- आरक्षण चक्रीय आधार पर लागू करने का आदेश दिया गया है
- फिलहाल आरक्षण प्रक्रिया का आधार वर्ष 1995 को बनाया गया है
- जबकि राज्य सरकार ने वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव के लिए नया आधार वर्ष 2015 घोषित किया था
UP Panchayat Chunav : प्रयागराज उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की आरक्षण प्रक्रिया पर स्थगन आदेश पारित कर दिया है। याचिका को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। अब सरकार आने वाले सोमवार को अपना पक्ष रखेगी। दूसरी ओर राज्य के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने सभी डीएम को पत्र भेजकर आरक्षण प्रक्रिया रोकने का आदेश दिया है। ऐसे हालात क्यों पैदा हुए और हाईकोर्ट का यह आदेश आने की वजह क्या है? आइए आपको तफसील से पूरी जानकारी देते हैं।
उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में जिला पंचायत वार्ड, क्षेत्र पंचायत वार्ड, ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्यों का चुनाव करवाने के लिए आरक्षण प्रक्रिया चल रही है। आरक्षण चक्रीय आधार पर लागू करने का आदेश दिया गया है। जिसके लिए वर्ष 1994 की उत्तर प्रदेश पंचायतराज आरक्षण एवं आवंटन नियमावली का उपयोग किया जा रहा है। इसी नियमावली के जरिए आरक्षण लागू करने की खिलाफत करते हुए अजय कुमार नामक याची प्रयागराज हाईकोर्ट पहुंचे। उन्होंने जनहित याचिका दायर की। हाईकोर्ट को बताया है कि यह प्रक्रिया नियम विरुद्ध है। सरकार गलत तरीके से पंचायतों में आरक्षण लागू कर रही है।
जनहित याचिका में यह तर्क दिया गया है
अजय कुमार की ओर से मोहम्मद अल्ताफ मनसूर एडवोकेट हाईकोर्ट में पैरवी कर रहे हैं। जबकि, सरकार की ओर से चीफ स्टैंडिंग काउंसिल अनुराग कुमार सिंह हाजिर हुए। याची के अधिवक्ता ने जस्टिस ऋतुराज अवस्थी और जस्टिस मनोज माथुर की अदालत को बताया कि यह जनहित याचिका उत्तर प्रदेश सरकार के 11 फरवरी 2021 को जारी आदेश के खिलाफ दायर की गई है। जिसमें पंचायत इलेक्शन के लिए आरक्षण लागू करने को कहा गया है। मोहम्मद अल्ताफ मनसूर ने अदालत को बताया कि यूपी की पंचायतों में आरक्षण प्रक्रिया वर्ष 1994 में लागू की गई। यह नियमावली के नियम संख्या-4 के तहत लागू की जा रही है। संविधान की धारा 243-डी में किए गए संशोधन के मुताबिक नियम संख्या-4 के तहत आरक्षण प्रक्रिया का आधार वर्ष 1995 को बनाया गया है। इसी के आधार पर वर्ष 1995, 2000, 2005 और 2010 में राज्य की पंचायतों का चुनाव करवाया गया था।
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2015 में बड़ा बदलाव कर दिया
याची के वकील ने अदालत को बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 16 सितंबर 2015 को एक बड़ा बदलाव किया। सरकार ने कहा था कि राज्य के जिलों, ग्राम पंचायत और क्षेत्र पंचायतों में भौगोलिक व जनसंख्या के आधार पर बड़ा बदलाव आया है। वर्ष 2001 और 2011 की जनगणना को ध्यान में रखते हुए अब वर्ष 1995 को आरक्षण का आधार वर्ष मानना उचित नहीं है। लिहाजा, राज्य सरकार ने वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव के लिए नया आधार वर्ष 2015 घोषित कर दिया था।
अब सरकार ने 2015 के आदेश की अनदेखी की है
याची के वकील ने अदालत को बताया कि अब उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने 16 सितंबर 2015 के आदेश की अनदेखी की है। जिला प्रशासन और राज्य सरकार 1994 की नियमावली के अनुसार आरक्षण लागू कर रहे हैं और आधार वर्ष 2015 की वजह 1995 को बना रहे हैं। अधिवक्ता ने कहा, अदालत को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए की वर्ष 2015 का चुनाव नई व्यवस्था के तहत ही करवाया गया था। ऐसे में अब 2021 का चुनाव 1995 को आधार वर्ष बनाकर कैसे करवाया जा सकता है। इससे पंचायतों के आरक्षण की चक्रीय व्यवस्था पूरी तरह दूषित हो गई है। लिहाजा, सरकार को आदेश दिया जाए कि वह अपने 16 सितंबर 2015 के आदेश का अनुपालन करें और इस चुनाव में आरक्षण लागू करने के लिए 2015 को ही आधार वर्ष माने। सरकार का 16 सितंबर 2015 का आदेश अभी क्रियाशील है।
प्रयागराज हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
शुक्रवार को प्रयागराज उच्च न्यायालय ने मामले में सुनवाई की। याची के तर्कों को प्रारंभिक रूप से सही मानते हुए आरक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाने का आदेश राज्य सरकार को दिया है। साथ ही 15 मार्च यानी आने वाले सोमवार को एक बार फिर इस याचिका पर सुनवाई की जाएगी। तब तक आरक्षण प्रक्रिया पर रोक रहेगी। हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद राज्य सरकार के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने सभी जिलाधिकारी को पत्र भेजा है। जिसमें अंतिम रूप से आरक्षण प्रक्रिया को लागू नहीं करने का आदेश दिया गया है।साभार- ट्रीसिटी टुडे
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