मेरठ की रहने वाली सना खान डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन अच्छी रैंक नहीं आने की वजह से उन्होंने बीटेक इन बायोटेक्नोलाॅजी में एडमिशन लिया और फिर वर्मीकम्पोस्टिंग का बिजनेस शुरू किया।
- मेरठ की रहने वाली सना खान ने बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई के दौरान शुरू किया था वर्मीकम्पोस्ट का बिजनेस
- इस काम के चलते वो मेरठ में स्वच्छता की ब्रांड एम्बेसडर बनीं, फिर ‘मन की बात’ प्रोग्राम में पीएम मोदी ने भी उनके काम की तारीफ की
आज की कहानी है उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ में रहने वाली 27 साल की सना खान की। जो अपनी कंपनी ‘एसजे ऑर्गेनिक्स’ के जरिए पारंपरिक तरीकों से वर्मीकम्पोस्ट (केंचुआ खाद) तैयार करती हैं। सना ने वर्मीकम्पोस्टिंग कंपनी नवंबर 2014 में उस वक्त शुरू की थी जब वो बी.टेक बायोटेक्नोलॉजी के फाइनल ईयर में थीं। 6 साल पहले शुरू हुए वर्मीकम्पोस्टिंग के बिजनेस का सालाना टर्नओवर अब एक करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। इसके अलावा उन्होंने अपनी कंपनी में करीब 25 लोगों को रोजगार भी दिया है। वहीं साल 2018 में सना के काम की सराहना देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अपने शो ‘मन की बात’ के 41वें एपिसोड में भी कर चुके हैं।
सना कहती हैं, ‘मेरे पापा लेडीज टेलर हैं, मेरे नाना गैराज चलाते थे और मेरे भाई एक फैक्ट्री में जॉब करते थे। वो सब चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं, लेकिन मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम में मेरी 18 रैंक कम थी तो सिलेक्शन नहीं हो पाया। वहीं UPTU में 45वीं रैंक थी तो मुझे ट्यूशन फीस वेवर पर गाजियाबाद के IMS इंजीनियरिंग कॉलेज में बीटेक बायोटेक में एडमिशन मिल गया। मैं मेरठ से गाजियाबाद अप-डाउन करती थी, मुझे ट्रेन से आने-जाने में रोजाना तीन घंटे लगते थे। जबकि मेरे साथ की बाकी लड़कियां हॉस्टल में रहती थीं।’
कॉलेज के फाइनल ईयर में वर्मीकम्पोस्टिंग प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था
जब सना फाइनल ईयर में थीं तो उन्होंने अपने कॉलेज में वर्मीकम्पोस्टिंग के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया, लेकिन यह कैसे किया जाता है, इसके बारे में उन्हें पहले से कोई जानकारी नहीं थी। जैसे-जैसे सना ने इस वर्मीकम्पोस्टिंग से होने वाले फायदे को देखना शुरू किया, उनकी दिलचस्पी इसमें और भी बढ़ने लगी। सना कहती हैं, ‘मुझे समझ में आया कि किसान इसका उपयोग बहुत ही सीमित स्तर पर करते हैं। ऐसे में मैंने इस प्रोजेक्ट को बड़े स्तर पर लागू करने का फैसला लिया। बाद में मैंने वर्मीकम्पोस्टिंग को बिजनेस का जरिया बना लिया।’
वर्मीकम्पोस्टिंग के बारे में सना बताती हैं, ‘ये केंचुओं के उपयोग से जैविक खाद तैयार करने की एक प्रक्रिया है। बायोमास केंचुओं का भोजन हैं और इनके द्वारा निकाली गई मिट्टी को ‘वॉर्म कास्ट’ कहते हैं जो कि सभी पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यही वजह से है कि इसे ‘ब्लैक गोल्ड’ भी कहा जाता है।
चूंकि केंचुए तीन साल तक जिंदा रहते हैं और तेजी से प्रजनन करते हैं। ऐसे में यह प्रक्रिया बिजनेस के लिहाज से टिकाऊ और सस्ती बन जाती है।’
2014 में भाई के साथ मिलकर शुरू किया बिजनेस
साल 2014 में सना ने अपने भाई जुनैद की मदद से ‘एसजे ऑर्गेनिक्स’ कंपनी की शुरुआत की। बिजनेस की शुरुआत में प्रशासन के सहयोग से उन्हें मेरठ के ही गवर्नमेंट इंटर कॉलेज की खाली पड़ी जगह मिल गई थी, जहां वो वर्मीकम्पोस्टिंग साइट चलाती हैं। इसके बाद सना ने कुछ ठेकेदारों को चुना, जो मेरठ की डेयरी से गोबर और बायोडिग्रेडेबल वेस्ट को उनकी साइट तक पहुंचाने का काम करने लगे। इसके बाद इस साइट पर गोबर और कचरे को केंचुओं को खिलाया जाता है। इस गोबर और जैविक पदार्थों को वर्मीकम्पोस्ट में बदलने में करीब डेढ़ महीने का वक्त लगता है। इसके बाद इस कम्पोस्ट को छानकर उसमें गोमूत्र मिलाया जाता है, जो प्राकृतिक कीटनाशक और उर्वरक का काम करता है।
