राजस्थान में एक गाँव से आने वाली भावना जाट ने तमाम बाधाओं को पार करते हुए जो मुकाम हासिल किया है, वो एक खेल की दुनिया में कामयाबी की एक प्रेरणादायी कहानी है.
उन्होंने आर्थिक तंगी और पड़ोसियों के ताने जैसी कई मुश्किलों का सामना करने के बाद अपनी कामयाबी की दास्तां लिखी है.
भावना जाट 2021 में होने वाले टोक्यो ओलंपिक में रेसवॉकिंग में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली हैं. उनके स्पोर्ट्स में करियर बनाने के फैसले के पीछे की एक दिलचस्प कहानी है.
वो एक बार एक ज़िला स्तरीय खेल प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेने पहुँची थीं. वहाँ पर सिर्फ़ रेसवॉकिंग में हिस्सा लेने के लिए जगह खाली थी. भावना ने उसमें हिस्सा लिया और इस तरह से एक रेस वॉकर के करियर की शुरुआत हुई.
भावना बचपन से ही एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाली खिलाड़ी रही हैं. वो खेल की दुनिया में कुछ बड़ा करना चाहती थीं. हालांकि शुरुआत में उन्हें साफ़ तौर पर किस दिशा में बढ़ना है इसे लेकर दुविधा थी.
साल 2009 में उन्होंने एक राष्ट्रीय स्तर के स्कूल स्पोर्ट्स टूर्नामेंट में हिस्सा लेने का फ़ैसला लिया. राज्य की टीम का हिस्सा होने के लिए उन्हें पहले ज़िला स्तर की बाधा को पार करना था.
उनके स्पोर्ट्स टीचर उन्हें ट्रायल के लिए जिला स्तर की प्रतियोगिता में ले गए. वहाँ जाने के बाद उन्हें पता चला कि सिर्फ़ रेस वॉकिंग में एक जगह खाली बची हुई है. थोड़ा सोच-विचार करने के बाद भावना ने रेस वॉकिंग में हिस्सा लेने का फैसला किया.
भावना जाट के पिता शंकर लाल जाट एक ग़रीब किसान थे और उनकी माँ नोसार देवी एक गृहणी थीं. उनका घर राजस्थान के काबड़ा गाँव में है. उनका परिवार आय के लिए अपने दो एकड़ ज़मीन पर होने वाली खेती पर निर्भर था.
भावना के पिता के लिए अपनी बेटी की ट्रेनिंग संबंधी ज़रूरतों को पूरा करना बहुत मुश्किल भरा काम था.
इसके अलावा मूलभूत सुविधाओं का अभाव भी एक बड़ी बाधा थी. इसमें रेस वॉकिंग के अभ्यास के लिए मैदान जैसी सुविधाओं का अभाव शामिल था. इन सब बाधाओं ने एक उभरते हुए एथलीट के लिए चीज़ें और मुश्किल कर दी थीं.
लेकिन वो इन बाधाओं की वजह से अपने इरादे बदलने को तैयार नहीं थीं. उन्होंने अपने गाँव के पास तड़के सुबह उठकर प्रैक्टिस करना शुरू किया.
उन्होंने तड़के सुबह का वक़्त प्रैक्टिस के लिए इसलिए चुना था ताकि गाँव वालों की नज़र से बच सके. गांव वाले शॉर्ट्स पहन कर किसी लड़की का यूँ प्रैक्टिस करना अच्छा नहीं मानते थे.
भावना बताती हैं कि समाज के दबाव के बावजूद उनका परिवार उनके पीछे मज़बूती से खड़ा रहा. उनके बड़े भाई ने कॉलेज छोड़कर नौकरी करनी शुरू कर दी ताकि वो भावना को रेस वॉकिंग का करियर बनाने में मदद पहुँचा सके.
कभी हार नहीं मानने की भावना की प्रवृत्ति ने धीरे-धीरे रंग दिखाना शुरू किया और वो कई स्थानीय और जिला स्तर के प्रतिस्पर्धाओं में जीत दर्ज करने लगीं. आख़िरकार उन्होंने भारतीय रेलवे जॉइन किया.
2019 में ऑल इंडिया रेलवे प्रतियोगिता में 20 किलोमीटर की रेस वॉकिंग में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था. 20 किलोमीटर की यह दूरी उन्होंने एक घंटे, 36 मिनट और 17 सेकेंड में पूरे किए थे. उनका कहना है कि इस कामयाबी ने उनके आत्मविश्वास को बेहतर प्रदर्शन और ओलंपिक के लिए कोशिश करने की दिशा में बढ़ाया.
उन्होंने रांची में 2020 में हुए नेशनल चैंपियनशिप में नया रिकॉर्ड बनाया. उन्होंने 20 किलोमीटर की दूरी एक घंटे, 29 मिनट और 54 सेकेंड में पूरा कर यह रिकॉर्ड बनाया. इस प्रदर्शन की वजह से वो टोक्यो ओलंपिक के लिए भी क्वालीफाई की.
भावना को अपने करियर में जिन बाधाओं का सामना करना पड़ा, वो भारत में महिला एथलीटों के लिए कोई असमान्य बात नहीं है.
भावना कहती हैं कि भारतीय महिला एथलीटों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक अवसर मुहैया कराने की ज़रूरत है ताकि इससे उन्हें अपनी तकनीक और प्रदर्शन सुधारने में मदद मिले.
बिना किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिए ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करना भावना की विलक्षण प्रतिभा को दिखाता है.
ओलंपिक में हिस्सा लेना भावना के लिए एक नई चुनौती है लेकिन वो भारत के लिए मेडल जीतने की उम्मीद से भरी हुई हैं. उनकी इस उम्मीद की एक बड़ी वजह ओलंपिक में 20 किलोमीटर की रेस वॉक में पिछली बार लगा वक्त है.
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