“डीसीपी साहब हमारे सामने खड़े हैं, मैं आप सबके बिहाफ़ (की ओर से) पर कह रहा हूँ, ट्रंप के जाने तक तो हम शांति से जा रहे हैं, लेकिन उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे, अगर रास्ते ख़ाली नहीं हुए तो. ट्रंप के जाने तक आप (पुलिस) जाफ़राबाद और चांदबाग़ ख़ाली करवा लीजिए, ऐसी आपसे विनती है, वरना उसके बाद हमें रोड पर आना पड़ेगा.”
एक साल पहले दिल्ली के मौजपुर में कपिल मिश्रा नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के समर्थन में हो रही रैली में मौजूद थे. पुलिस की मौजूदगी में उन्होंने ये बातें कही थी.
दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाक़े में सीएए के ख़िलाफ़ शुरू हुए प्रदर्शनों का अंत दंगों की शक्ल में हुआ.
23 फ़रवरी से 26 फ़रवरी 2020 के बीच हुए दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई.
घटना के एक साल बाद, कपिल मिश्रा ने दंगा भड़काने के आरोपों से साफ़ इनकार किया है.
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट में कपिल मिश्रा के इस बयान को भड़काऊ बताया हुए कहा गया था कि उनके भाषण के फ़ौरन बाद दंगे भड़क गए.
दिल्ली की एक अदालत में मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने के लिए याचिका लगाई है. अदालत ने दिल्ली पुलिस से पूरे मामले में एक्शन टेकेन रिपोर्ट माँगी है.
दिल्ली दंगा भड़काने के आरोपों से किया इनकार
पूरे मामले में अपने ‘कथित’ भड़काऊ भाषण पर उन्होंने बीबीसी से एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा, “ये कहना कि मेरे बयान के बाद दंगे हुए, ये सबसे पहला झूठ है. ये एक प्रोपेगैंडा है, जो मेरे ख़िलाफ़ चलाया जा रहा है.”
उनके मुताबिक़ दिल्ली दंगे की टाइमलाइन 23 फरवरी 2020 से शुरू नहीं होती, बल्कि दिसंबर 2019 से शुरू होती है.
उन्होंने कहा, “दिल्ली में दंगे तो दिसंबर 2019 में शुरू हो गए थे, जब जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बसें जलाई गईं थी. दिसंबर में ही सीमापुरी में आईपीएस अफसर को मारा गया, सीलमपुर में बसें जला दी गई थी, दिसंबर 2019 में ही. ये सब तीन महीने पहले की बातें हैं, जो दिल्ली में मेरे भाषण के पहले से हो रहा था.”
ग़ौरतलब है कि संसद में दिल्ली दंगों पर बयान देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था, “24 फरवरी दोपहर 2 बजे के आसपास दंगों को लेकर पहली सूचना प्राप्त हुई थी और अंतिम सूचना प्राप्त हुई है 25 फरवरी को रात 11 बजे. ज़्यादा से ज़्यादा दिल्ली में 36 घंटे तक दंगे चले.”
यानी दिल्ली दंगों की कपिल मिश्रा की टाइमलाइन भारत सरकार की टाइमलाइन से मैच नहीं करती.
23 फरवरी 2020 का बयान
हालाँकि डीसीपी के सामने खड़े होकर बयान देने को ही कपिल मिश्रा अपना डिफेंस बताते हैं.
वो सवाल पूछते हैं, “जो हिंसा फैलाने चाहेगा, तो क्या वो पुलिस अफ़सर के बगल में खड़े होकर बयान देगा? मैंने ही वो वीडियो पोस्ट किया, वो मेरे ही टाइमलाइन पर था, मेरा किसी ने स्टिंग करके वीडियो नहीं बनाया.”
वो आगे कहते हैं, “मैं वहाँ का नागरिक हूँ, उसी जगह रहता हूँ, वहीं पला बढ़ा हूँ, वो मेरे घर के लोग हैं. जो अपने स्कूल, दफ़्तर, अस्पताल और घर नहीं जा पा रहे थे. उस दिन का मेरा बयान हेट स्पीच नहीं हैं. वो एक नागरिक की संवेदना है, दर्द है, अपील है.”
