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कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच कई राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर गुहार लगा रहे ज़रूरतमंद लोगों के लिए दवा, प्लाज़्मा, अस्पताल में बेड या ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध कराते देखे गए हैं.
लेकिन जहाँ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ज़रूरी दवाओं की किल्लत, जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी को लेकर एक विकट स्थिति सामने आई है, वहीं यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि कुछ राजनेता कैसे इन दवाओं को भारी मात्रा में जुटाकर लोगों में बाँट पा रहे हैं.
इसी मसले पर 4 मई को दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका के जवाब में अदालत ने दिल्ली पुलिस को एक स्टेटस रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था.
17 मई को अदालत ने दिल्ली पुलिस की खिंचाई करते हुए कहा कि उसकी स्टेटस रिपोर्ट साफ़ नहीं है और उसे पढ़कर ये लगता है कि पुलिस को सच्चाई सामने लाने में कोई दिलचस्पी नहीं है.
पुलिस ने क्या कहा था?
अपनी स्टेटस रिपोर्ट में पुलिस ने अदालत को बताया था कि उसने नौ राजनेताओं के बयान दर्ज किए और पाया कि उन्होंने स्वेच्छा से और बिना किसी भेदभाव के लोगों की मदद की थी.
पुलिस ने यह भी कहा कि यह मदद निशुल्क दी गई और किसी के साथ कोई धोखाधड़ी नहीं हुई. साथ ही, दिल्ली पुलिस ने अदालत से यह भी कहा कि जांच अधिकारी को मामले की जांच पूरी करने के लिए कुछ और समय चाहिए. इसके लिए उसने अदालत से छह हफ्ते का समय माँगा.
अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने फ़ायदे के लिए महामारी का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
अदालत ने पुलिस को इस बात की जांच करने का निर्देश दिया है कि कोविड-19 की दवाएं इतनी बड़ी मात्रा में कुछ व्यक्तियों ने कैसे खरीदीं जबकि उनकी आपूर्ति इतनी कम थी और उनकी कालाबाज़ारी हो रही थी.
अदालत ने कहा कि वो उम्मीद करती है कि दिल्ली पुलिस मामले की उचित जांच करेगी और अगर मामला एफ़आईआर (प्राथमिकी) दर्ज करने के लिए बनता है तो वो भी किया जाएगा. अदालत ने दिल्ली पुलिस की छह हफ्ते की समय की मांग को ठुकराते हुए एक हफ्ते में अपनी जांच पूरी करने का आदेश दिया.
अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि यह दर्शाया गया है कि दवाएं केवल लोगों की निशुल्क सेवा के लिए थीं इसलिए उसे यह उम्मीद है कि उनका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए नहीं किया जाएगा.
अदालत ने यह भी आदेश दिया कि ग़रीब और ज़रूरतमंद लोगों में बांटने के लिए इन दवाओं को तुरंत डायरेक्टर जनरल ऑफ़ हेल्थ सर्विसेज़ (डीजीएचएस) को सौंप दिया जाए.
मामला अदालत कैसे पहुँचा
दिल्ली स्थित एनजीओ हृदय फ़ाउंडेशन के चेयरमैन डॉक्टर दीपक सिंह ने दिल्ली उच्च न्यायालय में 29 अप्रैल को एक जनहित याचिका दायर की जिसमें उन्होंने कई उदाहरण देते हुए कहा कि सभी राजनीतिक दलों के नेता अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं और रेमडेसिविर जैसी जीवन-रक्षक दवाएं आवश्यक अनुमतियों के बिना बटोरी और बाँटी जा रही हैं.
याचिका में कहा गया कि राजनेताओं का पहले जमा करना और उसके बाद अपनी मर्ज़ी से इन्हें बांटना आम लोगों तक दवाएं पहुँचने में बाधा डाल रहा है.
याचिका में यह भी कहा गया कि प्रत्येक नागरिक के जीवन का अधिकार मौलिक अधिकार है जिसे राजनीतिक-मेडिकल-माफ़िया प्रभावित कर रहा है और इस गठजोड़ की एक व्यापक जांच की ज़रूरत है.
अदालत से गुहार लगते हुए याचिकाकर्ता ने राजनेताओं और मेडिकल माफ़िया के गठजोड़ की सीबीआई जांच कराए जाने की मांग की.
अदालत ने सीबीआई जांच की मांग तो नहीं मानी लेकिन याचिकाकर्ता को दिल्ली पुलिस को जानकारी देने को कहा और दिल्ली पुलिस से इस मामले पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी.
