दिल्ली पुलिस का कहना है कि किसी भी जवान या अधिकारी को लोहे या स्टील के डंडे और कवच के इस्तेमाल की न तो अनुमति दी गयी है और ना ही दिल्ली पुलिस इसका प्रयोग करने वाली है.
पुलिस के अतिरिक्त प्रवक्ता अनिल मित्तल ने बीबीसी से कहा कि जो तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है वो शाहदरा की है जहां स्थनीय स्तर पर किसी पुलिस अधिकारी ने तलवार के हमलों से बचाव के लिए स्टील की लाठियों के इस्तेमाल की अनुमति मांगी थी.
वो कहते हैं, “विभाग के बड़े अधिकारियों ने इसके इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी है और ना ही भविष्य में ही इसके इस्तेमाल के बारे में विभाग कुछ सोच रहा है.”
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सिंघु बॉर्डर पर अलीपुर थाना के प्रभारी पर हुए तलवार के हमले या गणतंत्र दिवस पर पुलिसकर्मियों पर जिस तरह हमले हुए उसके बाद स्थानीय स्तर पर पुलिस अधिकारी अपनी सुरक्षा को लेकर इस तरह के प्रयोग करना चाह रहे हैं.
वो कहते हैं कि दिल्ली पुलिस ने इस संबंध में किसी भी तरह का कोई निर्णय नहीं लिया है और जिन पुलिसकर्मियों ने तस्वीर खिंचवाई थी उन्हें भी इसका इस्तेमाल ना करने को कहा गया है.
दिल्ली पुलिस के आला अधिकारियों का ये भी कहना है कि जो सुरक्षा के लिए जो हथियार पुलिसकर्मी इस्तेमाल करते हैं आधिकारिक रूप से उनकी इजाज़त मिली होती है. इनका इस्तेमाल सिर्फ़ दिल्ली पुलिस ही नहीं बल्कि सभी राज्यों की पुलिस और सशस्त्र बल के अधिकारी और जवान करते हैं.
‘पुलिस किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती’
लोगों में जिज्ञासा है कि क्या दिल्ली पुलिस, किसान आन्दोलन से निपटने के लिए अपनी रणनीति बदल रही है?
दिल्ली पुलिस के अधिकारी कहते हैं कि “उन्होंने गणतंत्र दिवस के मौक़े पर किसान संगठनों पर भरोसा किया था कि वो तय किये गए रूट पर ही ट्रैक्टर परेड निकालेंगे और वो भी राजपथ पर सरकारी कार्यक्रम के ख़त्म होने के बाद. लेकिन, उस दिन जो हुआ उसको लेकर दिल्ली पुलिस पर ही सवाल उठने लगे थे. सवाल पूछे जा रहे थे कि दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने ट्रैक्टर परेड की अनुमति क्यों और कैसे दे दी?”
कई लोगों ने दिल्ली पुलिस के इस क़दम की आलोचना करते हुए ये भी कहा कि शहर के अंदर परेड निकालने की अनुमति ही नहीं देनी चाहिए थी और ये कि इस तरह के आयोजन को दिल्ली की सरहदों के बाहर ही तक सीमित रखना चाहिए था.
दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर दीपेन्द्र पाठक के अनुसार कई दौर के वार्ताओं के बाद किसान नेताओं ने भरोसा दिलाया था कि ट्रैक्टर परेड शांतिपूर्ण होगी और तय समय और मार्ग पर ही होगी. लेकिन, वो कहते हैं, आन्दोलन कर रहे लोग समय से पहले ही दिल्ली में उन मार्गों पर आ गए जहां सरकारी कार्यक्रम चल ही रहा था.
वहीं पुलिस के दूसरे अधिकारियों का कहना है कि गणतंत्र दिवस को जो कुछ हुआ उसको देखते हुए दिल्ली पुलिस अब किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहती है.
यही वजह है कि सिंघु, टिकरी से लेकर गाज़ीपुर बॉर्डर तक, जहां-जहाँ किसानों का प्रदर्शन चल रहा है, वहाँ पुलिस ने पक्के कंक्रीट के बैरियर, कंटीले तार और बीच सड़क पर कीलें लगानी शुरू कर दी गईं हैं.
पुलिस अधिकारी कहते हैं कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि पहले की तरह आन्दोलन में शामिल लोग ‘अनियंत्रित’ होकर फिर से ट्रैक्टर और गाड़ियां लेकर राजधानी में ना घुस जाएँ.
‘स्थानीय लोग परेशान होंगे‘
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के अवीक साहा के अनुसार किसान एकता मोर्चा ने भी दिल्ली पुलिस के इस क़दम की निंदा का प्रस्ताव पारित किया है.
बीबीसी से उन्होंने कहा कि जिस तरह से पुलिस पक्के और सीमेंट वाले बैरियर लगा रही है उस से स्थानीय लोगों को ही परेशानी हो रही है.
वो कहते हैं, “लगभग हर प्रदर्शन स्थल पर जाने वाले हर रास्ते को इसी तरह से सील किया जा रहा है. इससे पुलिस स्थानीय लोगों को आन्दोलन कर रहे किसानों के ख़िलाफ़ भड़काने की कोशिश कर रही है. वहीं प्रदर्शन स्थलों पर इन रुकावटों की वजह से ना तो पानी के टैंकर आ पा रहे हैं और ना ही एम्बुलेंस आने के लिए ही जगह छोड़ी गयी है.”
