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उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की व्यापक पहुँच का आधार दूसरे दलों से आए कई नेता और कार्यकर्ता रहे और अब बीजेपी ने समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के परिवार में ही राजनीतिक सेंध लगानी शुरू कर दी है.
पार्टी ने मैनपुरी में ज़िला पंचायत की निवर्तमान उपाध्यक्ष संध्या यादव को वार्ड नंबर 18 से ज़िला पंचायत सदस्य का टिकट देकर इसकी शुरुआत की है.
संध्या यादव समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह की भतीजी यानी उनके बड़े भाई अभयराम यादव की बेटी और बदायूं से सपा के पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन हैं.
संध्या यादव ने साल 2015 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर ही ज़िला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता था लेकिन अबकी बार वो बीजेपी में शामिल हो गई हैं.
संध्या यादव के पति अनुजेश प्रताप यादव कहते हैं कि शीर्ष नेतृत्व का रिश्तेदार होने के बावजूद उन्हें पार्टी ने सम्मान नहीं दिया, इसलिए पहले वो ख़ुद और अब उनकी पत्नी बीजेपी में शामिल हो गई हैं.
बीबीसी से बातचीत में अनुजेश प्रताप यादव कहते हैं, “इसमें कोई नई बात नहीं है. मैं तो साल 2017 में ही बीजेपी में शामिल हो गया था और जब मैं यहाँ हूं तो पत्नी के किसी और पार्टी में रहने का मतलब ही नहीं है. जब हमारे ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तो बीजेपी ने ही हमारी मदद की और सम्मान बढ़ाया. मैं समाजवादी पार्टी में अपनी मर्जी से था, किसी का ग़ुलाम तो था नहीं.”
संध्या यादव साल 2015 में मैनपुरी की ज़िला पंचायत अध्यक्ष बनी थीं. जुलाई 2017 में समाजवादी पार्टी ही उनके ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाई थी लेकिन जोड़-तोड़ की वजह से अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं हो सका था.
इटावा में स्थानीय पत्रकार दिनेश शाक्य कहते हैं, “संध्या यादव के ख़िलाफ़ आए अविश्वास प्रस्ताव पर कुल 32 ज़िला पंचायत सदस्यों में से 23 के हस्ताक्षर थे. लेकिन बीजेपी के सहयोग से वे अपनी सीट बचा ले गईं. उसके बाद से ही वो बीजेपी के क़रीब हो गईं. उनके पति तो उसी समय बीजेपी में शामिल हो गए थे लेकिन संध्या अब शामिल हुई हैं. लोकसभा चुनाव के वक़्त भी सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन के रूप में मीडिया में जब उनकी चर्चा हुई तो ख़ुद धर्मेंद्र यादव ने सार्वजनिक रूप से संबंध विच्छेद करने की घोषणा कर दी थी.”
यह पहला मौक़ा है जबकि मुलायम सिंह यादव के परिवार का कोई सदस्य भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहा है.
दिनेश शाक्य बताते हैं कि पति अनुजेश यादव के बीजेपी में शामिल होने के बावजूद संध्या यादव बीजेपी के कार्यक्रमों में कभी नहीं दिखीं. उनके मुताबिक, गत बुधवार को वो पहली बार बीजेपी दफ़्तर गईं और वहीं से नामांकन करने गईं.
समाजवादी पार्टी के लिए मैनपुरी का स्थान इटावा से क़तई कम नहीं है. ऐसे में मुलायम परिवार की एक सदस्य का बीजेपी में शामिल होना ख़ासा महत्व रखता है.
संध्या यादव के पति अनुजेश यादव का परिवार भी राजनीतिक रूप से काफ़ी सक्रिय और प्रभावी रहा है. अनुजेश यादव की माँ उर्मिला यादव और उनके चाचा जगमोहन यादव भी तत्कालीन घिरोर विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं.
मैनपुरी के करहल विधानसभा क्षेत्र और फ़िरोज़ाबाद के सिरसागंज विधानसभा क्षेत्र में इस परिवार का काफ़ी प्रभाव माना जाता है.
हालाँकि समाजवादी पार्टी संध्या यादव के बीजेपी में शामिल होने और उसके टिकट पर चुनाव लड़ने को बहुत ज़्यादा तवज्जो नहीं देती.
संध्या यादव के बड़े भाई धर्मेंद्र यादव साल 2019 के उस पत्र का हवाला देते हुए इस मुद्दे पर किसी भी बातचीत से इनकार कर देते हैं जिसमें उन्होंने अपनी बहन संध्या और उनके पति अनुजेश अवस्थी से आगे कोई मतलब न रखने की घोषणा की थी.
वहीं समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता जूही सिंह इसे पार्टी के लिए किसी नुकसान के तौर पर नहीं देखतीं.
