भोपाल में जिस मैदान को लेकर लगा कर्फ्यू, उसकी कहानी:जिस जमीन को RSS का बताया जा रहा, वो उसकी है ही नहीं

ये फोटो मैदान के पास स्थित एक घर की छत से लिया गया है। इसमें निर्माण कार्य होते हुए देखा जा सकता है।

  • रविवार सुबह से भोपाल के तीन थाना क्षेत्रों हनुमानगंज, टीला जमालपुरा और गौतम नगर में लगाया गया कर्फ्यू
  • हफ्तेभर पहले एसडीएम ने राजदेव जनसेवा न्यास को सौंपी जमीन, उपद्रव न हो इसलिए प्रशासन ने की सख्ती

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रविवार की सुबह एक मैसेज ऐसा सर्कुलेट हुआ, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया। इसमें लिखा था, …मैं अविनाश लवानिया, कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट, जिला भोपाल दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 144 के तहत प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए पुराने भोपाल शहर के थाना हनुमानगंज, टीलाजमालपुरा एवं गौतम नगर क्षेत्र में पूर्णत: बंद (कर्फ्यू) करते हुए निम्नानुसार प्रतिबंधात्मक आदेश जारी करता हूं..।

यह कलेक्टर का वो लेटर है, जो सुबह से शहर में वायरल हो रहा था।

कोई समझ नहीं पा रहा था कि, शहर में अचानक ऐसा क्या हो गया कि कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई। क्योंकि शनिवार रात तक तो सब कुछ ठीक था। किसी तरह के विवाद की खबर नहीं थी। सुबह 7 बजे से ही मैसेज सर्कुलेट होना शुरू हो गया था। कुछ ही घंटों में मैसेज पूरे शहर में फैल गया।

मीडियाकर्मी पुराने भोपाल की तरफ भाग रहे थे। मैं भी सुबह 11 बजे पुराने शहर में स्थित सिंधी कॉलोनी पहुंचा। क्योंकि कई मैसेज ऐसे भी सर्कुलेट हुए थे, जिनमें लिखा था कि, ‘सिंधी कॉलोनी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भवन के सामने स्थित मैदान पर निर्माण का काम हो रहा है, इसलिए कर्फ्यू लगा है।’

वहां पहुंचकर पता चला कि, पुराने भोपाल में आने वाले तीन थाना क्षेत्रों हनुमानगंज, टीला जमालपुर और गौतम नगर में कर्फ्यू लगा है। ये कर्फ्यू किसी विवाद या उपद्रव के चलते नहीं लगा। बल्कि एक बाउंड्री वॉल के चलते लगा है।

दरअसल, पुराने भोपाल में एक जगह है, जिसे सिंधी कॉलोनी कहा जाता है। यहीं पर 37 हजार वर्गफीट से ज्यादा एरिया में फैला एक मैदान है। इस मैदान के सामने RSS का भवन ‘केशव नीडम’ है, जो 35 साल से भी ज्यादा पुराना है। इसे संघ का भोपाल विभाग का पहला भवन कहा जाता है। भवन और मैदान आमने-सामने हैं, इसीलिए मीडिया में ये मैसेज वायरल हो गया कि जमीन संघ की है और वही निर्माण करवा रहा है। जबकि जमीनी हकीकत इससे अलग है।

किसकी है जमीन, क्या है विवाद?
जिस जमीन पर विवाद चल रहा था और राजदेव जनसेवा न्यास की है। पूरे मामले की तफ्तीश करने पर पता चला कि राजदेव जनसेवा न्यास ने 2001 में इस जमीन पर कम्युनिटी हॉल के लिए भूमिपूजन किया था।

तब वक्फ बोर्ड ने जमीन पर अपना दावा जताया था और प्रशासन में आपत्ति दर्ज की थी। इसके बाद भूमिपूजन कार्यक्रम से जुड़े 50 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि दो-तीन दिन बाद ही सभी को रिहा कर दिया गया था। उस वक्त सीनियर एडवोकेट उत्तमचंद इसराणी ने इस गिरफ्तारी को गलत बताया था और मानवाधिकार आयोग में इसके खिलाफ शिकायत भी कर दी थी।

आयोग ने इसराणी की दलीलों को सही पाया था और प्रशासन को निर्देश दिए थे कि जिन भी लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उन सभी को पांच-पांच हजार रुपए हर्जाने के तौर पर दिए जाएं। फिर सभी को यह हर्जाना मिला भी था।

इस विवाद के बाद मामला भोपाल के सिविल कोर्ट में पहुंच गया, जहां न्यास को जीत मिली थी। बाद में वक्फ की तरफ से दो लोगों शेख इस्माइल और इस्माइल (दोनों अलग-अलग लोग हैं) ने भी केस लड़ा। इन सभी का ये कहना था कि ये वक्फ की जमीन है, इसलिए इस पर हमें मालिकाना हक दिया जाए। लेकिन कोर्ट ने न्यास के पक्ष में फैसला सुनाया।

