उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में रहने वाले विनोद का लंबा-चौड़ा आम का बग़ीचा है. आम का सीज़न शुरू होने को है लेकिन उनकी चिंता है कि इस साल जिस तरह से फरवरी में मौसम बदल रहा है, आगे कैसा रहेगा इसका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है.
उनके आम के पेड़ों में बौर आ गए हैं लेकिन इनमें से कितने टिकोरे बनेंगे और कितने टिकोरे फल बनकर पकेंगे, उसे लेकर वो संशय में हैं.
दिल्ली में रहने वाली गरिमा की बेटी नौंवी में है. बीता एक साल घर पर ही रह कर क्लास लेने के बाद वो अब स्कूल जाने लगी है. लेकिन गरिमा की चिंता यह है कि जब फ़रवरी में उनकी बेटी स्कूल से पसीने में तर होकर लौट रही है तो मई में क्या हाल होगा.
लेकिन यह चिंता सिर्फ़ विनोद या गरिमा तक सीमित नहीं है. तापमान में हो रहे बदलाव के परिणाम अब दिखने भी लगे हैं-
- साल 2020 भारतीय इतिहास में आठवां सबसे गर्म साल था. इस साल तापमान सामान्य से 0.29 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया.
- एनओएए के नेशनल सेंटर्स फ़ॉर इनवायरमेंटल इनफ़ॉर्मेशन की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2021 इतिहास का सबसे गर्म जनवरी का महीना था.
- साल 1990 में ग्लेशियर के पिघलने की दर 80,000 करोड़ टन प्रति वर्ष थी, साल 2017 में बढ़कर 130,000 करोड़ टन प्रति वर्ष हो गई है.
- इस साल फरवरी महीने में पूर्वी ओडिशा का औसतन तापमान 3-4 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया, इसलिए प्रवासी पक्षी कुछ सप्ताह पहले ही वापस हो गए.
बीते एक सप्ताह से बढ़े हुए तापमान का कुछ असर तो आप भी महसूस कर रहे होंगे. एक सप्ताह पहले तक गर्म पानी से नहाने वाले अब ठंडे पानी से नहा रहे हैं, पंखा भी अब काम पर लौट आया है.
आमतौर पर फ़रवरी का महीना हल्की ठंड का होता है लेकिन साल 2021 की फ़रवरी कुछ अलग है. फ़रवरी महीने का औसत तापमान क़रीब 28 डिग्री सेल्सियस रहा लेकिन कुछ दिन ऐसे भी रहे जब दिल्ली समेत कुछ राज्यों में तापमान 30-31 डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच गया.
लेकिन भारत में फ़रवरी के महीने में बढ़ती गर्मी की वजह क्या है?
मौसम पूर्वानुमान केंद्र, नई दिल्ली के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव कहते हैं “आमतौर पर उत्तरी भारत में जो मौसम होता है उस पर वेस्टर्न डिस्टरबेंस का काफी प्रभाव होता है. जितनी वेस्टर्न डिस्टरबेंस आएगी, मौसम उसी के अनुसार होगा. आमतौर पर फ़रवरी के महीने में छह वेस्टर्न डिस्टरबेंस आती हैं लेकिन इस बार एक ही वेस्टर्न डिस्टरबेंस है.”
कुलदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि यह वेस्टर्न डिस्टरबेंस भी चार फ़रवरी को आया था. वो कहते हैं, “वेस्टर्न डिस्टरबेंस अपने साथ बारिश लेकर आती है और उसके साथ ही बादल भी बनते हैं. चूंकि वेस्टर्न डिस्टरबेंस नहीं है, तो बादल भी नहीं हैं और इस वजह से सूरज की रोशनी पूरी-पूरी आ रही है. और जब सूरज की रोशनी पूरी मिलेगी तो तापमान तो बढ़ेगा ही.”
वो कहते हैं, “चूंकि एक ही वेस्टर्न डिस्टरबेंस है, इसके चलते सूरज की रोशनी से तापमान बढ़ा है. इसके अलावा हवा की धीमी गति भी एक प्रभावी कारण है.”
तापमान बढ़ना सामान्य होता जा रहा है
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी के क्लाइमेट साइंटिस्ट डॉ. रॉक्सी मैथ्यू के मुताबिक़, “जिस समय में हम जी रहे हैं वहां तापमान का बढ़ना सामान्य है. लगभग हर साल और हर महीना पहले वाले साल और महीने की तुलना में कुछ अधिक गर्म होता है.”
“पूर्वी प्रशांत महासागर में ला नीना के होने के बावजूद साल 2020 सबसे गर्म सालों में से एक था. आमतौर पर ला नीना के कारण तापमान में कमी आती है लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते प्रभाव के कारण ये भी बेअसर रही. यही कारण है कि अब ला नीना वाले साल, पहले के एल नीनो वाले सालों की तुलना में अधिक गर्म हैं.
ला नीना और एल नीनो प्रशांत महासागर से जुड़ी प्रक्रियाएं हैं. यह मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में होने वाली घटनाएं है जो बड़े पैमाने पर वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती हैं. एल नीनो के कारण जहां गर्म हवाएं चलती हैं और तापमान दो-चार डिग्री बढ़ जाता है, वहीं ला नीना के कारण पूर्वी प्रशांत महासागर में सर्द हवाएं चलती हैं, यहां तापमान सामान्य से तीन से पांच डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है और इससे वैश्विक तापमान में कमी आती है.