जूही सिंह कहती हैं, “बीजेपी के पास वहाँ उम्मीदवार ही नहीं थे तो उसने सपा में ढूंढ़ने की कोशिश की. सपा के लिए पूरी पार्टी ही परिवार है. ये तो अच्छा ही हुआ कि हमारे ऊपर इल्ज़ाम लगता था कि हम परिवार की राजनीति करते हैं. इससे तो कार्यकर्ताओं में यही संदेश जाएगा कि हम परिवार तक ही सीमित नहीं हैं. और राजनीति में तो ऐसा होता ही है. बहुत से लोग पहले भी गए थे, बहुत से लोग वापस भी आए हैं. दूसरे दलों के लोग भी हमारी पार्टी से जुड़ रहे हैं. तो राजनीति में यह बहुत सामान्य प्रक्रिया है. इससे बहुत फ़र्क नहीं पड़ेगा.”
जूही सिंह कहती हैं कि पंचायत चुनाव में बहुत से लोग सरकार की मदद की भी उम्मीद लगाए रखते हैं और उस रणनीति के तहत भी सत्तारूढ़ पार्टी में चले जाते हैं. उनके मुताबिक, हो सकता है कि संध्या यादव के मामले में भी ऐसा ही हुआ हो. लेकिन संध्या यादव के पति अनुजेश यादव के मुताबिक, वो इस तरह बीजेपी में गए हैं कि अब लौटकर समाजवादी पार्टी में आने वाले नहीं हैं.
बीजेपी का क्या है कहना?
अनुजेश यादव कहते हैं, “शिवपाल यादव ने तो अलग पार्टी ही बना ली लेकिन उन्हें तो परिवार से बेदख़ल नहीं किया गया. संध्या यादव के लिए सार्वजनिक बयान जारी कर दिया कि उनका परिवार से कोई मतलब नहीं है.”
वहीं दूसरी ओर, बीजेपी इसे ‘समाजवादी पार्टी के बिखरते जनाधार और बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता’ के तौर पर देखती है.
मैनपुरी में बीजेपी के ज़िला अध्यक्ष प्रदीप चौहान कहते हैं, “यह शुरुआत है. अभी कई और लोग कतार में हैं. केंद्र और प्रदेश में बीजेपी सरकारों का काम सभी देख रहे हैं. दूसरे दलों के लोगों को भी लगने लगा है कि बीजेपी के रहते उनका सत्ता में आना संभव नहीं है. हमारी पार्टी में जो भी शामिल होगा, उसका स्वागत है.”
संध्या यादव के मैनपुरी से ज़िला पंचायत चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार बनने पर काँग्रेस पार्टी ने भी तल्ख़ टिप्पणी की है.
यूपी कांग्रेस में अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने इसे सपा और बीजेपी के क़रीबी रिश्ते का एक उदाहरण बताया है.
शाहनवाज़ आलम कहते हैं, “मुलायम सिंह यादव अपने सजातीय वोटों को ज़रूरत पड़ने पर बीजेपी में ट्रांसफ़र कराने का जो काम पिछले 30 सालों से छिप कर करते थे, वो अब उनका कुनबा खुलेआम करने लगा है.”
जानकारों के मुताबिक यदि बीजेपी ज़िला पंचायत में जीत हासिल करती है तो यह आगामी विधानसभा चुनाव के लिहाज़ से भी एक बड़ा संदेश होगा क्योंकि इस सीट पर लंबे समय से समाजवादी पार्टी का ही कब्ज़ा रहा है.
पिछले चुनाव में संध्या यादव समाजवादी पार्टी से ज़िला पंचायत अध्यक्ष बनी थीं जबकि उनसे पहले सपा के ही आशु दिवाकर अध्यक्ष थे. आशु दिवाकर भी अब बीजेपी में हैं. उनसे पहले समाजवादी पार्टी से ही डॉक्टर सुमन यादव लगातार तीन बार ज़िला पंचायत अध्यक्ष रही थीं.
ऐसे में समाजवादी पार्टी के सामने जहाँ इस सीट पर कब्ज़ा बरकरार रखने की चुनौती होगी वहीं पहली बार जीत का इंतज़ार कर रही बीजेपी के हौसले बुलंद होंगे.
बीजेपी ने संध्या यादव को पार्टी में शामिल करके एक बड़ा संदेश देने की कोशिश भले ही की हो लेकिन लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्र इसका मतलब सिर्फ़ प्रतीकात्मक ही देखते हैं, वे कहते हैं कि यह बीजेपी को बहुत फ़ायदा पहुँचाने वाला नहीं है.
सुभाष मिश्र कहते हैं, “मुलायम परिवार से कोई बड़ा नेता तो गया नहीं है. बीजेपी ने कोई बड़ी सेंध मार ली हो, ऐसा नहीं है. हाँ, कोशिश में वो रहती है. अपर्णा यादव को लेकर भी सॉफ़्ट रहती है, शिवपाल यादव पर भी बीजेपी काफ़ी काम कर रही है लेकिन अब तक सफल नहीं हुई. उसने एक संदेश देने की कोशिश ज़रूर की है कि मुलायम सिंह के परिवार में सेंध लगा दी, लेकिन सच्चाई यही है कि परिवार में रामगोपाल से लेकर सभी ने मुलायम सिंह के बाद अखिलेश यादव के नेतृत्व को स्वीकार किया है.” साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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