शिक्षा में नवाचार:अंग्रेजी से घबराते थे बच्चे, किताबों की जगह पेड़-पौधे, मिट्टी की मदद से पढ़ाया

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से तकरीबन 100 किमी दूर मुंगेली जिला है। आम स्कूलों से अलग यहां के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई अमूमन चारदीवारी में नहीं होती। स्कूल अंग्रेजी माध्यम का है। ऐसे में बच्चों में अंग्रेजी का डर बैठा था। भाषा की इस दीवार को सरकारी स्कूल के शिक्षक मिलकर गिरा रहे हैं। वे बच्चों को प्रकृति के बीच ले जाते हैं।

प्रयोगधर्मिता से किताबों के जटिल पाठ, विज्ञान के प्रयोगों को बाग-बगीचों, मिट्‌टी, फूलों से समझाते हैं। धीरे-धीरे बच्चों का न सिर्फ डर जा रहा है, बल्कि अंग्रेजी के प्रति झिझक भी दूर हो रही है। मुंगेली के इस नए प्रयोग से दूसरे सरकारी स्कूल भी प्रेरित हो रहे हैं।

इस नवाचार के पीछे शासकीय इग्नाइट इंग्लिश मीडियम, मिडिल व प्राइमरी स्कूल में अंग्रेजी और विज्ञान पढ़ाने वाली शिक्षिका स्वाति पांडे हैं। सरकार ने तीन साल पहले ही यहां प्रयोग के तौर पर अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोला है। स्वाति बताती हैं कि मिडिल स्कूल में 2018-19 सत्र में पहले साल पांचवीं उत्तीर्ण तीन बच्चों ने दाखिला लिया।

इलाके में अधिकांश मजदूर व किसान के बच्चे हैं। बच्चों के साथ माता-पिता को डर था कि वे फेल हो जाएंगे। शिक्षकों की पहली चुनौती उन्हें स्कूल में दाखिला दिलाना थी। स्वाति ने माता पिता को समझाया कि हिंदी के साथ अंग्रेजी शिक्षा आज कितनी जरूरी है। स्कूल के अन्य दो शिक्षक परमेश्वर देवांगन और मनाकृष्ण चंद्राकर भी बच्चों को प्रेरित कर रहे हैं।

इस साल कोरोना के कारण छठवीं में कई बच्चे एडमिशन नहीं ले पाए। शिक्षकों ने उनकी ऑनलाइन के साथ ऑफलाइन कक्षाएं लीं। जो बच्चे क्लास नहीं कर पाते थे, उन्हें घर-घर जाकर पढ़ाया। शहर के बीच में एक सरकारी गार्डन है, वहां स्कूल के बच्चों को बुलाकर क्लास लेती हैं। यह गार्डन कस्बे के बीच में है, जिससे बच्चों को नजदीक पड़ता है, यहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए बच्चों को पढ़ाया जाता है।

पहले डर मिटाया, अब समझ बढ़ा रहे
स्वाति बताती हैं बच्चों की अंग्रेजी ए, बी, सी, डी तक ही सीमित थी। वे उनकी कक्षाएं खुले बगीचे में लेने लगीं। विज्ञान में कई पाठ हवा, पानी, मिट्टी, पेड़-पौधे से जुड़े हैं, इसलिए क्लास किताब से नहीं बल्कि बाहर बगीचे में उन्हें देख व महसूस करके होती है। किताबों से ज्यादा प्राकृतिक व खेलकूद के तरीके से पढ़ाते हैं। इससे बच्चे रटने की बजाय समझते हैं। बच्चों के मन से काफी हद तक डर निकल गया है, ऐसे में धीरे-धीरे उनकी अंग्रेजी बेहतर हो रही है। तीन बच्चों से शुरू हुए सत्र में आज आठवीं में 51, सातवीं में 21 और छठवीं में 10 छात्र हैं।साभार-दैनिक भास्कर

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