आज-कल बाजार में इतनी मिलावटी फल-सब्जियां (केमिकल युक्त) मिलने लगी है कि लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर सचेत हो गए है। बहुत से लोग अपने घर पर ही आर्गेनिक तरीके से फल-सब्जियां उगाना शुरू कर दिए है ताकि वो खुद को तथा अपने परिवार को शुद्ध पोषण दे सकें। आज अब एक ऐसे ही दो भाइयों की बात करेंगे, जिनका नाम मृणाल डब्बास (Mrinal Dabbas) और लक्ष्य डब्बास (Lakshay Dabbas)है। जिन्होंने खुद का तथा अपने परिवार के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अपनी मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ आर्गेनिक सब्जियों की खेती शुरू की और आज 70 लाख रुपये का टर्नओवर हासिल कर रहे हैं।
परिचय
मृणाल डब्बास (Mrinal Dabbas) तथा लक्ष्य डब्बास (Lakshay Dabbas)दिल्ली के रहने वाले है। मृणाल ने इंजीनियरिंग तथा लक्ष्य ने एनवायरनमेंट साइंस में मास्टर्स की डिग्री ले ली है। दोनों भाई मिलकर पांच सालों से एग्रो टूरिज्म बेस्ड ऑर्गेनिक फार्मिंग कर रहे है। जिसमे उन्होंने 200 से ज्यादा किसानों का एक नेटवर्क तैयार किया है तथा पूरे भारत मे फल, सब्जियां, आटा, दाल, शहद जैसे प्रोडक्ट्स की सप्लाई कर 70 लाख रुपये का टर्नओवर हासिल कर रहे हैं।
किसान परिवार से रखते है, ताल्लुक
मृणाल का कहना है, “हम दोनों भाई किसान परिवार से ताल्लुक रखते है। हमारे पास खेती के लिए अच्छी-खासी जमीन थी। मेरे पिता जॉब के साथ घर की जरूरतों के लिए खेती-बारी भी करते थे।” 30 वर्षीय मृणाल ने दो साल तक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी किया। मृणाल बताते है, “वर्ष 2014 में मुझे एहसास हुआ कि आजकल बाजार में ज्यादातर प्रोडक्ट केमिकल युक्त मिल रहे हैं, जिससे लोगों को तरह-तरह की बीमारियां हो रही है। जिन लोगो मे पास खेत नही है वो तो बाजार पर आश्रित है ही, लेकिन जिनके पास खेत भी है, वो भी सभी चीजों के लिए बाजार पर ही आश्रित है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उसी समय मेरे दिमाग मे एक बात आई कि, प्योर शुद्ध प्रोडक्ट के लिए क्यों न खुद की खेती की जाये। इस बात को मैने बहुत सीरियस लिया, और उसके बाद हम आर्गेनिक फार्मिंग की तैयारी में जुट गए।”
वे आगे बताते हैं कि, “जब मेरी खेती पूरी तरीके से तैयार हो गई और मेरे खेत से सब्जियां निकलने लगीं तो मेरे परिवार से मुझे खूब तारीफ मिली। सबने अच्छा रिस्पॉन्स दिया। फिर अगले सीजन में हमने अपने प्रोडक्ट को बढ़ा दिया तथा परिवार के साथ पड़ोसियों में भी फल और सब्जियां प्रोवाइड करने लगे। इससे मुझे काफी फायदा मिला। लोगों में ये बात धीरे-धीरे फैलती गई और कुछ ही महीनों में हमारे कस्टमर्स बढ़ते गए। इसके साथ-साथ में हम अपना प्रोडक्ट भी बढ़ाते गए। समय के अभाव में मैंने दो साल बाद अपनी नौकरी छोड़ दी। मैं और मेरा भाई पूरा समय अब आर्गेनिक फार्मिंग पर देने लगे।
मंडियों में नही मिलते मन मुताबिक भाव
मृणाल बताते हैं कि, “ऑर्गेनिक तरीके से खेती करने के बाद भी किसानों को मंडियों में अच्छे भाव नही मिलते। कस्टमर को सब्जी से मतलब होता है। लोग ये नही देखते कि, कौन सब्जी केमिकल युक्त है और कौन प्योर ऑर्गेनिक। जिससे किसानों को मंडियों में मन मुताबिक भाव नही मिलते। हमारी मार्केटिंग ज्यादातर माउथ पब्लिसिटी और सोशल मीडिया के माध्यम से होती है। इसके माध्यम से हम देश के सभी राज्यों में मार्केटिंग करते है। लोग वॉट्सऐप ग्रुप या ऑनलाइन ऑर्डर भी करते है। इसके अलावे हम दिल्ली में दो जगहों पर रिटेल शॉप लगाकर अपना प्रोडक्ट भी बेचते है।”
क्या है बिज़नेस मॉडल उनका?
