आज की पॉजिटिव खबर में बात बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के रहने वाले नीतिल भारद्वाज की। नीतिल दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते थे। अच्छी-खासी सैलरी भी थी, लेकिन आगे उनकी लाइफ में ऐसा टर्निंग पॉइंट आया कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी और गांव लौट आए। नीतिल पिछले दो साल से मोती की खेती (Pearl farming) और मछली पालन कर रहे हैं। वे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता सहित देश के कई हिस्सों में अपने प्रोडक्ट की सप्लाई कर रहे हैं। इससे उन्हें 30 लाख रुपए सालाना कमाई हो रही है।
अखबार से मोती की खेती के बारे में जानकारी मिली
नीतिल किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता खेती करते हैं। वे बताते हैं कि 2017 की बात है। तब मैं गांव आया हुआ था। उस वक्त पिताजी ने एक अखबार में मोतियों की खेती के बारे में पढ़ा। इसके बाद उन्होंने मुझसे जानकारी साझा की। मुझे ये कॉन्सेप्ट अच्छा लगा। मैंने सोचा कि कुछ अलग करने के लिए ये एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है। इसके बाद मैं मोतियों की खेती के बारे में जानकारी जुटाने लगा।
मध्य प्रदेश में ट्रेनिंग ली, कुछ महीने काम भी किया
उस दौरान मुझे जानकारी मिली कि मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में इसकी खेती की जाती है और ट्रेनिंग भी दी जाती है। फिर क्या था, छुट्टी लेकर मैं मध्यप्रदेश चला गया। वहां मैंने हर एक जानकारी जुटाई, खेती की प्रोसेस को समझा। इसके बाद कुछ दिनों तक रहकर वहां काम भी किया। जब लगा कि ये काम मैं खुद भी कर सकता हूं तो वहां से गांव लौट आया।
25 हजार रुपए की लागत से शुरुआत
साल 2019 में नीतिल ने नौकरी छोड़ दी और मोतियों की खेती शुरू कर दी। सबसे पहले उन्होंने एक एकड़ जमीन पर तालाब खुदवाया। इसके लिए उन्हें सरकार की तरफ से 50% सब्सिडी मिली। फिर चेन्नई से 500 सीपियां खरीदीं और अपने तालाब में उन्हें लगा दिया। शुरुआत में उनके करीब 25 हजार रुपए खर्च हुए, लेकिन पहली बार में ही उन्हें 75 हजार रुपए का मुनाफा हुआ। इसके बाद नीतिल ने दायरा बढ़ा दिया। अगले साल उन्होंने 25 हजार सीपियां तालाब में डालीं। इसके साथ ही उन्होंने मछली पालन का भी काम शुरू कर दिया। इससे उनकी कमाई बढ़ गई।
मोती की खेती के लिए किन चीजों की जरूरत होगी?
नीतिल बताते हैं कि मोती की खेती के लिए एक तालाब, सीप ( जिससे मोती तैयार होता है) और ट्रेनिंग, इन तीन चीजों की जरूरत होती है। तालाब चाहे तो आप खुद के खर्च पर खुदवा सकते हैं या सरकार 50% सब्सिडी देती है, उसका भी लाभ ले सकते हैं। सीप भारत के कई राज्यों में मिलते हैं। हालांकि नीतिल के मुताबिक दक्षिण भारत और बिहार के दरभंगा के सीप की क्वालिटी अच्छी होती है। इसकी ट्रेनिंग के लिए भी देश में कई संस्थान हैं। नीतिल ने मध्यप्रदेश के होशंगाबाद और मुंबई से मोती की खेती की ट्रेनिंग ली है। उनके मुताबिक बिना ट्रेनिंग इसकी खेती नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसके लिए सीपियों की देखभाल, ट्रीटमेंट और ऑपरेशन की जरूरत होती है।
कैसे करें मोतियों की खेती?
