डियक अरेस्ट भी हो सकता है.”
कुछ लोगों में इस कोविड19 की वजह से दिल की धड़कन तेज़ होने की भी दिक़्क़त देखने को मिलती है. इस वजह से दिल के रिदम से जुड़ी बीमारी हो सकती है. किसी मरीज़ में हार्ट रिदम तेज़ हो सकता है, किसी में धीरे भी. इसलिए डॉक्टर धड़कनों को मॉनिटर करने की सलाह देते हैं.
स्टेरॉयड का असर
हमारे दूसरे विशेषज्ञ हैं मैक्स अस्पताल के कार्डियक साइंस के चेयरमैन डॉक्टर बलबीर सिंह.
डॉक्टर बलबीर और डॉक्टर अशोक दोनों का मानना है कि कोविड19 के इलाज में स्टेरॉयड की एक महत्वपूर्ण भूमिका है. लेकिन मरीज़ को ये कब देना है – ये टाइमिंग बहुत मायने रखती है.
डॉक्टर बलबीर कहते हैं, “ये दवा कोविड19 के मरीज़ को नहीं दी जानी चाहिए. इसके बहुत साइड इफेक्ट होते हैं. ख़ास कर डायबिटीज वाले मरीज़ को. उनमें स्टेरॉयड दूसरे बैक्टीरिया और फंगस को प्रमोट करते हैं, ताकि वो अपना घर बना सकें. ब्लैक फंगस बीमारी भी उन्हीं को होती है, जिसको स्टेरॉयड दिए गए हैं.
इस वजह से जिस मरीज़ को ऑक्सजीन की कमी है, केवल उन्हें ही स्टेरॉयड दिए जाने की ज़रूरत है. ऐसे ज़रूरतमंद 10-15 फ़ीसदी मरीज़ में 7 दिन के बाद ही इसे शुरू करना चाहिए. इसे डॉक्टर को ही लिख कर देना चाहिए, अस्पताल में दिया जाना चाहिए. जल्द दिए जाने पर, ज़्यादा मात्रा में दिए जाने पर ये घातक साबित हो सकता है.
कौन से टेस्ट कब कराएँ?
डॉक्टर बलबीर कहते हैं, “कोविड19 होने पर पहले हफ़्ते में वायरस शरीर के अंदर रेप्लिकेट करता है. इस दौरान खांसी, बुख़ार, बदन दर्द जैसी शिकायतें ही रहती है. लेकिन पहले हफ़्ते में साँस फूलने और सीने में दर्द जैसी शिकायत नहीं होती. आम तौर 8-10 दिन के बाद शरीर वायरस के ख़िलाफ़ रिएक्ट करना शुरू करता है. उस दौरान शरीर में इंफ्लेमेशन की शुरुआत होती है. जिस वक़्त दूसरे हिस्से भी चपेट में आ सकते हैं.
कोरोना वायरस सीधे दिल पर असर नहीं डालता, पर सीआरपी और डी-डाइमर बढ़ने लगते हैं. इस वजह से डी-डाइमर, सीबीसी- सीआरपी, आईएल-6 जैसे टेस्ट 7-8 दिन बाद ही कराने की सलाह दी जाती है.
अगर इनमें से कुछ पैरामीटर बढ़ा आता है, तो पता चलता है कि शरीर के दूसरे हिस्से में गड़बड़ी शुरू हो रही है. ये रिपोर्ट इस बात का पैमाना होते हैं कि किस मरीज़ को अस्पताल में कब भर्ती होना है. ये वो मार्कर हैं, जो बताते हैं कि शरीर का कौन सा हिस्सा अब वायरस की चपेट में आ रहा है. कौन सी दवा देनी है.”
दिल का कैसे रखें ख़्याल
डॉक्टर अशोक सेठ और डॉक्टर बलबीर सिंह दोनों एक सी ही सलाह देते हैं.
- डॉक्टरों ने ब्लड थिनर और दूसरी दवाएँ जो भी लिखी हो, जितने वक़्त के लिए लिखी हों उन्हें ज़रूर लें
- अगर आप धूम्रपान करते हैं या आपको शराब पीने की आदत है. तो कोविड के बाद तुंरत आदत छोड़ दें.
- खाने पीने का विशेष ख्य़ाल रखें. फल, हरी सब्जियाँ खूब खाएँ और घर का खाना ही खाएँ.
- पानी खूब पीएँ. अगर शरीर में पानी की मात्रा कम होगी तो उससे ब्लड क्लॉटिंग बढ़ने की संभावना ज़्यादा होती है.
- अस्पताल से डिस्चार्ज होने के दो हफ़्ते बाद, अपने डॉक्टर के पास फॉलो-अप चेक-अप के लिए ज़रूर जाएँ. जरूरत हो तो ईसीजी, इको कार्डियोग्राम डॉक्टर की सलाह पर ज़रूर कराएँ.
- अस्पताल से लौटे मरीज़ धीरे-धीरे मॉडरेट एक्सरसाइज ही शुरू करें.
