देश में पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। बीते शनिवार यानी, 20 फरवरी को एक बार फिर पेट्रोल के दाम 39 पैसे और डीजल के दाम 37 पैसे प्रति लीटर बढ़े। फिलहाल, दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 90.58 रुपए और डीजल का दाम 80.97 रुपए है। नए साल में अब तक पेट्रोल और डीजल की कीमत 25 बार बढ़ चुकी है। फरवरी में अब तक पेट्रोल-डीजल के रेट 15 बार बढ़ चुके हैं।
सवाल ये है कि इसकी वजह क्या है? सबसे बड़ी वजह, जो आजकल चर्चा में है, वह है केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी, जो पेट्रोल पर 32.90 रूपए और डीजल पर 31.8 रूपए प्रति लीटर वसूली जा रही है, लेकिन क्या पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों की यही एक वजह है? जवाब है, नहीं। इसकी दूसरी और सबसे बड़ी वजह यह है कि कच्चे तेल यानी क्रूड ऑयल के लिए इम्पोर्ट पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है। हम इम्पोर्ट पर निर्भरता जितनी ज्यादा बढ़ाते जाएंगे, तेल की कीमतें उतनी ही बढ़ती जाएंगी। मनमोहन सरकार के आखिरी साल यानी 2014 में डोमेस्टिक ऑयल प्रोडक्शन 37.78 मिलियन टन था, जो 2019-20 में 15% घटकर 32.17 मिलियन टन पर आ गया है। नतीजतन इम्पोर्ट पर हमारी निर्भरता बढ़कर 88% हो गई।
प्रधानमंत्री के बयान में सारा गणित छिपा है
तमिलनाडु में 17 फरवरी को ऑयल एंड गैस प्रोजेक्ट के उद्घाटन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “क्या भारत जैसे एक विविध और सक्षम देश को एनर्जी इम्पोर्ट पर निर्भर होना चाहिए? मैं किसी की आलोचना नहीं करना चाहता, लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि अगर हमने इस मसले पर पहले फोकस किया होता तो हमारे मध्यम वर्ग को बोझ नहीं सहना पड़ता।” जाहिर है प्रधानमंत्री तेल की बढ़ती कीमतों का ठीकरा पिछली सरकार पर फोड़ रहे हैं, साथ ही यह भी मान रहे हैं कि अगर डोमेस्टिक प्रोडक्शन बढ़ जाता तो आज यह आलम न होता। ऐसे में आपके मन में एक सवाल उठ रहा होगा कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में क्रूड ऑयल का डोमेस्टिक प्रोडक्शन क्या था और मोदी के कार्यकाल में क्या हाल है?
प्रधानमंत्री मोदी सही कह रहे हैं कि घटे हुए डोमेस्टिक प्रोडक्शन की वजह से तेल की कीमतें बढ़ रही हैं, पर यह सही नहीं है कि पिछली सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक मोदी सरकार में डोमेस्टिक ऑयल प्रोडक्शन में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है। 2014 में जब मोदी सत्ता में आए थे, तब डोमेस्टिक ऑयल प्रोडक्शन 37.78 मिलियन टन था जो 2019-20 में यह 32.17 मिलियन टन पर आ गया। हकीकत तो यह है कि 2019-20 में डोमेस्टिक ऑयल प्रोडक्शन, 2002 से भी लगभग 1 मिलियन टन कम हुआ है। डोमेस्टिक ऑयल प्रोडक्शन पिछले 18 साल, यानी लगभग 2 दशकों में सबसे निचले स्तर पर है।
2022 तक इम्पोर्ट पर निर्भरता 10% कम करने का लक्ष्य
मोदी सरकार का एजेंडा 2022 तक क्रूड ऑयल का डोमेस्टिक प्रोडक्शन बढ़ाने का था। सरकार का टारगेट था कि 2022 तक कच्चे तेल में इम्पोर्ट पर निर्भरता 10% तक घटा लेंगे। 2014 में जब मोदी सत्ता में आए थे, तब देश में तेल की कुल खपत का 83% बाहर से आता था। यानी मोदी सरकार इसे 2022 तक घटाकर 73% करना चाहती थी। 2019-20 के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि यह घटने के बजाए बढ़कर 88% हो गया है। अब सवाल यह है कि क्या दो साल में मोदी सरकार कच्चे तेल पर इम्पोर्ट की निर्भरता घटाकर 88% से 73% तक कर लेगी? सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड से तो ऐसा बिलकुल नहीं लगता।
ONGC ही कमजोर होगा तो कच्चे तेल का प्रोडक्शन कौन करेगा?
ONGC एक पब्लिक सेक्टर यानी सरकारी कंपनी है। देश में जितना डोमेस्टिक क्रूड ऑयल प्रोडक्शन होता है, उसका 30% से भी ज्यादा हिस्सा ONGC अकेले प्रोड्यूस करती है। अब सोचिए, अगर ONGC ही कमजोर हो जाए तो डोमेस्टिक क्रूड ऑयल प्रोडक्शन कैसे होगा? और सबसे बड़ी बात, अगर प्रधानमंत्री इस बात को समझते हैं कि बगैर डोमेस्टिक क्रूड ऑयल प्रोडक्शन के तेल सस्ता नहीं हो सकता, तो उनके कार्यकाल में ONGC को और मजबूत क्यों नहीं किया गया? अब सवाल यह है कि इसका उल्टा कैसे हो गया? इस ग्राफिक से समझिए
जब 2014 में मोदी सत्ता में आए थे, तो उस वक्त तेल के नए स्रोत खोजने के लिए ONGC के पास 11 हजार करोड़ रुपए का बजट था। 2018-19 में यह बजट घटकर 6 हजार करोड़ पर आ गया, यानी आधा रह गया। सरकार ने उसका कैश भी ले लिया। ONGC के पास लगभग 11 हजार करोड़ रुपए का कैश था, जिसे वह ऑयल प्रोडक्शन के तमाम मदों में खर्च कर रही थी। पर सरकार के कहने पर इस रकम से ONGC ने BPCL के शेयर खरीद लिए। ताकि BPCL में विनिवेश हो सके। नतीजतन, देश में डोमेस्टिक क्रूड ऑयल प्रोडक्शन घट गया और अब अंतरराष्ट्रीय बाजारों पर निर्भरता के चलते देश में तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं। इसके अलावा सरकार द्वारा लगातार बढ़ाई गई एक्साइज ड्यूटी भी तेल की बढ़ती कीमतों की एक बड़ी वजह है।साभार-दैनिक भास्कर
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