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चीन के सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक सम्मेलन में इस साल महिलाओं और पुरुषों की भूमिका, मानसिक स्वास्थ्य और मशहूर हस्तियों की चर्चाएं सबसे ख़ास रहीं.
चीन में हर साल नई सोशल पॉलिसी पर चर्चा के लिए “दो सेशन” या लियांगुई का आयोजन किया जाता है.
ये आमतौर पर पारंपिरक चर्चाएं होती हैं लेकिन कई बार उग्र बहस भी होती है और चीन के लोगों से जुड़े मुद्दों को सामने रखा जाता है.
मंगलवार को चीन की सबसे बड़ी सलाहकार कमेटी, सीपीपीसीसी की बैठक ख़त्म हुई.
इस साल महिलाओं और पुरुषों की भूमिकाओं पर पॉलिसी सामने रखी गईं, जिन्हें लेकर वहां इंटरनेट पर काफ़ी बहस हो रही है.
महिलाओं को पारंपरिक भूमिका के लिए ‘मजबूर होना पड़ेगा’
इसके अलावा युवाओं पर बढ़ते दबाव को कम करने के लिए और देश की शिक्षा व्यवस्था में कई बदलाव के सुझाव दिए गए.
कोविड-19 महामारी के बाद बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर भी चर्चा हुई.
चीन में शादी की उम्र पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए 18 साल करने का प्रस्ताव दिया गया है.
इसके अलावा शादी और प्यार को स्कूल के सिलेबस में शामिल करने का इंटरनेट पर महिलाओं ने विरोध किया है.
उनके मुताबिक उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है कि सरकार चाहती है कि वो स्कूल से निकलते ही शादी करें और बच्चे पैदा करें.
चीन की वन-चाइल्ड पॉलिसी
इसके अलावा मैटरनिटी लीव (मां बनने के बाद मिलने वाली छुट्टियां) को बढ़ाने और फैमिली प्लानिंग के नियमों में ढील देने का भी विरोध हो रहा है.
कई लोगों को लगता है कि अविवाहित चीनी महिलाओं को पहले से ही नौकरियां मिलने में दिक्कतें पेश आ रही है.
ऐसे नियमों के आने से उन्हें पारंपरिक भूमिकाएं निभाने के लिए ‘मजबूर होना पड़ेगा’.
चीन में शादी और बच्चों के पैदा होने की गिरती दर हाल के सालों में सरकार के लिए चिंता का विषय रही है. कई चीनी लड़कियां करियर पर ध्यान केंद्रित करना चाहती हैं.
लेकिन चीन की वन-चाइल्ड पॉलिसी (एक ही बच्चा पैदा करने की नीति जिसे अब ख़त्म कर दिया गया है) के अंतर्गत पैदा हुईं इन लड़कियों पर घर के दो बुज़ुर्गों को संभालने का बोझ भी है और बच्चे पैदा करने का भी.
इस साल के प्रस्ताव विवादास्पद रहे हैं क्योंकि इनमें लड़के-लड़कियों के लिए अलग शिक्षा प्रणाली की बात कही गई है.
इनमें प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूलों में पुरुषों और महिला शिक्षकों के बीच “असंतुलन में सुधार” की बात की गई है.
इस क्षेत्र में महिलाओं की संख्या काफ़ी ज़्यादा है और ये प्रस्ताव शुरुआती शिक्षा में पुरुषों की भागीदारी बढ़ाने पर केंद्रित है.
इसके अलावा प्राइमरी स्कूल में खेल-कूद पर अधिक ध्यान देने का प्रस्ताव है.
हालांकि इस प्रस्ताव मे लैंगिक भेदभाव की बात नहीं है लेकिन कानून बनाने वालों ने हाल ही में “लड़कों में पुरुषार्थ बढ़ाने के लिए लिंग के आधार पर स्कूली शिक्षा” की वकालत की थी.
‘लड़कियों की सुरक्षा’
उन्होंने सुझाव दिया था कि लड़के बहुत “शांत और डर जाने वाले हैं” और उन्हें नए और मज़बूत रोल मॉडल की ज़रूरत है.
इसके अलावा स्कूलों में यौन हिंसा को समझाने के लिए एक अनिवार्य कोर्स को जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया है.
कुछ लोग इसके समर्थन में हैं लेकिन कई लोगों का कहना है कि “लड़कियों की सुरक्षा” से जुड़ा प्रस्ताव लड़कों को अपराधी के रूप में अलग करने जैसा प्रतीत होता है.
कई यूज़र्स मानते हैं कि वैसे मामलों के लिए जिनमें पुरुष यौन शोषण का शिकार होते हैं, मौजूदा कानून अच्छे नहीं हैं.
पुरुषों द्वारा पुरुषों के यौन शोषण को 2015 में ही ग़ैरकानूनी करार दिया गया था.
युवाओं पर बोझ
युवाओं पर बोझ कम करने के लिए बने प्रस्ताव को सकारात्मक प्रक्रिया मिली है.
अकेले रहने वालों को किराए में छूट और चीन की “996” पॉलिसी के अनुसार काम करने वालों पर कड़ी निगरानी के प्रस्ताव को भी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है.
ज़्यादा काम करना चीन में एक बीमारी की तरह हो गया है.
चीन के शहरी सोसायटी में सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक और हफ़्ते में छह दिन काम करना, उनके जीने के तरीके में शामिल हो गया है.
इसके अलावा चीन में बढ़ती मानसिक बीमारी पर ध्यान देने और इसे लेकर स्कूलों में जागरूकता फैलाने करने के प्रस्ताव की भी तारीफ़ हो रही है.
चीन के सरकारी अखबारों के मुताबिक वहां करीब 9.5 करोड़ लोग डिप्रेशन का शिकार है. यानी चीन की क़रीब 2.1 प्रतिशत आबादी.
इसके अलावा एक और डेलीगेट ने डिप्रेशन और मानसिक काउंस्लिंग को हेल्थ इंश्योरेस के अंतर्गत लाने का सुझाव दिया है, जिसकी तारीफ़ की जा रही है.
पालतू जानवर पालने वाले और ‘सितारों का पीछा करने वाले’
सीपीपीसीसी में कई बार कुछ अजीब प्रस्तावों पर भी चर्चा होती है.
वीबो पर जानवरों के साथ हिंसा को चीन के विवादित सोशल क्रेडिट सिस्टम से जोड़ने और अपने पालतू जानवरो को छोड़ देने वालों को ब्लैक्लिस्ट करने के प्रस्ताव को भी तारीफ़े मिल रही है.
इसके अलावा प्रसिद्ध हस्तियों को लेकर भी काफ़ी चर्चाएं हुईं. प्रसिद्ध हस्तियां जो किसी ड्रग्स से जुड़े मामलें में लिप्ट हैं. उनपर ज़िदगीभर के लिए प्रतिबंध लगाने की नीति को समर्थन मिल रहा है.
इसके अलावा एक और प्रस्ताव की भी चर्चा है जिसमें ‘सेलिब्रिटी फै़न क्लब’ की जवाबदेही तय की गई है.
एक डेलिगेट ने कहा ‘सितारो का पीछा’ करने वाले ग्रुप पिछले कुछ समय में काफ़ी प्रसिद्ध हो गए है और एक बड़ी भीड़ इकट्ठा करने के काबिल हैं.
इसलिए इन्हें दूसरे समाजिक संगठनों की तरह ही दर्जा दिया जाना चाहिए और इन्हें “कानून के मुताबिक काम करना चाहिए और इनकी सालाना जांच होनी चाहिए” साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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