कोरोना की दूसरी लहर में अलग-अलग राज्यों में गांवों में हालात एक जैसे हैं। डॉक्टर कम हैं। टेस्टिंग या तो हो नहीं रही या लोग करवा नहीं रहे। तबीयत बिगड़ जाए तो लोग झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे ज्यादा हैं। सर्दी-खांसी से जूझ रहे ज्यादातर लोग काढ़ा पीकर और गिलोय खाकर खुद ही अपना इलाज कर ले रहे हैं। या कोरोना को टायफाइड समझकर झोपड़ियों में अपना इलाज करा रहे हैं। भास्कर ने शुक्रवार को मध्यप्रदेश के विदिशा, हरियाणा के फतेहाबाद और पंजाब के मानसा के गांवों में 6 रिपोर्टर्स भेजे। जानिए, इन गांवों के हालात कैसे हैं…
1. दुकान में झोलाछाप का अस्पताल, फीस 150 रुपए
– विदिशा जिले से विक्रांत गुप्ता और श्रीकांत त्रिपाठी की रिपोर्ट
सबसे पहले चलते हैं मध्यप्रदेश। राजधानी भोपाल से करीब 70 किलोमीटर दूर है विदिशा जिला। यहां हमारी टीम गांव कुआंखेड़ी पहुंची, तो देखा कि चाय की दुकान के पीछे झोपड़ी में दो महिलाओं को ग्लूकोज की बोतल चढ़ रही थी। खुद को डॉक्टर बताने वाले चंदन मालवीय कोरोना के लक्षण वाले मरीजों को टायफाइड बताकर इलाज करते मिले।
यही हाल नजदीकी गांव हिरनई का है। यहां भी सड़क किनारे एक शटर के अंदर अस्पताल खुला था और मरीजों को ग्लूकोज की बोतल चढ़ाई जा रही थी। यहां इलाज कर रहे व्यक्ति एन शर्मा ने बताया हर दिन 30 से 35 मरीज आ रहे हैं। एक मरीज की फीस मात्र 150 रुपए है। यहां इलाज कराने की मजबूरी एक ग्रामीण पवन ने यूं बताई कि जिला अस्पताल में तो बेड ही नहीं मिलता। ऐसे में इनसे इलाज नहीं कराएंगे तो मर जाएंगे।
साहबा गांव में भी हालात इससे अलग नहीं हैं। यहां जब भास्कर टीम दोपहर 2 बजे पहुंची, तो सन्नाटा पसरा था। यहां 20 दिन में 16 मौतें हो चुकी हैं। गांव के महेंद्र सिंह लोधी बताते हैं कि कई घरों में दो-दो मौतें हुईं। किसी को यह नहीं पता कि मौत की वजह क्या थी। गांव में उप स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन डॉक्टर नहीं हैं।
मानसिंह कहते हैं कि कुछ दिन पहले यहां एक झोलाछाप डॉक्टर इलाज करने आते थे, लेकिन उनकी भी बुखार के कारण मौत हो गई। तब ऐसे डॉक्टरों ने भी आना बंद कर दिया। गांव बरेठ में 10 दिन के अंदर 10 लोगों ने दम तोड़ दिया। गांव के लोग इलाज के लिए गंजबासौदा तक जाते हैं, जबकि इन दोनों गांव से 20 किमी दूर त्योंदा का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। इस पर 80 गांव के करीब 60 हजार लोगों के इलाज का जिम्मा है, लेकिन यह अस्पताल खाली पड़ा था।
गांव में टीका लगवाने पहुंच रहे शहर के लोग क्योंकि यहां भीड़ नहीं
जब भास्कर टीम ग्यारसपुर गांव पहुंची तो यहां के वैक्सीनेशन सेंटर पर सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन फिर भी अधिकारी-कर्मचारी चिंता में थे। BMO डॉ. सैय्यद कल्बे अब्बास जैदी इसकी वजह बताते हैं। वे कहते हैं कि यहां ग्यारसपुर के अलावा विदिशा सहित दूसरे शहरों से भी लोग टीका लगवाने आ रहे हैं। भोपाल से भी यहां दो दिन में 5 लोग टीका लगवा चुके हैं।
दरअसल गांव के सेंटर पर स्लॉट आसानी से मिल रहा है। नटेरन से टीका लगवाने आए युवक मोहन ने बताया यहां व्यवस्थाएं ठीक हैं। टीका लगाने से पहले BP और पल्स अच्छे से चेक की जा रही है। शहरों के केंद्रों पर भीड़भरे माहौल से बचने के लिए लोग टीके के लिए नजदीकी गांवों की ओर रुख कर रहे हैं। इस कारण गांवों के हिस्से के टीके शहर के खाते में जा रहे हैं।
