हरिद्वार ज़िले के दौलतपुर गांव की सृष्टि गोस्वामी सुर्ख़ियों में हैं, क्योंकि 24 जनवरी (रविवार) को राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौक़े पर उन्हें उत्तराखंड का एक दिन का मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है.
वो उत्तराखंड की पहली महिला मुख्यमंत्री होंगी. हालाँकि यह प्रतीकात्मक होगा और वो बाल विधानसभा सत्र में बतौर मुख्यमंत्री, सरकार के अलग-अलग विभागों के कार्यों का जायज़ा लेंगी.
इस दौरान विभागीय अधिकारी अपने कामों की प्रस्तुति देंगे और सृष्टि उन्हें अपने सुझाव देंगी.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी इस कार्यक्रम में मौजूद रहेंगे. उत्तराखंड विधानसभा भवन के एक सभागार में रविवार को यह कार्यक्रम दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक आयोजित होना है.
सीएम बनाने का क्या है उद्देश्य
उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी के मुताबिक़ उत्तराखंड सरकार की ओर से सृष्टि को एक दिन का मुख्यमंत्री बनाने की इस पहल का मक़सद ‘लड़कियों के सशक्तिकरण को लेकर जागरूकता फ़ैलाना है.’
सोशल मीडिया में जारी एक बयान में सृष्टि ने कहा है, “मैं बहुत खुश हूं कि मुझे एक दिन का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिल रहा है. उत्तराखंड सरकार के अलग-अलग विभागों की प्रस्तुति के बाद मैं उन्हें अपने सुझाव दूंगी. मैं ख़ासकर बालिकाओं की सुरक्षा से जुड़े हुए सुझाव उन्हें दूंगी.”
रुड़की के बीएसएम पीजी कॉलेज में बीएससी एग्रीकल्चर की छात्रा सृष्टि के पिता गाँव में एक दुकान चलाते हैं और उनकी माँ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं. इन दोनों ने अपनी बेटी को मिले इस अवसर के लिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का आभार जताया है.
सृष्टि की माँ सुधा गोस्वामी ने कहा, “मुझे बहुत गर्व महसूस हो रहा है. बेटियाँ सब कुछ कर सकती हैं, बस उनका खुलकर साथ दीजिए, उन्हें सपोर्ट कीजिए. वे किसी से कम नहीं हैं. वे कोई भी मुक़ाम हासिल कर सकती हैं.”
पहल का स्वागत लेकिन सवाल भी बरक़रार
इधर, उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण और अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों और एक्टिविस्ट्स ने सृष्टि को प्रतीकात्मक तौर पर एक दिन का मुख्यमंत्री बनाने के क़दम का स्वागत तो किया है लेकिन उनके पास कुछ सवाल भी हैं.
कुमाऊँ विश्वविद्यालय के डीएसबी कैंपस में छात्रसंघ की पहली महिला महासचिव रहीं भारती जोशी कहती हैं, “प्रतीकात्मक तौर पर तो महिलाओं के सशक्तिकरण के ऐसे प्रयास अपनी जगह ज़रूरी हैं लेकिन वास्तविक जगहों पर महिलाओं का सशक्तिकरण ज़्यादा बड़ी चुनौती है. उत्तराखंड निर्माण के बाद पिछले 20 सालों में यहाँ 9 मुख्यमंत्री सत्ता पर क़ाबिज़ हो चुके हैं. कभी भी किसी महिला के नाम का मुख्यमंत्री पद के लिए ज़िक्र तक नहीं होता. जबकि असल में उत्तराखंड के पहाड़ों का असली भार महिलाओं के कंधों पर है.”
भारती कहती हैं, “आरक्षण के चलते, ग्राम पंचायतों से लेकर विधानसभाओं में जो कुछ महिलाएं राजनीति में आ पाई हैं, कई अध्ययन बताते हैं कि वे सिर्फ़ मुखौटा हैं. व्यवहार में असली ताक़त उन महिलाओं के पीछे उनके पति, पिता या पुरुष रिश्तेदारों के हाथों में ही रहती है. इसलिए प्रतीकों के बजाय असल ज़रूरत महिलाओं के वास्तविक सशक्तिकरण की है.”
उत्तराखंड में महिलाओं के स्वास्थय और अधिकारों पर काम कर रहे कई ग़ैर सरकारी संगठनों के साथ वरिष्ठ पदों पर काम कर चुकीं मालती हलदार कहती हैं, “इस तरह प्रतीकात्मक सशक्तिकरण का दिखावा करने के बजाय असल सवाल बहुत बुनियादी स्तर पर है जिन पर काम करने की ज़रूरत है. किसी परिवार में बेटे और बेटी को मिलने वाले दूध के गिलास के साइज़ का फ़र्क असल सवाल है. बेटे को अच्छे प्राइवेट स्कूल और बेटी को ख़स्ताहाल सरकारी स्कूल में भेजने की लोगों की आदत असल सवाल है. इन पर काम किए बग़ैर महिलाओं का सशक्तिकरण संभव नहीं.”
2001 में आई बॉलीवुड फ़िल्म ‘नायक’ की तर्ज़ पर असल ज़िंदगी में एक दिन की मुख्यमंत्री बनने जा रही 19 साल की सृष्टि गोस्वामी इसे लेकर उत्साहित हैं.
इससे पहले सृष्टि को मई 2018 में उत्तराखंड बाल विधान सभा का मुख्यमंत्री चुना गया था. उत्तराखंड में बाल विधानसभा गठन का कार्यक्रम बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से आयोजित किया जाता है जिसमें प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से कई छात्र भागीदारी करते हैं और अपनी विधानसभा का संचालन करते हैं.साभार- बीबीसी न्यूज़
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