क्या कांग्रेस पार्टी और उसके अंदर के विक्षुब्ध वरिष्ठ नेताओं का संमूह यानी ‘जी 23’ टकराव की तरफ़ तेज़ी से बढ़ रहा है? दोनों तरफ़ से हो रही बयानबाज़ी को देखते हुए, राजनीतिक हलकों में ऐसे ही क़यास लगाए जा रहे हैं.
कांग्रेस हाई कमान की तरफ़ इसको लेकर कोई प्रतिक्रया नहीं दी गई है. चाहे सोनिया गाँधी हों या पार्टी में गाँधी परिवार के वफ़ादार माने जाने वाले नेता हों – किसी ने भी न तो जी-23 के नेताओं की पिछले साल लिखी गई चिठ्ठी को लेकर कोई प्रतिक्रिया दी है और न ही जम्मू में इन जी-23 के नेताओं के कार्यक्रम को लेकर ही कुछ कहा है.
लेकिन, विश्लेषकों को लगता है कि जम्मू में आयोजित कार्यक्रम के दौरान जी-23 के नेताओं द्वारा प्रकट किए गए विचार और ट्विटर पर लोक सभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी और आनंद शर्मा के बीच छिड़े वाक् युद्ध से तो टकराव के संकेत अब स्पष्ट होकर सामने आने लगे हैं.
जम्मू में जी-23 के नेता जम्मू में राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद के रिटायर होने के मौके पर जमा हुए थे और उन्होंने इस दौरान कहा कि कांग्रेस का संगठन बहुत कमज़ोर होता चला जा रहा है.
वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा था कि, “हम यहाँ क्यूँ जमा हुए हैं ? सच ये है कि हम कांग्रेस को कमज़ोर होता हुआ देख रहे हैं. हम पहले भी जमा हुए हैं. हमें कांग्रेस को मज़बूत करना होगा.”
जी-23 गुट के नेता
अगले दिन एक अन्य कार्यक्रम में बोलते हुए आज़ाद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ करते हुए कहा कि “एक समय में मोदी ने चाय बेच कर गुज़ारा किया है. मगर वो अपने अतीत को छुपाते नहीं हैं.”
कांग्रेस के खेमे में जी-23 गुट के नेताओं के जमा होने पर नाराज़गी दिख तो रही है, मगर कोई इन नेताओं के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोल रहा है.
अलबत्ता पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर अभिषेक मनु सिंघवी ने सिर्फ़ इतना कहा कि जी 23 के सभी नेता कांग्रेस के संगठन का अभिन्न अंग हैं.
अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने सिर्फ इतना कहा, “हम उन सब की बहुत इज्ज़त करते हैं. लेकिन ये और भी ज़्यादा अच्छा होता अगर ये सब पांच राज्यों में हो रहे चुनावों में पार्टी की मदद कर रहे होते.”
जी-23 में वैसे तो कांग्रेस पार्टी के वो 23 वरिष्ठ नेता शामिल हैं जिन्होंने पिछले साल पार्टी आलाकमान को नेतृत्व के सवाल पर चिठ्ठी लिखी थी. इन नेताओं में केरल से कांग्रेस सांसद शशि थरूर के अलावा कांग्रेस पार्टी के कई बड़े नाम भी शामिल थे जैसे जितिन प्रसाद, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान, गुलाम नबी आज़ाद, कपिल सिब्बल, राज बब्बर, मनीष तिवारी, भूपिंदर सिंह हुड्डा और विवेक तनखा शामिल थे.
आनंद शर्मा का बयान
लेकिन इनमें से जितिन प्रसाद को पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनावों के लिए पार्टी की ‘स्क्रीनिंग कमिटी’ में शामिल किया गया जबकि पृथ्वीराज चौहान को असम चुनावों के लिए बनाई गयी पार्टी की ‘स्क्रीनिंग कमिटी’ का अध्यक्ष बनाया गया है.
नई ज़िम्मेदारी मिलते ही नेताओं के रुख में बदलाव देखने को भी मिल रहा है. जम्मू में हुए जी-23 के कार्यक्रम में कई बड़े नता थे जो शामिल नहीं हुए.
जी-23 के प्रमुख नेता आनंद शर्मा न सोमवार को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में हुई कांग्रेस, वाम दलों और इंडियन सेकुलर फ्रंट की रैली की आलोचना करते हुए ट्वीट किया और कहा कि इंडियन सेकुलर फ्रंट जैसे संगठनों से कांग्रेस को दूर रहना चाहिए.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस का चरित्र हमेशा से ही धर्म निरपेक्षता का रहा है इस लिए उसे हर तरह की साम्प्रदायिक शक्ति से खुद को दूर रखना चाहिए.
