देश में हर साल लाखों लोग कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। इन मरीजों की जान बचाने के लिए भारत सरकार राष्ट्रीय आरोग्य निधि के तहत आर्थिक मदद करती है लेकिन छह साल में चार लाख कैंसर मरीज बढ़ने के बाद भी मदद लेने वालों में 23 गुना गिरावट आई है।
इतना ही नहीं हर साल स्वास्थ्य मंत्री को मिलने वाला 100 करोड़ रुपये का बजट भी पिछले वर्ष कोरोना महामारी के बीच 50 फीसदी कम हो गया।
30 दिसंबर 2020 को दायर एक आरटीआई से पता चला है कि वर्ष 2014 से 2020 के बीच स्वास्थ्य मंत्री कैंसर मरीज निधि में 50 फीसदी की कमी आई है। वर्ष 2014-15 से 2018-19 तक हर साल 100 करोड़ रुपये का बजट कैंसर रोगियों की मदद के लिए आवंटित हुआ लेकिन वर्ष 2019-20 में यह 100 करोड़ से घटाकर सीधे 50 करोड़ रुपये कर दिया गया।
वर्ष 2014 में 6408 कैंसर मरीजों को आर्थिक सहायता प्राप्त हुई है। इसके बाद कैंसर मरीजों की संख्या घटती चली गई। साल 2015 में 5635, 2016 में 3109, 2017 में 3934, 2018 में 1773 और वर्ष 2019-20 में 275 मरीजों को ही सरकार से आर्थिक मदद मिल पाई है।
यह स्थिति तब है जब भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार वर्ष 2014-20 के बीच कैंसर मरीजों की संख्या 10.15 लाख से बढ़कर 14.10 लाख तक हुई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों में अगर कोई कैंसर पीड़ित होता है तो उसे राष्ट्रीय आरोग्य निधि के जरिये उपचार में आर्थिक सहायता की जाती है।
ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह संयोजक मालिनी ऐसोला का कहना है कि कैंसर को लेकर जमीनी स्तर पर हालात अच्छे नहीं हैं। सरकारी अस्पतालों में लंबी कतारें और निजी अस्पतालों में लाखों रुपये का उपचार निम्न और मध्यम वर्गीय परिवार नहीं सहन कर पाते हैं। सरकार से मिलने वाली आर्थिक मदद भी हर जरूरतमंद तक नहीं पहुंच पाती। ज्यादातर लोगों को राष्ट्रीय आरोग्य निधि के बारे में जानकारी ही नहीं है, जिन्हें पता है तो उन्हें कैसे आवेदन करना है, इसके बारे में भी नहीं पता है।
अकेले पूर्वोत्तर में 57 हजार कैंसर मरीज
आईसीएमआर का कहना है कि देश के पूर्वोत्तर राज्यों में ही आगामी वर्ष 2025 तक कैंसर मरीजों की संख्या बढ़कर 57 हजार हो सकती है। महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने आठ राज्यों पर कैंसर रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि असम के कामरूप जिले में हर चार पुरुष में से एक और छह में से एक महिला कैंसर ग्रस्त हो सकती है। पुरुषों में खाने की नली, फेफड़े और महिलाओं में स्तन और गर्भाश्य कैंसर की आशंका अधिक है।
एम्स में भी वेटिंग कम नहीं
दिल्ली एम्स में कैंसर शाखा के निदेशक डॉ. जीके रथ का कहना है कि कैंसर को लेकर स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण है। निचले स्तर तक सरकारी योजनाओं को पहुंचाने और कैंसर के बारे में बात करना बहुत जरूरी है। एम्स की बात करें तो यहां भी रेडियोथैरेपी और कीमो को लेकर काफी लंबी वेटिंग है।साभार-अमर उजाला
छह साल में मिली मदद
वर्ष कैंसर मरीज
2014-15 6408
2015-16 5635
2016-17 3109
2017-18 3934
2018-19 1773
2019-20 275
कैंसर मरीजों की बढ़ोतरी
साल कैंसर मरीज मौत
2014 10,15,135 6,70,876
2017 12,92,534 7,15,010
2018 13,25,232 7,33,139
2019 13,58,415 7,51,517
(लोकसभा में पेश स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े)
आपका साथ – इन खबरों के बारे आपकी क्या राय है। हमें फेसबुक पर कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं। शहर से लेकर देश तक की ताजा खबरें व वीडियो देखने लिए हमारे इस फेसबुक पेज को लाइक करें।हमारा न्यूज़ चैनल सबस्क्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad
Discussion about this post