फिलहाल भारत में रोज करीब 4 लाख कोरोना के केस आ रहे हैं। इससे फरवरी में किया जा रहा महामारी पर भारत की जीत का दावा खोखला साबित हो गया है। वैसे देश का पिछले दो दशकों का इतिहास ऐसे ही आधा दर्जन दूसरे दावों से भरा रहा है, जो बाद में फुस्स साबित हुए हैं।
साल 2003 में अटल सरकार का ‘इंडिया शाइनिंग’ कैंपेन इस कड़ी का पहला दावा था, जो फेल हुआ था। इस अभियान के तहत तत्कालीन बीजेपी सरकार ने भारत की कई क्षेत्रों में तरक्की का दावा किया था। बाद में इस नारे का इस्तेमाल 2004 के आम चुनावों में भी किया गया।
‘इंडिया शाइनिंग’ की चमक फीकी पड़ी थी, चली गई थी अटल सरकार
इंडिया शाइनिंग अभियान को अटल सरकार ने बहुत जोरों-शोरों से चलाया था। इस अभियान से कांग्रेस इतनी डरी थी कि चुनाव आयोग से इस नारे का प्रयोग रोकने की गुजारिश की थी। चुनाव आयोग ने इसके प्रयोग पर रोक भी लगाई थी। यह इतना लोकप्रिय था कि उस दौरान पाकिस्तान में हुई क्रिकेट सीरीज में भारत की जीत में इस नारे का बहुत इस्तेमाल हुआ था। लेकिन आखिरकार साबित हुआ कि भारत को लेकर इस अभियान के तहत किए जाने वाले तमाम दावे केवल हवा-हवाई थे। यही वजह रही कि जनता ने चुनावों में इसे नकार दिया और अटल सरकार की ऐसे समय में हार हुई जबकि यह निश्चित माना जा रहा था कि वह सत्ता में वापसी करेगी। बाद में इस अभियान की कमियों पर लोगों ने रिसर्च किया और ‘इंडिया शाइनिंग, भारत ड्राउनिंग’ (इंडिया चमक रहा है, भारत डूब रहा है) जैसे रिसर्च पेपर भी वर्ल्ड बैंक में पेश किए गए।
सबसे तेज ग्रोथ करता लोकतंत्र बना 5 सबसे कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में से एक
कुछ सालों बाद एक और बड़ा अभियान चला, इसमें भारत को दुनिया का सबसे तेजी से ग्रोथ करता लोकतंत्र बताया गया। यूपीए 1 के शुरुआती सालों में करीब 8% ग्रोथ रेट वाली GDP इसकी वजह थी। इस दावे का शोर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी रहा। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक के दौरान ऐसा दावा करते बैनर भी देखे गए थे। लेकिन कुछ ही सालों में डबल डिजिट ग्रोथ की ओर बढ़ रही देश की GDP गिरने लगी और इसे दुनिया की पांच सबसे कमजोर अर्थव्यवस्थाओं (फ्रेजाइल फाइव) में शामिल कर दिया गया। 2013 में भारत की अर्थव्यवस्था गिरते एक्सचेंज रेट, पूंजी की कमी, बढ़ती महंगाई और कम होती ग्रोथ इसकी वजह थी। हालांकि अगले कुछ सालों में ग्रोथ थोड़ी बढ़ी, लेकिन फिलहाल कोरोना महामारी आने से चार साल पहले से ही GDP ग्रोथ लगातार कम हो रही थी। जबकि भारत की रैंकिंग ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को लेकर लगातार अच्छी हो रही थी और इसे लेकर सरकार अपनी पीठ भी ठोंक रही थी।
‘इनक्रेडिबल इंडिया’ की छवि को मुंबई हमले और निर्भया कांड ने बिगाड़ा
कुछ ही सालों बाद एक बड़ा कैंपेन इनक्रेडिबल इंडिया नाम से चला। इसमें देश को साफ-सुथरा और सुरक्षित देश बताने का प्रयास किया गया था। इस कैंपेन की कोशिश दुनिया को भारत के प्रति आकर्षित करने की थी, लेकिन इस कैंपेन के चलते छवि निर्माण की जो कोशिशें हुई थीं, वो 2008 में 26/11 मुंबई हमलों से मिट गई। बाद में निर्भया कांड जैसी घटनाओं ने इस छवि को और नुकसान पहुंचाया।
कोरोना की दूसरी लहर ने वी-शेप रिकवरी के शोर को शांत कर दिया
