राजस्थान के जयपुर् के रहने वाले कैलाश चौधरी आंवले की खेती और प्रोसेसिंग करके अच्छी कमाई कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। पिता जी किसान थे, गांव में माहौल भी खेती का ही था इसलिए 10वीं के बाद मैं भी खेती करने लगा। तब गेहूं, बाजरा जैसे फसलों की खेती होती थी। हम जयपुर मंड़ी में अपना गेहूं ले जाकर बेचते थे। आमदनी बहुत तो नहीं होती थी, लेकिन घर का खर्च निकल जाता था। बाद में हमने अपनी खेती में कई इनोवेशन किए, पारंपरिक खेती को कमर्शियल फार्मिंग के रूप में तब्दील किया। आज सालाना एक करोड़ रुपए हमारा टर्नओवर है। ये कहना है राजस्थान के जयपुर जिले के रहने वाले 70 साल के कैलाश चौधरी का। कैलाश पिछले दो दशकों से आर्गेनिक फार्मिंग, बागवानी, वैल्यू एडिशन और पशुपालन पर काम कर रहे हैं।
अखबार में विज्ञापन देखा तो आया आइडिया
कैलाश बताते हैं कि एक दिन अखबार में मैंने एक विज्ञापन देखा, जिसमें एक कंपनी वाले गेहूं की कीमत 6 रुपए प्रति किलो थी। जबकि, उसी गेहूं को हम महज दो रुपए प्रति किलो की दर से बेचते थे। तब मेरे दिमाग में ये बात आई कि आखिर इस गेहूं में ऐसा क्या है जो इसका दाम ज्यादा है। उस विज्ञापन पर कंपनी का पता भी दर्ज था। अगले दिन उस बिजनेसमैन के पास चला गया। और पूरे प्रोसेस को समझने के लिए एक हफ्ते तक वहां पल्लेदारी का काम भी किया। इस दौरान मुझे पता चला कि नॉर्मल गेहूं को ही ये लोग क्लीनिंग और ग्रेडिंग के बाद पैक करते हैं और मार्केट में अधिक दाम पर बेचते हैं।
कैलाश चौधरी कहते हैं कि कंपनी वाले को तो किसानों से गेहूं खरीदना होता है। हमें तो किसी से खरीदना भी नहीं पड़ेगा। हम तो खुद ही गेहूं उपजाते हैं तो हम क्यों न इसके वैल्यू एडिशन पर काम करें। इसके बाद मैंने कुछ पैसों की व्यवस्था की। एक ग्रेडिंग मशीन लगाई और अगले सीजन से हम भी जूट की बोरी में गेहूं पैक कर बेचने लगे। इससे हमें अच्छा मुनाफा होने लगा। इसी तरह मैं दूसरे फसलों के लिए भी वैल्यू एडिशन पर काम करने लगा।
वैज्ञानिकों की सलाह पर बागवानी शुरू की
चौधरी ने बताया, ‘साल 2003 के करीब मुझे एक मित्र ने बताया कि केमिकल फार्मिंग की जगह ऑर्गेनिक फार्मिंग करने पर जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी और कमाई भी। ऐसा इसलिए, क्योंकि लोग अब ऑर्गेनिक फूड और सब्जियां ज्यादा पसंद कर रहे हैं। इसके बाद मैंने भी ऑर्गेनिक फार्मिंग करना शुरू कर दिया। पास के कृषि विज्ञान केंद्र में मेरा जाना होता था। उस वक्त एक कृषि वैज्ञानिक ने मुझे बताया कि आपको बागवानी पर फोकस करना चाहिए। इस सेक्टर में अच्छी कमाई है।’
वो कहते हैं कि तब कृषि केंद्र की तरफ से आंवले के पौधे दिए जा रहे थे। मैंने भी 80 पौधे ले लिए और अपने खेत में लगा दिए। दो-तीन साल बाद इनसे फल निकलने लगा। कुछ फल तो हमने मार्केट में बेच दिए, लेकिन ज्यादातर फल बिक नहीं पाए। गांव वालों ने भी मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। तकलीफ तो मुझे भी हुई, लेकिन मैं वापस पारंपरिक की तरफ लौटने वाला नहीं था। एक बार फिर से मैं कृषि वैज्ञानिकों से मिला और अपनी परेशानी बताई। उन्होंने मुझे इसकी प्रोसेसिंग के बारे में जानकारी दी।
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जाकर सीखी प्रोसेसिंग की तकनीक
कैलाश बताते हैं, ‘यूपी के प्रतापगढ़ में आंवले की प्रोसेसिंग को लेकर काम हो रहा था। मैं भी काम सीखने के लिए वहां चला गया। वहां मैंने आंवले की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग सीखी। इसके बाद अपने साथ एक आदमी को लेकर भी आया, जो इस काम में पारंगत था। फिर छोटे लेवल पर अपने गांव में ही एक प्रोसेसिंग यूनिट लगाई और प्रोसेसिंग का काम करने लगा। जो आंवले नहीं बिक पाए, उनसे प्रोसेसिंग के बाद मुरब्बा, कैंडी, लड्डू और जूस बनाकर मार्केट में बेचने लगा। जल्द ही मुझे अच्छी कमाई होने लगी।’
भारत के बाहर भी करते हैं प्रोडक्ट की सप्लाई
कैलाश को जब आंवले के बिजनेस में फायदा हुआ तो उन्होंने सहजन, एलोवेरा और बेल की बागवानी और प्रोसेसिंग शुरू कर दी। आज वे 20 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं और इससे 50 से ज्यादा प्रोडक्ट तैयार करके मार्केट में बेचते हैं। अमेजन, फ्लिपकार्ट सहित कई बड़े ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उनके प्रोडक्ट बिकते हैं। कई बड़े शहरों में वे गाड़ी से सामान भेजते हैं। साथ ही भारत के बाहर भी कनाडा, अमेरिका जैसे देशों में वे अपने प्रोडक्ट की सप्लाई कर रहे हैं। उन्हें खेती में नए इनोवेशन के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं।
प्रोडक्शन के साथ ब्रांडिंग और मार्केटिंग भी सीखें तो कमा सकते हैं मुनाफा
कैलाश बताते हैं कि सिर्फ खेती करने और अनाज उगाने भर से किसान अच्छी कमाई नहीं कर सकता है। खेती में बढ़िया मुनाफा तभी कमाया जा सकता है, जब हम अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग और ब्रांडिंग खुद करेंगे। इसके लिए हम प्रोग्रेसिव किसानों से सलाह ले सकते हैं या फिर पास के कृषि विज्ञान केंद्र से जानकारी ली जा सकती है। आजकल तो सरकार भी नई तकनीक आधारित खेती को बढ़ावा दे रही है और मशीनों की खरीदारी के लिए सब्सिडी भी दे रही है। किसान चाहें तो सब्सिडी पर या फिर लोन लेकर भी प्रोसेसिंग यूनिट लगा सकते हैं।
वे बताते हैं कि अगर कोई एक एकड़ जमीन पर आंवले की बागवानी करे तो सालाना तीन से चार लाख रुपए आसानी से कमा सकता है। साथ ही अगर आंवले के साथ-साथ मेडिसिनल प्लांट की भी खेती करे और अधिक कमाई हो सकती है।साभार-दैनिक भास्कर
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