वैश्विक तापमान की बात करें तो क्लाइमेट साइंटिस्ट डॉ. रॉक्सी मैथ्यू भी मानते हैं कि प्रशांत महासागर में ला नीना की स्थिति धीरे-धीरे मंद पड़ रही है और वैश्विक एजेंसियों का अनुमान है कि तापमान पहले न्यूट्रल होगा और उसके बाद आने वाले महीनों में गर्म हो जाएगा. इसलिए आने वाले महीनों में वैश्विक तापमान भी बढ़ सकता है.
तो क्या आने वाले महीनों में भी तापमान तुलनात्मक रूप से बढ़ा रहेगा?
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ़ अर्थ साइंसेस) के भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, आगामी गर्मियों में उत्तर, उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व भारत के अधिकांश इलाक़ों और मध्य भारत के पूर्व और पश्चिमी भाग के कुछ हिस्सों और उत्तर प्रायद्वीप के कुछ तटीय इलाक़ों में सामान्य से अधिक अधिकतम तापमान रहने की संभावना है.
इसके अलावा हिमालय की तलहटी के साथ-साथ उत्तर भारत, उत्तर-पूर्व बारत, मध्य भारत के पश्चिमी भाग और प्रायद्वीप भारत के दक्षिणी भाग के अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य से अधिक न्यूनतम तापमान की संभावना है.
मौजूदा समय में भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में मध्यम ला नीना की स्थिति बनी हुई है. मॉनसून मिशन कपल्ड फ़ेरकास्टिंग सिस्टम के अनुमान के अनुसार, आगे भी ला नीना की यही स्थिति बने रहने की संभावना है.
कुलदीप श्रीवास्तव भी मानते हैं कि “आने वाले महीनों में तापमान तो बढ़ेगा ही और हीट-वेव (गर्म हवाएं) आएंगी ही. ऐसे में तापमान तो बढ़ना ही है.”
धरती के तापमान का लगातार बढ़ना कितनी गंभीर समस्या
वैज्ञानिक डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कहते हैं कि “धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है. तापमान में मामूली बढ़ोत्तरी के भी गंभीर परिणाम हो सकते हैं.”
वो उदाहरण देते हुए समझाते, “भारत के हालिया जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत के औसत तापमान में 0.7 डिग्री से. का परिवर्तन देखा गया है. स्थानीय और वैश्विक तापमान में हुई इस वृद्धि का सीधा असर हमें विभिन्न मौसमी घटनाओं में आए तीव्र बदलाव तौर पर देखने को मिल रहा है. बारिश का पैटर्न बदल गया है. अरब सागर में तेज़ चक्रवातों की आवृत्ति बढ़ गई है. हिमालय के ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं और महासागर गर्म हो रहे हैं. हिंद महासागर का जल-स्तर बढ़ रहा है. “
डॉ. रॉक्सी मैथ्यू के अनुसार हमें आने वाले समय में इन चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा.
पर्यावरण के मुद्दे पर काम करने वले संगठन आईफ़ॉरेस्ट सीईओ चंद्र भूषण मानते हैं कि सबसे पहले तो ये समझना ज़रूरी है कि जो मौसम में बदलाव हो रहा है वो कुछ दशकों से हो रहा है. ऐसा नहीं है कि ये बदलाव एकाएक होने लगे. या उनका असर एकाएक देखने को मिल रहा है.
वो कहते हैं, “पिछले 20-25 सालों से बारतीय महाद्वीप में हम ये सीज़नल चेंज देख रहे हैं. जिसमें स्प्रिंग सीज़न (बसंत ऋतु) छोटा होता जा रहा है. और हम सर्दियों से सीधे गर्मियों में चले जा रहे हैं. इसका मतलब ये है कि तापमान बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है.”
“तापमान तेज़ी से बढ़ता है तो बहुत सी चीज़ों पर असर पड़ता है. क्योंकि जो नेचर का जो रिदम है वो बिगड़ता है. इसमें बदलाव आया तो जीव-जन्तु पर असर पड़ता है. चाहे वो ब्रीडिंग सीज़न हुआ या फिर माइग्रेशन सीज़न हुआ या फिर पेड़-पौधों पर फल-फूल लगना हो. सब कुछ बदल जाता है.”
वो कहते हैं, “चूंकि ये सीज़न का बदलाव बहुत तेज़ी से हो रहा है तो जीव-जन्तुओं और पादप वर्ग (प्लांट टैक्सोनॉमी) को उसके अनुसार ढलना पड़ता है. उसमें कई बार ऐसा भी हो सकता है कि कुछ जीव विलुप्त हो जाएं या कुछ पादप विलुप्त हो जाएं.”
चंद्रभूषण कहते हैं कि “बसंत ऋतु के अंत में हम गेंहूं की फसल काटते हैं. लेकिन जिस तरह से तापमान बढ़ रहा है उससे रात के समय भी तापमान अधिक ही रह रहा है तो गेंहू की जो उत्पादकता है, उस पर असर पड़ेगा.”
वो कहते हैं, “क्लाइमेट-चेंज को लेकर कई प्रयास किये जा रहे हैं. लेकिन ये समझना ज़रूरी है कि अगर सीज़न का रिदम बदलेगा तो, ज़िंदगियों पर भी असर होगा ही.”साभार-बीबीसी न्यूज़
आपका साथ – इन खबरों के बारे आपकी क्या राय है। हमें फेसबुक पर कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं। शहर से लेकर देश तक की ताजा खबरें व वीडियो देखने लिए हमारे इस फेसबुक पेज को लाइक करें।हमारा न्यूज़ चैनल सबस्क्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad
Discussion about this post