भारत के मामले में FDI को लेकर काफी बात होती है, लेकिन GDP के मुकाबले निवेश लंबे समय से 28% पर ही स्थिर है। तमाम कोशिशों के बाद भी इसमें पिछले 5 सालों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। पिछले साल के आखिर में ही वी-शेप रिकवरी को लेकर भी शोर मचाया जाने लगा था और फरवरी आते-आते यह भी कहा जाने लगा कि कोरोना को भारत ने हरा दिया है और देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है, लेकिन कोरोना की भयानक दूसरी लहर ने ऐसी सभी आशाओं पर भी पानी फेर दिया है।
दुनिया की फार्मेसी भारत में ऑक्सीजन और दवाओं का अकाल
वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत दुनियाभर में कोविड वैक्सीन की सप्लाई करने वाले भारत को दुनिया की फार्मेसी बताने में नेता और जनता दोनों ही गर्व का अनुभव कर रहे थे, लेकिन अब लगातार सामने आ रही ऑक्सीजन, दवाओं, बेड और श्मशान की खबरों ने भारत की इस छवि को भी भारी नुकसान पहुंचाया है। देश उन्हीं इंजेक्शन और दवाओं की कमी से जूझ रहा है जिनके उत्पादन में उसे अग्रणी माना जाता था। अब उज्बेकिस्तान जैसे छोटे-छोटे देशों के साथ कुल 40 देश भारत की मदद कर रहे हैं।
विश्वगुरु बनने की चाह, लेकिन ‘थर्ड वर्ल्ड’ देश जैसे हालात
मोदी सरकार के आने के बाद तमाम बड़े अखबारों और पत्रिकाओं में भारत के बड़ी वैश्विक शक्ति और विश्वगुरु बनने के दावे किए गए थे। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फरवरी 2020 में भारत आगमन पर भी ऐसे ही दावे किए गए थे, लेकिन फिलहाल भारत की स्थिति पर वरिष्ठ पत्रकार टीएन निनान ने अपने एक लेख में लिखा है, ‘ऐसा लगता है कि भारत वापस से तीसरी दुनिया के देशों की श्रेणी में वापस जा चुका है।’
‘आपदा के समय अहंकार नहीं, विनम्रता से मिलती है सफलता’
कई देशों ने कोरोना की दूसरी लहर से पहले ऑक्सीजन उत्पादन और वैक्सीन निर्माण बढ़ाने की तैयारी की थी। ऐसे देश कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में सफल भी रहे। भारत में भी महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के डीएम (जो खुद एक डॉक्टर हैं) ने ऐसी कोशिश की थी और अपने जिले में दूसरी कोरोना लहर से निपटने में भी वे सफल रहे। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी तैयारियां नहीं हुईं।
कोरोना त्रासदी के बाद देश की स्थिति पर टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे एक लेख में अर्थशास्त्री अजीत रानाडे लिखते हैं, ‘आपदा के समय अहंकार के बजाय विनम्रता ज्यादा अच्छे नतीजे लाती है बल्कि इसे तब भी बनाए रखना चाहिए जब भारत वास्तव में बहुत अच्छा कर रहा हो।’ उनके मुताबिक ऐसी सोच का असर कई जगह दिखा भी है। कोरोना की दूसरी लहर की विभीषिका का अनुमान तो बड़े-बड़े एक्सपर्ट्स ने भी नहीं किया था, लेकिन पिछले साल मजदूरों की पैदल घर वापसी और देर से हुए खाद्यान्न वितरण से तो सीख जरूर ली गई। इस बार ऐसी खबरें सामने नहीं आईं। इतना ही नहीं लॉकडाउन का अधिकार राज्यों को देकर भी एक समझदारी भरा कदम उठाया गया। पिछली बार जितना कड़ा लॉकडाउन न करना भी अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद रहा है।साभार-दैनिक भास्कर
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad
Discussion about this post