हाथरस। नौजरपुर गांव की तरफ मुड़ने वाली पतली सड़क के इर्द-गिर्द खेतों में मजदूर आलू इकट्ठा कर रहे हैं। दूर-दूर तक फैले खेतों में जगह-जगह आलू की बोरियां भरी नजर आती हैं। आसपास आलू लदे ट्रैक्टर धड़-धड़ करते गुजर रहे हैं। छेड़छाड़ के झगड़े में हत्या कहां हुई थी? दबी जुबान से यह पूछने पर कुछ लोग एक खेत की तरफ इशारा कर देते हैं।
नौजरपुर गांव के इसी खेत पर बीते सोमवार यानी 1 मार्च को अमरीश शर्मा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हत्या की वजह छेड़खानी से जुड़ा विवाद है। परिवार और गांव के लोग बताते हैं कि तीन साल पहले अमरीश शर्मा ने बेटी से छेड़छाड़ करने पर गौरव शर्मा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था, जिसमें उसे जेल भी जाना पड़ा था। गौरव शर्मा अमरीश पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रहा था। अमरीश के न मानने पर गौरव ने उनकी हत्या कर दी।
हम घटनास्थल वाले खेत पर पहुंचे हैं। खेत के किनारे एक शख्स दोनों हाथों से सर पकड़कर बैठा है। बात करने पर पता चलता है कि उनका नाम जगदीश है और वे पिछले 20 सालों से अमरीश के यहां काम कर रहे हैं। अमरीश बड़े काश्तकार थे। इस बार भी उन्होंने करीब 100 बीघे जमीन में आलू की फसल लगा रखी थी। वारदात वाले दिन के बारे में पूछने पर जगदीश फफक पड़ते हैं। वे भर्राए गले से कहते हैं, ‘वो हमारे सामने भाई साहब को गोली मारकर निकल गए और हम कुछ नहीं कर सके। बंदूकों के सामने फावड़े और डंडे क्या काम करते? वो अंधाधुंध गोलियां चला रहे थे।’
जगदीश आंसू पोंछ फिर बोल पड़ते हैं, ‘मजदूरों की तरफ फायर करते हुए उन्होंने कहा था कि यदि किसी ने गवाही दी तो उसे भी मार दिया जाएगा। उस समय यहां 70 मजदूर काम कर रहे थे। लेकिन, सब गिरते-पड़ते भाग गए।’ खेतों में काम कर रहे बाकी मजूदर घटना के बारे में बताने से हिचकते हैं। एकाध बस इतना कहते हैं कि नौजरपुर में पहले कभी इस तरह की घटना नहीं हुई थी।
अमरीश के खेतों पर पिछले 12 साल से काम करने वाले एक शख्स अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहते हैं, ‘मारने वालों को किसी का डर नहीं था। वो लोग जान लेने के इरादे से ही आए थे। कह रहे थे केस वापस नहीं लिया, ले अब मर। भागते हुए भी उन्होंने कई गोलियां चलाईं।’
खेत में जिस जगह पर अमरीश को गोली मारी गई, वहां घटना के तीसरे दिन भी सूखे खून के धब्बे नजर आते हैं। पुलिस के लिए अब यह घटनास्थल है और कुछ पुलिसवाले उसकी रखवाली में लगे हैं। खेत के कोने से लगे कुएं के पास बनी कोठरी में वो टिफिन अब भी रखा है, जिसमें अमरीश की पत्नी-बेटी उनके लिए खाना लेकर आईं थीं। कुछ लोग बताते हैं कि अमरीश की पत्नी को निशाना बनाकर भी गोलियां चलाईं गईं थीं, लेकिन भगदड़ में वे जमीन पर गिर गई और गोली उनके पास से गुजर गई।
मृतक अमरीश शर्मा के एक रिश्तेदार ने बताया, ‘पुलिस आई है तो मजदूर काम पर लौटे हैं। अमरीश शर्मा अकेले सभी भाइयों के हिस्से का खेत संभालते थे। पता नहीं आगे खेतों पर काम कैसे होगा। अमरीश के दोनों बड़े भाई बाहर नौकरी में हैं। खेती देखने वाला कोई नहीं है।’
दो बेटियों के पिता अमरीश शर्मा की वहां मौजूद सभी लोग तारीफ करते हैं और उन्हें बेहद मददगार स्वभाव वाला आदमी बताते हैं। जगदीश कहते हैं, ‘मेरी बेटी की शादी थी। मुझे किसी से अपने पैसे लेने थे। लेकिन, वहां पैसे नहीं मिले। भाई साहब के यहां काम पर गया तो वो चेहरा देखकर ही पहचान गए कि मैं परेशान हूं। मैंने कहा 25 हजार कम पड़ रहे हैं। उन्होंने तुरंत अपनी पत्नी से कहा इसे 50 हजार दे दो।’