ग्यारसपुर में अब तक 2,451 लोगों का टीकाकरण हो चुका है। यहां दो दिन में 18 वर्ष से अधिक आयु के 187 लोगों को टीका लग चुका है, लेकिन ऐसी स्थिति सभी जगह नहीं है। त्योंदा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में वैक्सीनेशन सेंटर खाली पड़ा मिला। पूछने पर पता चला 15 दिन से वैक्सीन ही नहीं आई। कुआंखेड़ी, भदरबाड़ा, वनगांव और बरेठ में भी केवल 10 फीसदी लोगों का ही वैक्सीनेशन हुआ है। वजह है वैक्सीन की कमी।
गांव की सीमाएं बंद, घरों से बाहर निकलने पर भी रोक
गांव भदारबाड़ा में पिछले पांच दिन से टोटल लॉकडाउन का 100 फीसदी पालन किया जा रहा। गांव में रहने वाले जिला पंचायत अध्यक्ष तोरण सिंह दांगी बताते हैं कि एक सप्ताह पहले 8 कोरोना पॉजिटिव मिले थे। इसके बाद गांव में क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक बुलाई और जनता कर्फ्यू का फैसला लेकर पूरे गांव की सीमा को बांस की बल्लियों से बांध दिया। गांव में किसी भी बाहरी व्यक्ति की एंट्री पर पाबंदी है। गांव में एक से दूसरे घर जाने की मनाही है।
2. हरियाणा: झोलाछापों के सिवाय दूसरा चारा नहीं
– फतेहाबाद से रत्न पंवार और सुरेंद्र भारद्वाज की रिपोर्ट
अब बात हरियाणा के फतेहाबाद की। यहां के गांवों के लोगों की भी सेहत सरकारी तंत्र के भरोसे कम और झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे ज्यादा है। गांव के लोगों के पास झोलाछाप डॉक्टरों की मदद लेने के सिवाय कोई और दूसरा चारा नहीं है। जब गंभीर मरीज को भर्ती करवाना हो या वैक्सीन लगवाने की बात हो, तभी गांव के लोगों को सरकारी अस्पताल की याद आती हैं। बाकी बुरे समय में झोलाछाप ही दवा लेकर पहुंचते हैं। अब झोलाछापों के नुस्खे की तासीर भी बदलने लगी है। जो झोलाछाप पहले बुखार, उल्टी, दस्त की दवा दे देते थे, अब वे घर-घर जाकर गिलोय भी बांटने लगे हैं। गांव भौड़िया खेड़ा में लोग गिलोय तोड़कर और उसका काढ़ा पीकर ही ठीक हो रहे हैं। मेघराज, प्रवीन, बजरंग, सुरेंद्र और श्रवण कहते हैं कि गांव में मई में 16 मौतें हुई हैं। लॉकडाउन में दिहाड़ी भी टूट गई है, खाने तक का संकट बना हुआ है।
झोलाछाप डॉक्टरों से छह महीने की उधारी चलती है
गांव ढांड में झोलाछापों ने ही गांवों की सेहत की कमान संभाली हुई है। यह एक गांव की बात नहीं है, हर दूसरे गांव की कहानी है। गांवों में हालात अभी भी सरकार ने नहीं संभाले तो पूरा दबाव शहरों पर बढ़ जाएगा। यहां के रामसिंह, पटेल सिंह बताते हैं कि सेना में उनके गांव से 25 के करीब युवा है। यहां पर कोरोना से अब तक एक भी मौत नहीं हुई। सरकारी डॉक्टर आते नहीं है। झोलाछाप डॉक्टर तो दवा भी घर आकर दे जाते हैं। फीस का छह महीने तक इंतजार भी कर लेते हैं। फसल आती है, तो उसकी उधारी चुका दी जाती है।
जब खाप नेता ने धमकी दी, तब ग्रामीण को मिला एक बेड
गांव समैण में खाप नेता सूबेसिंह कहते हैं कि गांव में कोरोना तेजी से फैल रहा है। सरकारी सिस्टम फेल हो चुका है। एक मरीज नफेसिंह को भर्ती करवाने के लिए SDM से लेकर DC तक फोन किया, लेकिन तुरंत बेड नहीं मिला। सारी सिफारिशें फेल हो गईं। बाद में जब प्रशासन को चेताया कि अगर हमारे मरीज को एक बेड भी नहीं मिल सकता तो यह कैसी सरकार है। कल से गांव में लॉकडाउन भी खत्म कर देंगे और गांव से गुजर रही बिजली की सप्लाई काट देंगे। तब जाकर एक बेड रातों-रात मिला। तब तक मरीज की दिक्कत बढ़ चुकी थी।