इसी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर भारत सरकार को सुझाव दिया, “पुल बनाइए, दीवारें नहीं”.
अखिल भारतीय किसान सभा भी उन 40 किसान संगठनों में से एक है जो संयुक्त किसान मोर्चा के घटक हैं. सभा के वरिष्ठ नेता वीजू कृष्णन का आरोप है कि दिल्ली पुलिस जिस तरह से धरना स्थलों की नाकेबंदी कर रही है वो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी अवहेलना है जो कहतीं हैं कि लोकतंत्र में शांतिपूर्ण आन्दोलन करने का सभी को अधिकार है.
बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं “दिल्ली पुलिस का प्रयास है कि सभी धरना स्थलों पर पानी और बिजली कटी रहे. इन्टरनेट सेवाएं पहले ही ठप्प कर दी गयीं हैं. दिल्ली की सीमाओं पर जहां किसान प्रदर्शन कर रहे हैं, दिल्ली पुलिस ने उन्हें ऐसा बना दिया है मानो दो दुश्मन देशों की सरहद हो.”
सिंघु, टिकरी और गाज़ीपुर पर कई स्तरों पर बैरिकेडिंग की गई है. शुरू में लोहे के बैरियर, फिर बड़े पत्थरों के बने रोड़े और फिर सीमेंट से बने हुए अवरोधक. और इन सब के बीच जगह जगह पर कीलें और तारें सड़क पर बिछायी गयीं हैं.
खेड़ा में चल रहे आन्दोलन के संयोजक संजय माधव का कहना है कि “किसानों से ज़्यादा परेशानी स्थानीय लोगों को होने लगी है क्योंकि पैदल चलने काले रास्तों पर भी पुलिस ने कंटीले तार और बैरिकेड लगा दिए हैं. मतलब कि धरना स्थलों से दिल्ली की तरफ़ आने वाले हर छोटे बड़े रास्ते को सील कर दिया गया है.”
कितनी परतों में की गई है बैरिकेडिंग?
अधिकारियों का कहना है कि सुरक्षा की पहली परत में सीमेंट का बैरिकेड लगाया गया है जहां पर अर्ध सैनिक बल के जवान और अधिकारी तैनात हैं. वहीं दूसरी परत में कंटीले तार की बाड़ जिनके पास सड़क को बीचों- बीच खोद दिया गया है, सीमेंट की मदद से सड़कों पर छोटी-बड़ी में कीलें गाड़ी हैं. ये किसी भी प्रकार के वाहन को रोकने के लिए लगाई गयीं हैं.
तीसरी और चौथी परत में लोह के बैरिकेड लगाये गए हैं जबकि पांचवीं परत में ट्रकों की बड़ी ट्रॉलियाँ और कंटेनर लगाए गए हैं. आख़री परत में फिर कंटीले तारों की बाड़ लगाई गयी है.
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार दिल्ली पुलिस ने पंजाब और हरियाणा के पुलिस महानिदेशकों को चिठ्ठी लिख कर अनुरोध किया है कि वो अपने राज्यों से प्रदर्शनकारी किसानों को दिल्ली आने से रोकें. साथ ही राज्यों की पुलिस से कहा है कि वो आन्दोलन में शामिल होने दिल्ली आ रहे किसानों की जानकारी भी मुहैया करायें.
जब ट्रेनों का रूट बदलना भी काम नहीं आया
चिठ्ठी में दिल्ली पुलिस ने गंगानगर-हरिद्वार-बठिंडा एक्सप्रेस ट्रेन और दिल्ली-मुंबई पंजाब मेल का भी ज़िक्र किया है जिनके मार्ग आन्दोलन की वजह से बदल दिए गए थे और ट्रेनों के मार्ग को दिल्ली की बजाय रोहतक में परिवर्तित कर दिया गया था.
दिल्ली पुलिस का कहना है कि सैकड़ों की संख्या में किसान रोहतक स्टेशन पर उतारकर दिल्ली पहुँच गए.
पत्रकार सत सिंह के अनुसार हरियाणा के रोहतक रेलवे स्टेशन पर उतरने वाले किसान आन्दोलन में शामिल होने के लिए दिल्ली के लिए सड़क मार्ग से निकल पड़े.
सत सिंह को रोहतक के पुलिस उपाधीक्षक (मुख्यालय) गोरखपाल राणा ने बताया कि ट्रेनों के मार्ग इसलिए बदलाव किए गए क्योंकि सूचना थी कि इन पर सवार किसान आन्दोलन में शामिल होने आ रहे हैं.
अखिल भारतीय किसान सभा के वीजू कृष्णन ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि निर्धारित स्थलों पर किसान शांतिपूर्ण तरीके से आन्दोलन करते आ रहे हैं.
वो कहते हैं कि केंद्र सरकार सिर्फ़ लुटियंस की दिल्ली के बारे में सोच रहे है और किसानों और बाक़ी नागरिकों को तकलीफ़ में डाल रही है. साभार BBC NEWS
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