- दिन भर बिस्तर पर लेटे लेटे आराम भी नहीं करना चाहिए. जब भी ठीक लगे, अपने कमरे में ही ज़रूर चले. योग करें. सोच सकारात्मक रखें.
6 मिनट वॉक टेस्ट
इन सबके अलावा 6 मिनट वॉक टेस्ट की भी बात हर तरफ़ हो रही है. दिल और फेफड़े दोनों की सेहत जाँचने का ये घर बैठे करने वाला आसान उपाय है.
कोविड19 के घर पर ठीक हुए मरीज़ के लिए डॉक्टर इसे करने की सलाह देते हैं.
डॉक्टर बलबीर के मुताबिक इससे हार्ट सेहतमंद है या नहीं ये आसानी से पता लगा सकते हैं. वहीं मेदांता अस्पताल के लंग स्पेशलिस्ट डॉक्टर अरविंद कुमार ने ख़ुद इस टेस्ट को करते हुए एक वीडियो भी बनाया है. वो फेफड़ों की सेहत चेक करने के लिए इसे करने की सलाह देते हैं.
इसे समझाते हुए डॉक्टर अरविंद ने बताया, “इस वॉक टेस्ट को करने से पहले मरीज़ को ऑक्सीजन लेवल चेक करना चाहिए. फिर 6 मिनट तक एक औसत ठीक-रफ़्तार में लगातार वॉक करना है. उसके बाद फिर से ऑक्सीजन चेक करना है.
अगर शरीर में ऑक्सीजन के लेवल में गिरावट नहीं है तो आपका दिल और फेफड़ा दोनों ही सेहतमंद है.
और अगर आप 6 मिनट तक नहीं चल पा रहे हैं, तो ज़रूरी है कि आप अपने डॉक्टर की सलाह लें. ज़रूरत पड़े तो अस्पताल में भर्ती हो जाए.
डॉक्टर अरविंद के मुताबिक़ चलते समय ऑक्सीजन लेवल पहले नीचे गिरता है, बजाए बैठे रहने के. इस वजह से ऑक्सीजन लेवल ड्राप करने के पहले ही इस टेस्ट से अंदाजा मिल जाता है कि आगे क्या दिक़्क़त आने वाली है. यही है 6 मिनट वॉक टेस्ट का फ़ायदा
फेफड़ों का कैसे रखें ख़्याल
डॉक्टर अरविंद कम गंभीर लक्षण वाले मरीज़ों के लिए ये ‘ब्रेथ होल्डिंग एक्सरसाइज’ (पहले सांस मुँह में भर लें और फिर रोकें) कम से कम छह महीने तक करने की सलाह देते हैं. इस दौरान अगर आप 25 सेकेंड तक साँस रोकने में सफल रहते हैं, तो आपके फेफड़े सेहतमंद है.
दरअसल फेफड़े बलून की तरह होते हैं. आम तौर पर जब हम साँस लेते हैं फेफड़ों के बाहरी हिस्से तक साँस नहीं पहुँचती. लेकिन जब हम इस तरह के एक्सरसाइज करते हैं तो उन हिस्सों में भी ऑक्सीजन जाती है. वो खुल जाते हैं. सिकुड़ते नहीं है.
डॉक्टर अरविंद के मुताबिक़ गंभीर कोविड19 की बीमारी से ठीक हुए मरीज़ में तुरंत नहीं तो 6 महीने बाद उनमें ‘लंग फाइब्रोसिस’ यानी फेफड़ों के सिकुड़न की समस्या आ सकती है. इसलिए ब्रेथ होल्डिंग एक्सरसाइज़ ज़रूरी है.
बीएलके मैक्स अस्पताल के वरिष्ठ निदेशक डॉक्टर संदीप नायर कहते हैं कि सीटी स्कोर से भी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है फेफड़ों में कितना इंफेक्शन है. वो सीटी टेस्ट 7 दिन बाद ही कराने की सलाह देते हैं.
सीटी स्कोर अगर 10/25 से ज़्यादा है तो आपके फेफड़ों में मॉडरेट इंफेक्शन है. 15/25 से ज़्यादा होने पर डॉक्टर की सलाह पर अस्पताल जाने की सलाह देते हैं.
उनके मुताबिक़, “गंभीर लक्षण वाले मरीज़ को फेफड़े में इंफेक्शन चेक करने के लिए पल्मनरी फंक्शन टेस्ट करवाना चाहिए. अस्पताल से छुट्टी के 2 महीने बाद दोबारा टेस्ट कराने की ज़रूरत है.
लेकिन वो नैचुरल इलाज पर ही ज़ोर देते हैं. उनके मुताबिक़ रोज योग करना, ब्रिदिंग एक्सरसाइज करना चाहिए. रोजाना भाप लेने, गार्गल करने और मास्क पहने रखने से फेफड़ों को सेहतमंद रखा जा सकता है. साथ ही खाने में ऐसी चीजें जैसे मिर्च और मसालों का सेवन कम करना भी आपके फेफड़ों के लिए अच्छा है. साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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