- कभी कपड़े की दुकान पर काम किया तो कभी सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की, तमाम मुश्किलों के बावजूद हार नहीं मानी
आज कोलकाता के बिमल मजुमदार की कहानी। घर की गरीबी की चलते सिर्फ 16 साल की उम्र में गांव छोड़ उन्हें कोलकाता आना पड़ा। इसके बाद कई जगह छोटी-मोटी नौकरी की। लेकिन, मन में कुछ और था। सीखने की ललक इस कदर थी कि एक लेदर फैक्ट्री में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हुए उन्होंने छुप-छुपकर काम सीखा। आज उनकी खुद की लेदर प्रोडक्ट्स बनाने की कंपनी है, जिसका टर्नओवर करोड़ों में है।
दोस्त के कमरे पर रहे, मिठाई की दुकान में काम मिला
बिमल बताते हैं कि परिवार को सहारा देने के लिए 16 साल की उम्र में कोलकाता से लाकर गांव में चावल बेचना शुरू किया। इस काम में ज्यादा कमाई नहीं थी। काम के चलते पढ़ाई भी छूट गई थी तो पिता से भी अनबन हो गई। गुस्से में कोलकाता में अपने एक दोस्त के पास भाग आया। जब गांव से निकला था तो जेब में महज 37 रुपए ही थे।
बिमल दो हफ्ते तक दोस्त के कमरे पर ही रुके। फिर पास में ही एक मिठाई की दुकान में काम मिल गया। वहां सुबह 7 बजे से रात 12 बजे तक काम करते थे। वे बताते हैं, ‘एक फैक्ट्री की छत पर बोरियां बिछी रहती थीं, जहां सब काम करने वाले सोते थे। घर छोड़ने के बाद ऐसे हालात भी आएंगे, ये कभी सोचा नहीं था।’
कुछ दिनों बाद बिमल एक कपड़े की दुकान पर काम करने लगे। तीन साल वहीं काम किया। तभी एक दोस्त ने एक फैक्ट्री का एड्रेस दिया। यह दवाई बनाने की फैक्ट्री थी। वहां सिक्योरिटी गार्ड की जरूरत थी। बिमल वहां गार्ड की नौकरी करने लगे। वहां से कुछ दिनों बाद कंपनी ने उन्हें लेदर फैक्ट्री में ट्रांसफर कर दिया।
चोरी-छुपे सीखा लेदर का काम, छोटे-छोटे ऑर्डर लेना शुरू किया
बिमल लेदर फैक्ट्री में दिनभर की नौकरी के बाद रात में खुद कुछ सीखने की कोशिश करते थे। वे बताते हैं, ‘वहां जो मैनेजर थे, उनसे मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी। उन्होंने रात में मशीन वर्क करने की इजाजत दे दी। दिन में जो काम देखता था, रात में अकेले उसे करता था। कई बार गलतियां भी हुईं तो बहुत डांट भी पड़ी कि मशीन मत चलाया करो, लेकिन मैंने सीखना छोड़ा नहीं।’
इसी बीच पिता का देहांत हो गया तो बिमल गांव लौट गए। कुछ दिनों बाद एक दोस्त मुंबई ले गया, लेकिन वहां कुछ काम नहीं मिला। बिमल कहते हैं, ‘फिर कुछ दिनों बाद कोलकाता आया और उन्हीं पुराने दोस्तों से नौकरी के लिए संपर्क किया। एक लेदर गुड्स की कंपनी में काम मिल गया। पहले लेदर की दो कंपनियों में काम कर चुका था, अनुभव भी था। लेकिन, इस बार नौकरी के साथ ही खुद ही सीधे ऑर्डर लेना भी शुरू कर दिया।’
दुकानदार कहते थे, चोरी का माल होगा
बिमल बताते हैं, ‘मैं दुकानों पर लेदर पर्स के सैम्पल लेकर जाता था। जो ऑर्डर मिलते थे, उन्हें कारीगरों से तैयार करवाता था और फिर वो माल दुकान तक पहुंचाता था। इससे कमीशन मिल रहा था और ग्राहकों से भी जुड़ रहा था। कई बार लोगों ने भी बोला कि चोरी का प्रोडक्ट है, नहीं खरीदेंगे, लेकिन मैं अपना काम करता गया। दिन में नौकरी करता था। शाम को दुकानों पर ऑर्डर के लिए जाता था।’
एक ऑर्डर ने दी बिजनेस को रफ्तार
अभी 45 साल के हो रहे बिमल बताते हैं, ‘ऐसा महीनों तक चलता रहा। एक दिन मैं खादिम के शोरूम में पहुंच गया। वहां मालिक से ही सीधे बात हो गई। उन्होंने मेरी मेहनत और लगन देखते हुए मुझे दो लाख रुपए का ऑर्डर दिया। बोले, जैसे-जैसे प्रोडक्ट की डिलीवरी देते जाओगे, वैसे-वैसे पेमेंट करते जाएंगे। बस, इस ऑर्डर ने मेरी जिंदगी बदल दी।’
2012 में बिमल ने नौकरी छोड़कर खुद की कंपनी ‘लेदर जंक्शन’ बनाई। इसके बाद उन्होंने दो कंपनियां और भी बनाई हैं। पिछले साल उनका टर्नओवर करीब 3 करोड़ रुपए रहा था। अब बिमल के प्रोडक्ट्स ऑफलाइन के साथ ही ऑनलाइन भी अवेलेबल हैं। जूतों को छोड़कर वे लेदर का हर प्रोडक्ट ऑर्डर पर बनाते हैं।साभार-दैनिक भास्कर
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