भारत से करीब 14 साल बाद आजाद होने के बाद भी बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति GDP भारत के करीब पहुंच चुकी है। यह पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति GDP को पहले ही पीछे छोड़ चुका था। कभी यही बांग्लादेश गरीबी के अलावा सूखा, बाढ़ और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं, के लिए जाना जाता था। बांग्लादेश की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पर कभी अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने टिप्पणी करते हुए उसे ‘बास्केट केस’ (ऐसा देश जिससे कोई आशा नहीं हो) कहा था।
अब उसी बांग्लादेश को पूरी दुनिया आशाभरी नजरों से देखा रही है। इसकी आजादी के 50 साल होने पर वॉल स्ट्रीट जर्नल ‘दक्षिण एशिया का तेजी से आर्थिक तरक्की करता देश- बांग्लादेश’ शीर्षक से एक लेख छाप रहा है। जिसमें लिखा जा रहा है, ‘एकदम जवान लोग, वेतन के मामले में मौजूद फायदा, खासकर लेबर फोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी पर दुनिया भी ध्यान दे रही है।’
बांग्लादेश की बड़ी सफलता का मंत्र- कपड़ा, NGO, महिलाएं
बांग्लादेश की इस सफलता में तीन चीजों का अहम रोल रहा है- कपड़ा, NGO और महिलाएं। इन तीन के दम पर बांग्लादेश कई मामलों में भारत को भी पीछे छोड़ चुका है।
साल 2000 में अंतरराष्ट्रीय कपड़ा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 3% और बांग्लादेश की हिस्सेदारी 2.6% थी। तबसे अबतक बांग्लादेश अपनी हिस्सेदारी को दोगुना से भी ज्यादा बढ़ा चुका है, जबकि भारत की हिस्सेदारी में सिर्फ 1.1% की बढ़त हुई है।
अब भी गरीबी, अकुशल मजदूर बड़ी समस्या
बांग्लादेश अपने ‘बास्केट केस’ टैग को पीछे छोड़ चुका है और अब प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बांग्लादेश को 2031 तक मध्यम आय वाला देश बनाने का लक्ष्य रखा है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक मध्यम आय वाले देशों में नागरिकों की औसत प्रति व्यक्ति आय 3 लाख रुपए से 9.5 लाख रुपए होती है। इसलिए यह लक्ष्य पाना आसान नहीं होगा। गरीबी यहां सबसे बड़ी समस्या है। हालांकि बांग्लादेश में यह भारत और पाकिस्तान के मुकाबले कम है। लेकिन वर्ल्ड बैंक ने महामारी के चलते बांग्लादेशी जनता के एक वर्ग में गरीबी बढ़ने की बात कही है।
वहीं बहुत सस्ता और अकुशल लेबर भी समस्या है। एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) के प्रकाश के मुताबिक, ‘सस्ते लेबर से फायदा तो है, लेकिन मशीनी उत्पादन के लिए इन्हें स्किल सिखाए जाने की जरूरत है। जैसा वियतनाम ने सफलतापूर्वक करके दिखाया है। सरकार को R&D में निवेश करना चाहिए। जिससे इन कर्मचारियों को रोजगार मिलने में आसानी होगी।’
अपनी बात को विदेश में रह रहे भारतीयों से जोड़ते हुए उन्होंने कहा, वर्तमान में विदेशों में रह रहे 1 करोड़ बांग्लादेशी 1.88 लाख करोड़ रुपए वापस भेजते हैं। अगर स्थानीय लोगों को अच्छी तरह से स्किल किया जाए तो यह रकम 7.52 लाख करोड़ तक पहुंच सकती है।
बांग्लादेश में मूलभूत संरचना का भी अभाव
बांग्लादेश को मूलभूत संरचना के तहत रोड और बंदरगाह भी विकसित करने होंगे। प्रकाश कहते हैं, ‘चटगांव बंदरगाह बहुत भीड़भाड़ वाला है। जापानी मातारबारी में एक और बंदरगाह बना रहे हैं। यह बांग्लादेश को गोदाम बनाने और कंटेनर ट्रैफिक को आकर्षित करने में मदद कर सकता है। बांग्लादेश में फिलहाल FDI, GDP का 0.6% ही है। जो कि बहुत कम है।’
बांग्लादेश की तरक्की भारत के लिए अच्छी या बुरी?
पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों से घिरे भारत के लिए बांग्लादेश को अपने साथ रखना भी बहुत जरूरी है। भारत की ओर से बांग्लादेश को दिया गया 60 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज, दोनों देशों को फायदा पहुंचाने वाले कई कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट और सारे पड़ोसी देशों में सबसे ज्यादा 90 लाख कोविड-19 वैक्सीन के डोज भेजना, इसी दिशा में एक प्रयास है।
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल कहते हैं, ‘भारत बांग्लादेश के साथ 4100 किमी बॉर्डर शेयर करता है। शांत और समृद्ध बांग्लादेश में भारत का अहम रोल रहेगा। इसकी एक वजह यह है कि आर्थिक रूप से संपन्न बांग्लादेश यह तय करेगा कि वहां से गैरकानूनी तरीके से नागरिक भारत नहीं आएंगे, जो भारत से संबंधों के लिए एक बड़ी समस्या रहा है।’
कई मामलों में एक-दूसरे पर निर्भर भारत-बांग्लादेश
भारत और बांग्लादेश दोनों ही सामान ढोने के लिए एक-दूसरे की जमीन का प्रयोग करते आ रहे हैं। जहां भारत उत्तर-पूर्व के इलाके में सामान भेजने के लिए बांग्लादेश की जमीन काम में लाता है, वहीं बांग्लादेश भी अपना सामान नेपाल भेजने के लिए भारतीय जमीन का प्रयोग करता है। इसके अलावा दोनों के बीच नदियों के पानी का बंटवारा भी होता है।
इसी वजह से दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्तों के चलते असहमतियों पर बंद कमरे में चर्चा होती है और नजदीकी का प्रदर्शन सरेआम होता है। लंदन के किंग्स कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर हर्ष वी पंत कहते हैं, “दोनों के बीच कई अनसुलझे मुद्दे हैं- जैसे तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे का मुद्दा एक रुकावट है। लेकिन जब भी सार्वजनिक रूप से ये संदर्भ आता है, बांग्लादेश हमेशा भारत की क्षमताओं को समझता है।”
साभार दैनिक भास्कर
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