गाजियाबाद,टेंडर समिति बनी नहीं, दिए जा रहे ठेके

गाजियाबाद। नगर निगम में टेंडर खोलने में भी मनमानी की जा रही है। तीन साल से नगर निगम के किसी भी विभाग में टेंडर समिति का गठन ही नहीं किया गया, जबकि नगर निगम अधिनियम की धारा-133 के अनुसार सभी विभागों में समिति होनी चाहिए। समितियों का गठन न होने से निगम अधिकारी खुद ही चहेती फर्मों को टेंडर दे देते हैं। समितियां न होने से निगम के विभागों में ठेकेदार और अफसरों की दोस्ती बढ़ रही है। बीते दिनों ही निगम अफसरों और ठेकेदारों की दोस्ती के फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे।

विभागों में टेंडर समितियों के गठन का अधिकार महापौर को होता है। पूर्व महापौर के कार्यकाल में सभी विभागों में टेंडर समिति बनाई गईं थीं। इन समितियों में निगम के विभागाध्यक्ष व अन्य अधिकारियों के साथ-साथ निगम पार्षद भी होते हैं। समिति के सदस्यों के सामने ही टेंडर खोले जाते हैं, ताकि पारदर्शिता बनी रहे। मौजूदा महापौर के कार्यकाल में टेंडर समितियों का गठन हुआ ही नहीं।

निर्माण विभाग, जलकल विभाग, उद्यान विभाग, प्रकाश विभाग के अलावा जलकल स्टोर में भी समितियों का गठन न होने से अफसर और स्टोर इंचार्ज ही टेंडर खोलते हैं और इन पर अंतिम निर्णय भी ले लेते हैं। निगम पार्षदों को पता नहीं होता कि किस टेंडर के लिए कितने ठेकेदारों ने निविदा डाली और उनकी दरें क्या थीं।

जिस ठेकेदार को चाहे कर दिया जाता है टेंडर से आउट
निगम पार्षदों का कहना है कि टेंडर समितियां न होने की वजह से अधिकारी मनमानी कर रहे हैं। जिस ठेकेदार को चाहे वह निविदा प्रक्रिया से बाहर कर देते हैं। उस ठेकेदार को बाहर करना होता है, उसके टेंडर को खोला ही नहीं जाता और होल्ड कर दिया जाता है। इसके बाद उसके टेंडर दस्तावेज में कमियां दिखाकर या तो बाहर कर दिया जाता है या री-टेंडर में डाल दिया जाता है।

अफसरों के आईडी-पासवर्ड से कंप्यूटर ऑपरेटर भी खोलते हैं टेंडर
नगर निगम में निविदा समितियां न होने की वजह से अफसरों पर निगरानी भी नहीं रखी जा रही है। निर्माण विभाग में अक्सर टेंडर खोलने के दिन अफसर गैरमौजूद रहते हैं और उनकी आईडी-पासवर्ड से कंप्यूटर ऑपरेटर ही टेंडर खोल देते हैं। उनके आसपास रसूखदार ठेकेदार बैठ जाते हैं। चर्चा है कि टेंडर प्रक्रिया में अफसरों की गैरमौजूदगी एक स्ट्रेटजी के तहत होती है, ताकि ठेकेदार आपस में सेटिंग कर टेंडर मैनेज कर सके।

भाजपा के पूर्व पार्षद ने मेयर को भेजा पत्र
भाजपा के पूर्व पार्षद व सदन के उपनेता रह चुके मुकेश त्यागी ने महापौर को पत्र भेज कर टेंडर समितियों का गठन न होने का मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि नगर निगम अधिनियम की धारा-133 के अनुसार निविदाएं पार्षदगणों की समिति के समक्ष खोली जानी चाहिए। समितियों का गठन 3 साल से न होने के बावजूद निविदाएं खोलीं जा रही हैं, यह गलत हैं।

उनका कहना है कि समितियों का गठन होने के बाद निगम के कामकाज में पारदर्शिता आएगी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। वहीं पार्षदों को भी दायित्वबोध होगा। उन्होंने शहर हित में टेंडर समितियों के गठन किए जाने की मांग की है।

नगर निगम में हर योजना में टेंडर समितियों का गठन हुआ है। इससे नगर निगम के कार्यों में पारदर्शिता आती है, फिर ऐसा क्या कारण है कि समितियों का गठन नहीं हो पा रहा है। नगर निगम अधिनियम के मुताबिक निगम के कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए जल्द से जल्द टेंडर समितियों का गठन किया जाना चाहिए। – हिमांशु मित्तल, भाजपा पार्षद-साभार-अमर उजाला

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