शर्मा ने अपने ट्वीट में कहा, “आईएसएफ और ऐसे अन्य दलों से साथ कांग्रेस का गठबंधन पार्टी की मूल विचारधारा, गांधीवाद और नेहरूवादी धर्म निरपेक्षता के खिलाफ है, जो कांग्रेस पार्टी की आत्मा है. इन मुद्दों को लेकर कांग्रेस कार्य समिति में चर्चा होनी चाहिए थी.
अधीर रंजन चौधरी बनाम आनंद शर्मा
शर्मा का ये भी कहना था कि सांप्रदायिकता के खिलाफ़ लड़ाई में ‘कांग्रेस दोहरा मापदंड नहीं अपना सकती है.’
उनका कहना था कि फुरफुरा शरीफ़ के धर्म गुरु के नेतृत्व वाला संगठन – ‘इंडियन सेकुलर फ्रंट’ – जिस कार्यक्रम में शामिल था उसमे पश्चिम बंगाल के “प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की उपस्थिति और समर्थन शर्मनाक” है.
हालांकि शर्मा के ट्वीट के बाद अधीर रंजन चौधरी ने भी ट्विट्टर के ज़रिये ही जवाब दिया. उन्होंने शर्मा को संबोधित करते हुए कहा कि जो गठबंधन पश्चिम बंगाल में बना है उसका नेतृत्व वाम मोर्चे के पास है जिसका कांग्रेस भी एक हिस्सा है.
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, “मैं इन चुनिन्दा कांग्रेस नेताओं से आग्रह करूंगा कि वो निजी फायदे से ऊपर उठें और प्रधानमंत्री की तारीफ़ करने में अपना समय ना बर्बाद करें. पार्टी को मज़बूत करना उनका कर्तव्य है न की उस पेड़ को काटना जिसने उन्हें इतने सालों तक फल और छाया दी है.”
जी-23 के लिए बड़ा झटका
कुछ दिनों पहले तक जी-23 में शामिल जितिन प्रसाद ने भी शर्मा को जवाब देते हुए कहा कि गठबंधन के फैसले संगठन और कार्यकर्ताओं के हित को देखते हुए ही लिए जाते हैं. उनका कहना था कि इस समय सबको एक साथ आकर कांग्रेस को चुनावी राज्यों मज़बूत करने का काम करना चाहिए.
ये जी-23 के लिए बड़ा झटका था और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने बीबीसी से बात कर्ट हुए कहा कि उन्हें लगता है कि कांग्रेस का हाई कमान इन नेताओं को लेकर कोई प्रतिक्रया सिर्फ चुनावों को देखते हुए नहीं दे रहा है.
उनका कहना था कि सिर्फ एक केरल को छोड़ कर बाक़ी जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां कांग्रस की स्थिति कमज़ोर हुई है. ऐसे में असम और केरल में कांग्रेस चाहे तो बेहतर प्रदर्शन के लिए ज़ोर लगा सकती है.
वो कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस हाई कमान, जी-23 के नेताओं के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही कर उन्हें मजबूती प्रदान करेगा. इसी लिए पार्टी की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रया नहीं दी जा रही है. पिछले साल जी-23 के नेताओं द्वारा लिखी गई चिठ्ठी पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.”
प्रदेश इकाई का फ़ैसला
किदवई का कहना है कि अलबत्ता कांग्रेस हाई कमान ने ही जी-23 के नेताओं क बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश की जब जितिन प्रसाद और पृथ्वीराज चौहान को चुनाव की कमिटियों का प्रभारी बना दिया गया. वो कहते हैं कि जम्मू की बैठक में भी जी-23 के सभी नेता शामिल नहीं हुए थे.
लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बीके हरी प्रसाद ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि राज्यों में विधानसभा के चुनावों के लिए किये जाने वाले गठबंधन के लिए प्रदेश की कांग्रेस इकाई को ही अधिकृत किया जाता है.
प्रसाद कहते हैं, “ये फैसले प्रदेश स्तर पर ही होते हैं जिसका आला कमान से कोई लेना देना नहीं है. प्रदेश इकाई को ही बेहतर पता रहता है कि क्षेत्रीय स्तर पर किसके साथ गठबंधन करना पार्टी के लिए सबसे अच्छा विकल्प साबित हो सकता है.”
वैसे जी-23 के नेताओं के बयानों का ज़िक्र करते हुए वो कहते हैं कि राजनीतिक दलों में ऐसा चलता रहता है और नेता अपनी बात रखने के लिए स्वतंत्र होते हैं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से जो कुछ हो रहा है उसपर उन्होंने कहा, “ये सबकुछ अच्छे टेस्ट में नहीं हो रहा है.”साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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