मैदान की तरफ जाने वाली सड़कों पर इस तरह बैरिकेड्स लगाकर आवाजाही रोक दी गई थी।

तो अभी ताजा विवाद क्या है?
कोर्ट का फैसला तो सात-आठ साल पहले आ गया था। 2019 में भी एक फैसला आया है, जो न्यास के पक्ष में ही है। अपने पक्ष में सभी फैसले आने के बाद न्यास ने SDM कार्यालय में आवेदन दिया था कि, जमीन पर उन्हें मालिकाना हक मिल गया है, इसलिए प्रशासन अपनी बंदिशें हटाए। हफ्तेभर पहले सिटी SDM जमीन खान ने न्यास को मालिकाना हक सौंप दिया। इसके बाद ही रविवार को न्यास ने उक्त जमीन पर बाउंड्रीवॉल का निर्माण का काम शुरू किया है।

फिर संघ को क्यों बीच में लाया जा रहा है?
RSS भवन के सामने की जमीन का मामला है, इसलिए इस पूरे मामले से RSS को जोड़ दिया गया। एक ओर वजह है, न्यास को RSS समर्थक बताया जाता है, हालांकि ये सिर्फ कहा जा रहा है।

इस पूरे मामले को देख रहे वरिष्ठ वकील बंसीलाल इसराणी ने बताया कि जमीन राजदेव जनसेवा न्यास की है। इसका RSS से कोई संबंध नहीं है।

मैंने पूछा कि लोग तो कह रहे हैं कि न्यास ने जमीन RSS को दान कर दी थी? इस पर उन्होंने कहा कि,न्यास किसी को जमीन दान कर ही नहीं सकता। पूरा मामला ही वक्फ बोर्ड और न्यास के बीच चला।

मप्र भाजपा के प्रदेश महामंत्री भगवान दास सबनानी ने कहा कि उक्त जमीन का RSS से कोई संबंध नहीं है। इस पूरे मामले से जुड़े बीजेपी के वरिष्ठ विधायक ने भी कहा कि, RSS का जमीन से कोई लेनादेना नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि, ‘आप मेरा नाम मत लिखिएगा, वरना फालतू में मामले का राजनीतिकरण हो जाएगा।’

ये कबाड़खाना इलाके का फोटो है। रविवार को दिनभर यहां सड़कें सुनसान रहीं। सुरक्षा जवान मुस्तैद रहे।

संघ का भवन यहां कैसे बना ?
दरअसल सिंधी कॉलोनी में ही रहने वाले राजदेव परिवार ने सालों पहले यहां एक कॉलोनी काटी थी, जिसे राजदेव कॉलोनी कहा जाता है। उन्होंने यह जमीन एक मुस्लिम व्यक्ति से ही खरीदी थी। जिस मुस्लिम व्यक्ति से जमीन खरीदी थी, उन्होंने रजिस्ट्री में ये भी लिखा था कि, ‘उक्त जमीन पर हमारे पूर्वजों की दो कब्रें हैं, उन्हें कोई नुकसान न पहुंचाया जाए।’

जब कॉलोनी के प्लॉट कटे थे, तब RSS ने भी यहां दो प्लॉट 81 और 82 नंबर खरीद थे। पहले RSS ने अस्थायी निर्माण किया था। 1990 के दशक में पक्की इमारत बनाई गई। संघ के कई वरिष्ठ नेताओं ने यहां सालों बिताए हैं। यहीं से नजदीक स्थित सिंधी स्कूल में संघ की शाखाएं लगा करती हैं।

मीडियाकर्मियों को भी विवादित स्थल के पास नहीं जाने दिया गया। कलेक्टर अविनाश लवानिया खुद मौके पर मौजूद रहे।

पूरे क्षेत्र में तनाव का माहौल, लोग यहां जमीन खरीदने से बचते हैं
सिंधी कॉलोनी और उसके आसपास जुड़े क्षेत्रों जैसे शांति नगर, राजदेव कॉलोनी, कबाड़खाना, काजी कैंप, भोपाल टॉकीज जैसे क्षेत्रों में रविवार सुबह से ही काफी तनाव रहा। शांति नगर के रहवासियों ने बताया कि रात में पुलिस की गाड़ी आई थी लेकिन सुबह कर्फ्यू लगने वाला है, ये किसी को नहीं पता था।

जिस मैदान पर निर्माण कार्य हो रहा है, उसके नजदीक ही रहने वाले एक शख्स ने बताया कि हफ्तेभर पहले से ही मैदान पर पुलिस का तंबू लग गया था। सभी को पता था कि, अब कब्जा लेने की प्रक्रिया शुरू होने वाली है।

शांति नगर में प्रॉपर्टी का काम करने वाले एक बिल्डर ने बताया कि इस क्षेत्र में जमीन को लेकर बहुत विवाद है। यहां लोग जमीन खरीदने से बचते हैं, क्योंकि जिस भी जमीन को खरीदा जाता है, उस पर विवाद शुरू हो जाता है। कोई न कोई कब्जे का दावा कर देता है और फिर सालों मामला कोर्ट में चलता रहता है। यदि मामला कोर्ट में नहीं जाता तो पैसों की डिमांड की जाती है। इसलिए यहां लोग जमीनों का सौदा करने से बचते हैं।साभार-दैनिक भास्कर

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