उन्होंने बताया कि पुलिस ने मुझसे पूरे मामले में विस्तृत पूछताछ की है. “मेरे लोकेशन के बारे में, मेरे मोबाइल के बारे में. मेरी किन लोगों से बातें हुई, मैं कहाँ कहाँ गया हूँ, इस पूरे मामले पर पुलिस ने जानकारी मुझसे ली है.”
हालाँकि कपिल मिश्रा का भाषण दिल्ली पुलिस के रिकॉर्ड में दंगे पर सितंबर की चार्जशीट के पहले कहीं दर्ज नहीं था.
सितंबर में एफ़आईआर 59 की चार्जशीट आई, तो इसमें कपिल मिश्रा के नाम का ज़िक्र था. चार्जशीट के मुताबिक़ 28 जुलाई, 2020 को कपिल मिश्रा से पूछताछ की गई, जिसमें मिश्रा ने कहा कि उन्होंने कोई स्पीच नहीं दी थी.
दूसरी तरफ़ दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में उमर ख़ालिद के 17 फरवरी 2020 के भाषण का और हर्ष मंदर के 16 दिसंबर के भाषणों का जिक्र मिलता है, जो कपिल मिश्रा के भाषण के पहले दिए गए थे.
“हाँ, मैं एक धर्म के लोगों के लिए सहायता देता हूँ”
दिल्ली पुलिस की तरफ़ से 13 जुलाई 2020 को हाईकोर्ट में दायर हलफ़नामे के मुताबिक, दंगे में मारे गए 53 लोगों में से 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे.
कपिल मिश्रा दंगे में मारे गए हिंदुओं के परिवार की मदद के लिए लगातार काम करते नज़र आए. कई परिवारों के लिए उन्होंने क्राउड-फंडिंग कर पैसे जमा किए हैं. लेकिन दंगे से प्रभावित मुसलमान परिवारों के लिए वो आगे नहीं आए. ऐसे आरोप उन पर लगते रहे हैं.
इन आरोपों को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, “हाँ, मैं एक धर्म के लोगों को सहायता देता हूँ. मैं इस बात को स्वीकार करता हूँ. नागरिक के तौर पर मेरी ज़िम्मेदारी उनके लिए नहीं बनती है, जिनके लिए दिल्ली सरकार और दिल्ली वक़्फ बोर्ड काफ़ी काम कर रहे है. जो लोग छूट गए, उनके लिए मैं बोलता हूँ और काम करता हूँ.”
दिल्ली दंगों में अलावा कपिल मिश्रा ने रिंकू शर्मा हत्या मामले में, ग्रेटा थर्नबर्ग टूलकिट मामले में और सोशल मीडिया पर चर्चित अपने ‘हिंदू इकोसिस्टम’ कैंपेन पर भी जवाब दिया.
रिंकू शर्मा हत्या मामले में कपिल मिश्रा का बयान
उत्तर पश्चिमी दिल्ली के मंगोलपुरी इलाक़े में रिंकू शर्मा नाम के एक युवक की हत्या के बाद इस बात पर बहस छिड़ी है कि इस घटना की वजह क्या थी.
सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर लोग लिख रहे हैं कि रिंकू को इसलिए मारा गया, क्योंकि वह हिंदू था और उसका संबंध बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से था. कपिल मिश्रा भी इसी तर्क को मानते हैं.
दिल्ली पुलिस का कहना है कि यह सांप्रदायिक हिंसा का मामला नहीं है, बल्कि आपसी रंजिश का मामला है, जिसकी वजह से यह हत्या हुई है. कपिल मिश्रा, इस तर्क को नहीं मानते और कहते हैं कि पुलिस ने बिना मामले की पूरी छानबीन किए अपना बयान जल्दबाज़ी में दिया.
‘हिंदू इकोसिस्टम’ कैंपेन पर सफ़ाई
ट्विटर पर कपिल मिश्रा काफ़ी सक्रिय रहते हैं. वहाँ उनके 9 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोअर हैं.
पिछले साल नवंबर में उन्होंने ‘हिंदू इकोसिस्टम’ नाम से सोशल मीडिया पर एक ग्रुप बनाने की पहल शुरू की है.