किन लोगों से पूछताछ हुई है
दिल्ली पुलिस इस मामले में अब तक नौ राजनेताओं के बयान दर्ज कर चुकी है. इनमें बीजेपी सांसद गौतम गंभीर, यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष अनिल कुमार चौधरी, कांग्रेस के पूर्व विधायक मुकेश शर्मा, बीजेपी प्रवक्ता हरीश खुराना, आम आदमी पार्टी के विधायक दिलीप पांडेय, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष अली मेहदी, कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष अशोक बघेल और बिजनौर के पूर्व सांसद शहीद सिद्दीक़ी शामिल हैं.
इन सभी लोगों ने अपने बयानों में कहा है कि वे केवल लोगों की मदद कर रहे थे और उन्होंने किसी भी मदद के लिए कोई शुल्क नहीं लिया है.
दिल्ली पुलिस को गौतम गंभीर ने बताया कि गौतम गंभीर फ़ाउंडेशन ने गर्ग अस्पताल के डॉक्टर संजय गर्ग की प्रिस्क्रिप्शन पर 2,628 फ़ैबिफ्लू अधिकृत विक्रेताओं से ख़रीदी थीं.
गंभीर ने बताया कि ये दवाइयां विक्रेताओं ने सीधे उस मेडिकल शिविर को भेज दी जिसका संचालन जागृति एनक्लेव में उनका फ़ाउंडेशन कर रहा था. इस शिविर का संचालन 22 अप्रैल से 7 मई तक किया गया जिसमें कोविड संक्रमित लोगों का इलाज किया जा रहा था और दवाइयाँ सीधे डॉक्टर मनीष को भेजी गई थीं जो शिविर में लोगों को देख रहे थे.
गंभीर ने यह भी कहा कि इस कैंप के दौरान 2343 फ़ैबिफ्लू गोलियाँ कोविड संक्रमित लोगों के परिजनों को डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन दिखाने पर मुफ्त बांटी गईं और बाकि बची 285 गोलियाँ डॉक्टर मनीष के पास हैं.
गंभीर ने यह भी कहा कि अभूतपूर्व स्थितियों के लिए अभूतपूर्व उपायों की ज़रूरत होती है और एक जन प्रतिनिधि होने के नाते महामारी के दौरान लोगों की मदद करना उनका फ़र्ज़ है.
उन्होंने यह भी कहा कि लोगों की मदद निशुल्क की जा रही है और किसी किस्म का लेन-देन नहीं हुआ है.
श्रीनिवास ने कहा कि उनके पास मुख्यतः ऑक्सीजन, अस्पताल बेड, और कोविड मरीज़ों के लिए प्लाज़्मा जुटाने की कॉल्स आई हैं और उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर इन चीज़ों का निशुल्क प्रबंध करने की कोशिश की है.
क्या है याचिकाकर्ता की दलील
वकील विराग गुप्ता इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. वो कहते हैं, “एक श्रेणी उन लोगों की है जिन्होंने दवाओं आदि को चैरिटेबल स्रोतों से ख़रीदा और उन्हें खुले तौर पर बाँट दिया. हमें उससे कोई दिक्कत नहीं है. दूसरी श्रेणी वह है जहां राजनेता लोगों को कह रहे हैं कि वे किसी ख़ास केमिस्ट से जाकर दवा ले लें. इसमें परेशानी यह है कि जो दवा लोगों को आराम से मिल जानी चाहिए उसके लिए उन्हें किसी वीआईपी का सहारा लेन पड़ रहा है.”
गुप्ता की दलील है कि लाखों लोग ऐसे हैं जो इन लोगों तक नहीं पहुँच सकते क्या उनका जीवन कम क़ीमती है?
गुप्ता कहते हैं कि तीसरी श्रेणी है गौतम गंभीर जैसी जहाँ उन्होंने दवा को व्यावसायिक रूप से ख़रीदा है.
वो कहते हैं, “इस दवा की क़ीमत का भुगतान गौतम गंभीर फ़ाउंडेशन ने किया है. इस दवा को ख़रीदने की पर्ची एक डॉक्टर ने दी, दवा को बाँटा एक दूसरे डॉक्टर ने और जिसे दवा मिली वह एक तीसरे डॉक्टर की प्रिस्क्रिप्शन लेकर आया था. पुलिस ने न ही इन डॉक्टरों का बयान लिया न ही उन लोगों का जिन्हें दवा मिली.”
गुप्ता के अनुसार कोर्ट ने यह भी कहा कि इन दवाओं की जमाख़ोरी की वजह से कई बेक़सूर मरीज़ मर गए.
वो कहते हैं कि कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से यह भी कहा है कि याचिका में दिल्ली के बाहर के जिन लोगों पर आरोप लगे हैं उन राज्यों के अधिकारियों को सूचित करके जांच करने के लिए कहा जाए.
इस मामले की अगली सुनवाई 24 मई को निर्धारित की गई है. साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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