खैर, गांवों में फिलहाल एक बात अच्छी नजर आने लगी है। लोगों का रुझान अब वैक्सीन की ओर बढ़ने लगा है। सबसे ज्यादा जोश 18+ से 44 साल तक के युवाओं में नजर आता है, लेकिन व्यवस्था फेल है। जिन्हें वैक्सीन चाहिए उन्हें मिल नहीं रही है। गांव ढांड के युवा हरद्वारी लाल कहते हैं कि वे एक मई से रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद से अपना वैक्सीनेशन सेंटर और टाइम स्लॉट रोजाना सर्च कर रहे हैं, लेकिन अब तक इसका सिस्टम समझ नहीं आया है।
जिले में 65% डॉक्टरों के पद खाली हैं
फतेहाबाद जिले की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, यहां एक ही दिन में 401 मरीज तक सामने आ चुके हैं। दूसरी लहर का असर इतना ज्यादा है कि अब यहां पर कोरोना मरीजों के ठीक होने की दर गिरकर 74.61% पर पहुंच गई है। ये संकेत अच्छे नहीं हैं। जिले में डॉक्टरों के करीब 65% पद खाली हैं। कुल 29 स्वास्थ्य केंद्र हैं। इनमें डॉक्टरों के कुल 145 पद मंजूर हैं, जबकि इस वक्त मात्र 96 डॉक्टर ही तैनात हैं।
भट्टू कलां बना कोरोना हॉटस्पॉट
भट्टू कलां गांव का कम्युनिटी हेल्थ सेंटर 25 गांवों को कवर करता है। गांव भट्टू कोरोना का हॉटस्पॉट बन चुका है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 244 मरीज होम आइसोलेशन में हैं। एक ही दिन में 21 मरीज पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई है। भट्टू कलां CHC की SMO डॉ. सुजाता बंसल के कमरे में गए तो वे काफी चिंतित नजर आईं। उन्होंने बताया कि वे कुछ समय पहले तक खुशी थी कि कोरोना के 11 मरीज जल्द ही ठीक होकर घर लौट जाएंगे। अब चिंता यह कि 15 ऑक्सीजन सिलेंडर के रिफिल की डिमांड की थी, अब शाम साढ़े 5 बजे तक सिर्फ 7 ही रिफिल पहुंचे हैं। ऐसे में उनके यहां पर भर्ती 11 मरीजों की रात कैसे कटेगी? उन्हें समझ नहीं आ रहा है।
‘CHC ही है म्हारे लिए मेदांता’
CHC भट्टू कलां में कोविड आइसोलेशन सेंटर के अंदर कोविड सुरक्षा मानकों के तहत एहतियात बरतते हुए दैनिक भास्कर की टीम मरीजों से मिलने के लिए उनके वार्ड में पहुंची। ऐसा पहली बार था जब कोरोना के मरीजों से सीधे आमने-सामने की बात हो रही थी। सभी मरीज ऑक्सीजन पर हैं, मास्क हटाते ही हांफने लगते हैं।
किराढाना से आए मरीज लीलाधर कहते हैं कि ऐसे समय में जब कहीं पर बेड भी नहीं मिल रहा है तो यहां पर आकर कम से कम ऑक्सीजन तो मिल ही गई। जब वे यहां पर आए थे तो उनकी ऑक्सीजन का लेवल 80 पर था। उनके लिए तो यही मेदांता जैसा है। गांव भट्टू कलां से भर्ती हुए युवा मुकेश कहते हैं कि गांव में पहली बार सुविधाएं मिल गईं, ये क्या कम है।
टेस्ट नहीं करवाने के कारण
बनावली गांव के ग्रामीणों का कहना है कि कोरोना से मरने के बाद अस्पताल वाले परिजनों को डेडबॉडी नहीं देंगे। इसलिए लोग कोरोना टेस्ट नहीं कराते हैं।
– विनोद, जगदीश, करण सिंह और रमेश कहते हैं कि दूर जाने के चक्कर में भी लोग सैंपल टेस्ट भी नहीं करवाते। बुखार होने पर घर में ही रहकर इलाज ले लेते हैं। यहां के 60 फीसदी घरों में खांसी-जुकाम का संक्रमण बना हुआ है।