वहीं तय मानकों को पूरा करने के लिए, वर्मीकम्पोस्ट के हर बैच का लैब टेस्ट कराया जाता है और रिपोर्ट आने पर उन्हें पैक करके मार्केट में भेज दिया जाता है। खुदरा दुकान और नर्सरी से किसान यह वर्मीकम्पोस्ट खरीदते हैं। सना बताती हैं कि साल भर बाद से इस बिजनेस में मुनाफा होने लगा तो वो बड़े स्तर पर काम करने लगीं। आज सना हर महीने करीब 150 टन वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन करती हैं। प्रोडक्शन का पूरा काम खुद सना ही देखती हैं, जबकि उनके भाई जुनैद और पति सैयद अकरम रजा बिजनेस और मार्केटिंग का काम देखते हैं।
‘गांव की साइट पर जाती थी तो लोग मुझे पागल कहते थे’
शुरुआती चुनौतियों के बारे में बात करते हुए सना बताती हैं, ‘मेरा शहर का बैकग्राउंड था और मुझे अपनी साइट के लिए 14 किमी दूर गांव में जाना होता था। उस वक्त मेरे पास स्कूटी नहीं हुआ करती थी तो मैं पैदल ही जाती थी। मुझे देखकर गांव के लोग कहते थे, ‘आ गई पागल लड़की, लोग शहर में जाते हैं और ये गांव में आकर गोबर से पता नहीं क्या-क्या करती रहती है।’ इसके अलावा जब हमने प्रोडक्ट बेचना शुरू किया और किसानों को इसके फायदे बताए तो वो कहते थे, ‘ये तो अपना प्रोडक्ट बेचने के चोचले हैं, हमें गोबर बेच रही है, हम क्यों खरीदें।’ इसके बाद हमने ब्रांडिंग शुरू की और एक-एक किलो के पैकेट बनाकर मार्केट में बेचने शुरू किए। इससे हमें अच्छा रिस्पांस मिलने लगा तो हमने पैकेजिंग पर ही फोकस किया। फिर ये हुआ कि जो किसान हमसे खाद नहीं ले रहा था वो रिटेल बीज भंडार और नर्सरी से हमारी ही खाद 650 रुपए में 40 किलो की बोरी खरीदने लगा।’
अपने काम की वजह से 2017 में स्वच्छ भारत मिशन की यंगेस्ट ब्रांड एम्बेसडर भी बनीं
सना आगे बताती हैं, ‘साल 2017 में अपने काम को गांव से निकालकर अर्बन एनवायरनमेंट में लेकर आई। इसकी वजह से मुझे काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ा, क्योंकि लोगों को लगता था कम्पोस्टिंग में बदबू होती है लेकिन मेरे काम में बदबू नहीं होती थी। मेरी साइट के आसपास के लोगों ने मुझे करीब महीने भर तक काफी परेशान किया। वो कहते थे कि इसे देखने से बदबू आती है। इस बीच लोगों ने नगर निगम में मेरी शिकायत भी कर दी। तो मेरठ के तत्कालीन नगर निगम कमिश्नर मनोज कुमार चौहान मेरी साइट पर पहुंचे। उन्हें मेरा काम बहुत पसंद आया, उन्होंने कहा कि तुम तो लो कॉस्ट इंफ्रा पर काम रही हो। इसके बाद उन्होंने मुझे मेरठ की स्वच्छ भारत मिशन की यंगेस्ट ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया।
बाद में मेरे काम का जिक्र पीएमओ तक हुआ और साल 2018 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की मदद के लिए पहल करने वाली एक वुमन एंटरप्रेन्योर के तौर पर मेरे काम का जिक्र ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 41वें एपिसोड में किया। इससे मुझे और मेरे बिजनेस को बूस्ट अप मिला और किसान व बाकी लोग भी मुझे गंभीरता से लेने लगे और मुझसे जुड़ने लगे। इसके बाद मैं ट्रेनिंग प्रोग्राम, एंटरप्रेन्योर डेवलपमेंट प्रोग्राम भी करने लगी। जो लोग हमसे जुड़े हैं वो अपनी-अपनी साइट पर वर्मीकम्पोस्टिंग करते हैं और पूरा माल निर्धारित कीमत पर हमें बेच देते हैं। हम उन्हें ट्रेनिंग से लेकर कंसल्टेंसी तक सब कुछ नि:शुल्क सिखाते हैं।
सना ने मेरठ के 104 स्कूलों में भी वर्मीकम्पोस्टिंग साइट्स तैयार की हैं। इसके अलावा हाल ही में उन्होंने मेरठ के थोड़ी दूरी पर स्थित अब्दुल्लापुर गांव में एक एकड़ जमीन खरीदी है, जहां प्रोडक्शन को 150 टन से बढ़ाकर 300 टन तक करने की तैयारी है। इसके अलावा वे यहां वर्मी वॉश जैसे नए प्रोडक्ट का उत्पादन करने की प्लानिंग में हैं।साभार-दैनिक भास्कर
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