अमरीश का घर उनके खेत से करीब 300 से 400 मीटर दूर है। गांव की गलियों की खामोशी गाड़ियों के हॉर्न से टूटती है। सभी पार्टियों के नेता पीड़ित परिवार से मिलने पहुंच रहे हैं। आंगन में बैठे अमरीश के रिश्तेदारों को सांत्वना दे रहे नेताओं को देख कमरे में बैठी परिवार की महिलाएं मुंह बनाते हुए कहती हैं, ‘जितने ये सफेद कपड़े में आवत हैं, इतने ही इनके दिल काले होवत हैं।’
एक लड़की अपने मोबाइल पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का ट्विटर हैंडल दिखाते हुए कहती है, ‘ये सिर्फ अपनी राजनीति चमका रहे हैं। अगर इनमें हमारे परिवार के प्रति संवेदना होती तो वो हमारी बहन का चेहरा बिना ब्लर करे वीडियो अपने ट्विटर पर ना डालते। उसने अपने पिता को खोया है। उसकी पूरी जिंदगी आगे पड़ी है।’
एक कमरे में अमरीश की पत्नी बेहोश पड़ी हैं। उनकी हालात ठीक नहीं है। बेटी पारुल उन्हें संभालने की कोशिश करते हुए खुद बदहवास सी हो जाती है। इसी बीच अमरीश के फोन की रिंगटोन बजती है। उनकी बदहवास पत्नी आंखें खोलते हुए कहती हैं, ‘पारुल देख तेरे पापा का फोन बज रहा है, उन्हें दे आ।’ यही बुदबुदाते हुए वो फिर बेहोश हो जाती हैं। आसपास खड़ी महिलाओं की आंखें नम हो जाती हैं। वे कहती हैं, ‘उस दिन के बाद से इनका हाल ऐसे ही है, बार-बार पारुल के पापा (अमरीश शर्मा) को बुलाती हैं।’
अमरीश की बेटी पारुल बड़ी मुश्किल से खुद को संभालती हैं। कहती हैं, ‘गौरव मेरे पीछे पड़ा था, मुझसे जबरदस्ती शादी करना चाहता था। उसकी छेड़छाड़ से आजिज आकर हमने मुकदमा भी दर्ज करवाया था। अब वह यही मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रहा था, क्योंकि वो आगे राजनीति में जाना चाहता था।’
पारुल कहती हैं, ‘फरवरी 2019 में भी उसने पापा को खेत पर धमकाया था और हमला करने की कोशिश की थी। वो बार-बार धमकाता था। वो जब भी अपनी मौसी के घर गांव में आता था, हमें धमकाता था, कई बार हमें पुलिस को भी बुलाना पड़ा था।’
अमरीश शर्मा की हत्या का आरोपी गौरव शर्मा नौजरपुर गांव का निवासी नहीं है। वह बहराइच का रहने वाला है, लेकिन हाथरस के नौजरपुर गांव में अपनी मौसी के यहां उसका आना-जाना लगा रहता है और वह यहां महीनों रहा करता है। अमरीश के कत्ल के आरोपी गौरव की मौसी का घर गांव की शुरुआत में ही है। गौरव और उसके साथियों के अलावा इस परिवार के भी कुछ लोग अमरीश के कत्ल के मामले में आरोपी हैं। इन अभियुक्तों के घर में फिलहाल ताला लटका हुआ है।
गौरव और अमरीश के परिवार में अक्सर कहासुनी होती रहती थी। इसकी जड़ में छेड़छाड़ का विवाद भी है। इसको इससे समझा जा सकता है कि अमरीश शर्मा की बेटी पारुल ने एक स्थानीय पुलिस अधिकारी का नंबर अपने मोबाइल में पुलिस अंकल नाम से सेव कर रखा था। पारुल कहती हैं, ‘सुबह कुछ कहासुनी होने पर गौरव के परिवार की महिलाओं ने कहा था कि आज तेरे बाप की लाश उठेगी। हमने पुलिस अंकल को फोन भी किया था, लेकिन उन्होंने कहा था आज हमें पहुंचने में देर हो सकती है। आप 112 पर फोन कर लो वो पांच मिनट में पहुंच जाएंगे। लेकिन, पुलिस समय से नहीं पहुंची।
पारुल के अलावा अमरीश शर्मा की एक और बेटी है। उनकी शादी हो गई है और इस समय वे गर्भवती हैं। वे परिवार के साथ वक्त बिताने के लिए मायके आई हुईं थीं, तभी उनके पिता की हत्या हो गई। शाम को ढलते सूरज की रोशनी में वे बार-बार खेत में उस जगह पर जाती हैं, जहां उनके पिता की हत्या की गई थी। आंखों से टप-टप गिरते आंसू उसी मिट्टी में मिल रहें हैं, जिसमें उनके पिता का खून मिला है।साभार-दैनिक भास्कर
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