50 से ज्यादा तरह की सब्जियां और फल 28 एकड़ जमीन पर मृणाल और उनके भाई लक्ष्य खेती कर उगाते हैं। खेती के साथ एक दर्जन से ज्यादा प्रोडक्ट्स दोनों भाई प्रोसेसिंग करके तैयार करते हैं। जब प्रोडक्ट्स तैयार हो जाती है तो वे ऑनलाइन और ऑफलाइन बेचते हैं। दोनो भाइयों ने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए किसानों का एक नेटवर्क भी तैयार किया है। इस नेटवर्क के जरिये 200 से ज्यादा किसान देश के अलग-अलग हिस्सों से जुड़े हैं। जो भी किसान इस नेटवर्क से जुड़े है उनको सबसे पहले कमर्शियल फार्मिंग के लिए ट्रेंड किया जाता हैं। इस नेटवर्क से जुड़े सभी किसान अपने-अपने खेतों में खेती कर प्रोडक्ट तैयार करते हैं। जब प्रोडक्ट तैयार हो जाती है तो मृणाल की टीम इनकी मार्केटिंग का काम करती है। इस प्रोसेस से मृणाल तथा किसान दोनों को फायदा होता है। मृणाल का कहना है कि, जब कोई प्रोडक्ट किसी कारणवश मार्केट में नही भेज पाते है तो उसका वेस्ट न करते हुए उसको प्रोसेसिंग करके दूसरा प्रोडक्ट तैयार करते है तब कस्टमर्स को दिया जाता हैं। इसके अलावे हमारे किसी भी प्रोडक्ट में केमिकल यूज़ नही किया जाता तथा हमारे यहां क्वांटिटी पे नहीं, क्वालिटी पर फोकस किया जाता है। हमने अपने कारोबार के जरिये लगभग 40 लोगों को रोजगार भी दिया है।
ट्रेंनिंग सेंटर तथा एग्रोटूरिज्म की व्यवस्था
मृणाल बताते है कि, “हम यूथ्स को तथा किसानों को ट्रेंनिंग देने का भी काम करते है। इसके लिए मैंने ट्रेंनिंग सेन्टर खोल रखा है। यहां कॉलेज के स्टूडेंट्स भी ट्रेंनिंग के लिए आते है। हमारे यहां 10 से 15 दिनों तक उनको ट्रेंनिंग दी जाती है। इसके लिए कोई शुल्क नही ली जाती है। हाँ, केवल रहने और खाने के लिए उनको शुल्क देना होता है। खैर, कोरोनाकाल मे ऑनलाइन ट्रेंनिंग देने का काम होता है। हमारे यहां एग्रोटूरिज्म की भी व्यवस्था है। अगर कोई शहरी गांव की खेती तथा हरियाली की सैर करना पसंद करता है तो वो हमारे यहां आकर इसका आनन्द ले सकता है। अगर कोई खेती करना सीखना चाहता है या ताजा फूड्स खाना चाहता है तो वो अपने परिवार समेत आकर ताजे फूड्स का आनन्द ले सकता तथा खेती करना सीख सकता है। साभार-दी लॉजिकली
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