नीतिल के मुताबिक सबसे पहले सीपियों को एक जाल में बांधकर 10 से 15 दिनों के लिए तालाब में डाल दिया जाता है। ताकि वो अपने मुताबिक अपना एनवायरमेंट क्रिएट कर सकें। इसके बाद उन्हें बाहर निकालकर उनकी सर्जरी की जाती है। सर्जरी यानी सीप के अंदर एक पार्टिकल या सांचा डाला जाता है। इसी सांचे पर कोटिंग के बाद सीप लेयर बनाते हैं, जो आगे चलकर मोती बनता है। सर्जरी के बाद फिर से सीपियों का मेडिकल ट्रीटमेंट किया जाता है। इसके बाद छोटे-छोटे बॉक्स में इन सीपियों को बंद करके तालाब में रस्सी के सहारे लटका दिया जाता है। इस दौरान हर दिन हमें ये देखना होता है कि कौन सा सीप जिंदा है और कौन सा डेथ कर गया। जो डेथ कर जाता है, उसे निकाल लिया जाता है। ये काम रोज 15 दिनों तक करना होता है। इस प्रोसेस में करीब 8 से 10 महीने का वक्त लगता है। इसके बाद सीप से मोती निकलने लगता है।
लागत से तीन से चार गुना तक कमा सकते हैं मुनाफा
नीतिल बताते हैं कि एक सीप के तैयार होने में 30 से 35 रुपए का खर्च आता है। जबकि तैयार होने के बाद एक सीप से दो मोती निकलते हैं। और एक मोती कम से कम 120 रुपए में बिकता है। अगर क्वालिटी अच्छी हुई तो 200 रुपए से भी ज्यादा कीमत मिल सकती है। वे बताते हैं कि अगर हम एक एकड़ के तालाब में 25 हजार सीपियां डालें तो इस पर करीब 8 लाख रुपए का खर्च आता है। अगर हम ये भी मान लें कि तैयार होने के क्रम में कुछ सीप बर्बाद भी हो गए तो भी 50% से ज्यादा सीप सुरक्षित निकलते ही हैं। इससे आसानी से 30 लाख रुपए सालाना कमाई हो सकती है।
लॉकडाउन में कई लोगों को रोजगार भी दिया
नीतिल खेती के साथ-साथ किसानों को मोतियों की खेती की ट्रेनिंग भी देते हैं। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान उन्होंने कई मजदूरों को इसकी ट्रेनिंग दी है। नीतिल बताते हैं कि लॉकडाउन के चलते कई लोग बेरोजगार हो गए थे। मुझे लगा कि इनकी मदद करनी चाहिए। मैंने कुछ लोगों को ट्रेनिंग सिखाने का ऑफर दिया। इसमें से करीब एक दर्जन लोग ट्रेनिंग के लिए राजी हो गए। अभी मेरे यहां इनमें से ही 6 लोग काम कर रहे हैं। उन्हें 6 से 7 हजार रुपए मैं तनख्वाह देता हूं।
नीतिल अभी अपने मोतियों को व्यापारियों को बेच देते हैं। ये व्यापारी इनकी प्रोसेसिंग करते हैं और नए प्रोडक्ट तैयार करके महंगे दाम पर बेचते हैं। आगे वे भी अपने खेतों पर ही मोतियों की प्रोसेसिंग का काम शुरू करेंगे। ताकि वह इससे ज्यादा मुनाफा कमा सकें।
तालाब में इंटीग्रेटेड फार्मिंग भी कर सकते हैं
नीतिल बताते हैं कि तालाब इंटीग्रेटेड फार्मिंग के लिए भी बेहतर विकल्प है। आप इसमें मोतियों की खेती, मछली पालन और बतख पालन कर सकते हैं। साथ ही तालाब के किनारे पर आप पोल्ट्री भी खोल सकते हैं। कुछ पेड़-पौधे भी लगा सकते हैं। ये सभी एक दूसरे के पूरक हैं। इससे कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। साभार-दैनिक भास्कर
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad
Discussion about this post