हाईकोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में 15,000 रुपये के न्यूनतम वेतन पर जीवन गुजारना कठिन है। अदालत ने यह टिप्पणी दिल्ली सरकार द्वारा राजधानी में अकुशल, अर्द्धकुशल और कुशल कामगारों को महंगाई भत्ता (डीए) दिए जाने के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की। अदालत ने सरकार के निर्णय पर रोक लगाने से इंकार कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल व न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने फिलहाल इस याचिका के आधार पर दिल्ली सरकार और श्रम विभाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह याचिका दिल्ली के शीर्ष व्यापार और उद्योग संघ ने दायर की है। याचिका में सभी श्रेणी के श्रमिकों और कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन को संशोधित करने संबंधी दिल्ली सरकार द्वारा जारी अक्टूबर 2019 की अधिसूचना व महंगाई भत्ता तय करने के श्रम विभाग के सात दिसंबर 2020 के आदेश को चुनौती दी है।
दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील संजय घोष और अधिवक्ता रिषब जे ने सरकार की अक्टूबर 2019 की अधिसूचना का बचाव करते हुए कहा कि खाद्य पदार्थ, कपड़ा, आवास, ईंधन, बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा खर्च के औसत मूल्य तथा अन्य पहलुओं के आधार पर दर निर्धारित की गयी। उन्होंने कहा दिल्ली सरकार ने न्यूनतम वेतन तय करने से पहले दिल्ली न्यूनतम वेतन परामर्श बोर्ड का गठन किया गया और इसमें याचिकाकर्ता संगठन समेत सभी हितधारकों के साथ बात की गयी।
उन्होंने कहा बातचीत में कोई सहमति नहीं बन पाने पर वोट के जरिए मामले का फैसला हुआ और बोर्ड के सदस्यों ने बहुमत के आधार पर दर को मंजूरी दी। वहीं राष्ट्रीय राजधानी में करीब 50,000 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले संगठन ने दलील दी है कि श्रम विभाग के अतिरिक्त श्रम आयुक्त के सात दिसंबर 2020 के आदेश में विसंगति है। उन्होंने कहा डीए एक अप्रैल 2020 और अक्टूबर 2020 से पूर्व प्रभाव के साथ लागू किया गया है। याचिका में संगठन ने कहा है कि सात दिसंबर 2020 के आदेश को पूर्व प्रभाव के साथ लागू नहीं किया जा सकता।साभार-अमर उजाला
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