बेवसाइट न्यूज़लॉन्ड्री ने हाल ही में उनके इस ग्रुप पर विस्तृत इंवेस्टिगेटिव रिपोर्ट छापी है, जिसमें उन पर ऑनलाइन ‘हेट’ कैंपेन चलाने का आरोप लगाया गया है और ये भी दावा किया गया है कि इस तरह के अभियान के पीछे उनका ‘टूलकिट’ कैसे काम करता है.
इस बारे में जब बीबीसी ने उनसे सवाल पूछा कि ‘हिंदू इकोसिस्टम’ और उसमें पोस्ट किए जाने वाले टूलकिट की ज़रूरत क्या है?
इसके जवाब में कपिल मिश्रा कहते हैं, “हम हिंदू इकोसिस्टम में कोई टूलकिट पोस्ट नहीं करते. न्यूज़लॉन्ड्री ने जानबूझ कर उसे टूलकिट कहा है. हम लोग, इस प्लेटफॉर्म के जरिए साधारण मुद्दे पर कैंपेन करते हैं और लोगों को जोड़ते हैं. जिसमें हमारे पुराने राजा कैसे थे, प्राचीन भारत के मंदिर कैसे थे, हमारा देश का इतिहास कैसा रहा है – ऐसे 16 मुद्दे हैं, जिसको न्यूज़लॉन्ड्री ने अपनी रिपोर्ट में भी छापा है.”
लेकिन रिपोर्ट के ‘हेट’ कैंपेन वाले हिस्से को पढ़ कर सुनाने पर वो कहते हैं कि ग्रुप में वो पोस्ट किसी और ने वो डाला था, उसे हमने हटा दिया.
इस सवाल पर कि कैंपेन और ग्रुप का नाम ‘हिंदू इकोसिस्टम’ ही क्यों रखा? वो कहते हैं, “हिंदुओं की बात आज कोई नहीं कर रहा. आप करने लग जाइए, हमें इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी. हिंदू इकोसिस्टम के नाम से लोगों के पेट में दर्द होना ये बताता है कि आज इस इकोसिस्टम की कितनी ज़रूरत है. नाम में हिंदू होने से ही लोगों को दिक़्क़त होती है, ये बात आपके सवाल से भी ज़ाहिर होती है.मैं अपने धर्म की बात कर रहा हूँ, किसी पर कोई हमला नहीं कर रहा, तो लोगों को दिक़्क़त क्यों हो रही है.”
वो इस बात को मानने को तैयार नहीं कि दिशा रवि, ग्रेटा थनबर्ग का टूलकिट और हिंदू इकोसिस्टम पर पोस्ट किए जाने वाले टूलकिट की तुलना की जानी चाहिए. उनका मानना है कि ‘हिंदू इकोसिस्टम’ में पोस्ट किए गए टूलकिट में अपने देश और अपने धर्म के ख़िलाफ़ कुछ नहीं है.
दरअसल स्वीडन की क्लाइमेट एक्टविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन को लेकर एक टूलकिट ट्वीट किया था. दिल्ली पुलिस के मुताबिक़ उस टूलकिट को बनाने में बेंगलुरु की दिशा रवि ने मदद की थी. इस सिलसिले में दिशा जेल भी गईं. फ़िलहाल उन्हें ज़मानत मिल गई है.
कपिल मिश्रा का मानना है कि ग्रेटा और दिशा रवि का टूलकिट देश के ख़िलाफ़ है.
मानवाधिकारों पर क्या बोले?
दिल्ली बीजेपी के नेता कपिल मिश्रा ने राजनीति में क़दम रखने से पहले मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के लिए भी काम किया था.
इस सवाल पर कि क्या एमनेस्टी इंटरनेशनल वाले कपिल मिश्रा और बीजेपी वाले कपिल मिश्रा में कोई फ़र्क दिखता है?
वो कहते हैं, “दोनों में कोई फर्क़ नहीं है. आज भी मैं मानवाधिकारों के लिए सबसे ज़्यादा काम कर रहा हूँ. एक ग़रीब पुजारी जिसको ज़िंदा जला दिया गया, उसके घर पर पहुँच कर मैं मदद कर रहा हूँ, तो क्या वो मानवाधिकार नहीं होता है? क्या रिंकू होगा, तो मानवाधिकार नहीं होगा? रेहान होगा, तो ही मानवाधिकार होगा?साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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