– खाप नेता सूबे सिंह कहते हैं कि गांव में टेस्ट भी लोग कम करवा रहे हैं। यहां भ्रांति है कि टेस्ट करवाने से ही कोरोना होता है, इसलिए गांव वाले टेस्ट नहीं करवाते।
3. पंजाब के मनासा में भी घरों में कोरोना पॉजिटिव, काढ़ा पीकर इलाज कर रहे
– मानसा जिले से पुनीत गर्ग और भूपिंदर सिंह की रिपोर्ट
मानसा जिले के कई गांवों में लोग कोरोना पॉजिटिव हैं, लेकिन घरों में हैं। हालात ऐसे हैं कि गांव के हर घर में एक न एक व्यक्ति बुखार से पीड़ित है। कोई घरों में काढ़ा लेकर ठीक होने की कोशिश कर रहा है, तो कोई यह मानकर पेड़ों के नीचे लेटा हुआ कि इससे ऑक्सीजन अच्छी मिलेगी।
कई गांव ऐसे हैं, जहां हालात खराब होने पर भी लोगों की जांच के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम नहीं पहुंची है। जहां टीम पहुंची है वहां लोग टेस्ट करवाने को राजी नहीं हैं। नतीजतन, गंभीर होने के बाद लोग अपनी जान गंवा रहे हैं, जिसका सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है। भास्कर टीम ने मानसा जिले के 20 गांवों का दौरा कर हालात को जाना।
सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, गांव खियाला कलां, बुरज राखी, मलकपुर, खियाला खुर्द, नंगलकलां, जोगा, रल्ला, मानसा कैंचियां, ठुठेवाली, जवाहरके और रमदीतेवाला जैसे गांवों में पॉजिटिव मरीज भी हैं और एक से ज्यादा मौतें भी हो चुकी हैं। अब तक खियाला कलां ब्लॉक के 72 गांवों में 628 लोग पॉजिटिव आ चुके हैं, जबकि 22 की मौत हो चुकी हैं। नंगल कलां, खियाला कलां, खियाला खुर्द और मलकपुर खियाला को सील कर दिया गया है।
मानसा जिले के गांव खियाला कलां, खियाला खुर्द और मलकपुर खियाला के हालात काफी गंभीर हैं। इसके बावजूद सेहत विभाग की टीम जांच करने गांव नहीं पहुंची है। रूप राम, विंदर कुमार, लक्ष्मण सिंह, गुरतेज सिंह, गुरदीप सिंह और चूहड सिंह का कहना है कि लोगों से चौपालों पर इकट्ठा नहीं होने की अपील की जा रही है। टेस्ट के लिए सिर्फ प्रेरित किया जा रहा है, लेकिन कोई टीम गांव नहीं पहुंची है।
सरपंच रमेश कुमार का कहना है कि सरकार ने लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। पॉजिटिव आने के बावजूद लोगों को किट मुहैया नहीं करवाई गई है। खुद ऑक्सीमीटर से लोगों की ऑक्सीजन चेक कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि वह गांव में अपनी टीम भेजे। डोर टु डोर लोगों की सेहत का सर्वे किया जाए।
गांव सील, फिर भी बहाने बनाकर घरों से निकल रहे लोग
गांव नंगल कलां में भी सरकारी रिकार्ड में 55 लोग पॉजिटिव आ गए हैं, जबकि पिछले कुछ दिनों में ही 4 लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसे में गांव को चारों तरफ से सील कर बाहरी लोगों के गांव के अंदर जाने पर रोक लगा दी गई है। सिर्फ जरूरी काम होने पर ही गांव के लोगों को गांव से बाहर जाने दिया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव की डिस्पेंसरी में बैठी, लेकिन यहां लोग संजीदा नहीं हैं। लोग घरों में रुकने को तैयार नहीं हैं। लगातार बहाने लेकर नाकों पर पहुंच रहे हैं, वहां से पुलिस उन्हें घरों में भेज रही है। साभार-दैनिक भास्कर
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