अनिल खेरा गुजरात के केशोद के रहने वाले हैं। वे सिर्फ पशु-पक्षियों की सेवा ही नहीं, बल्कि फुटपाथ पर रहने वाले गरीब लोगों के लिए खाना, चादर और गर्म कपड़ों का इंतजाम करते हैं।
- गुजरात के अनिल खेरा कहते हैं कि जब हम बाहर होते हैं तो इसकी जिम्मेदारी किसी और को सौंपकर जाते हैं
- 20 साल से वे लगातार इस काम को करते आ रहे हैं, उनका परिवार भी हर कदम पर उनका साथ देता है
आज की पॉजीटिव खबर में हम बात कर रहे हैं गुजरात के केशोद के रहने वाले अनिल खेरा की, जिनकी पशु-पक्षियों की सेवा के किस्से दूर-दूर तक मशहूर हैं। पेशे से ज्वैलर अनिल कितना भी बिजी क्यों न हों, लेकिन वे रोज दो घंटे का वक्त पशु-पक्षियों के लिए रिजर्व रखते हैं। इसके लिए वे रोजाना 5 किमी का सफर तय कर इनके लिए खाने-पीने का इंतजाम करते हैं। अनिल पिछले 20 साल से लगातार इस काम को करते आ रहे हैं। इस पर अब तक वे 50 से 60 लाख रुपए भी खर्च कर चुके हैं।
कुत्तों को बिस्किट और बिल्लियों को गांठिए खिलाते हैं
अनिल पेड़ों की टहनियों में भुट्टे फंसा देते हैं, ताकि पक्षी आराम से खा सकें। वे कहते हैं, “इसे जमीन पर फेंक दूं, तो पक्षियों के लिए डर बना रहेगा कि कहीं कुत्ते या बिल्ली उनका शिकार न कर लें। इसलिए मैं जमीन पर चना डालने के बजाय पेड़ों पर मकई लटका देता हूं।”
इसके अलावा वे गाय और दूसरे पशुओं के लिए हरी सब्जियां और चारे का भी इंतजाम करते हैं। इतना ही नहीं, वे कुत्तों के लिए बिस्किट और बिल्लियों को लिए गांठिए भी अपने साथ लाते हैं।
पेड़ों पर लटकाते हैं मटकियां
अनिल कहते हैं, “मैंने एक रूटीन बना रखा है और जगह भी तय कर रखी है। रेलवे स्टेशन, भारत मिल, चौक शंकर मंदिर, पुलिस क्वार्टर, सरकारी दवाखाना, सरकारी गेस्ट हाउस, PWD, चांदीगढ़ पाटिया जैसी जगहों पर मैं जाता हूं। जहां खाना-दाना रखने के अलावा पेड़ों पर पानी से भरी मटकियां भी टांगता हूं। यहां बड़ी संख्या में पक्षी आते हैं।”
भूखे लोगों का भी पेट भरते हैं
अनिल की यह सेवा सिर्फ पशु-पक्षियों तक ही सीमित नहीं, बल्कि वे भूखे-प्यासे लोगों की मदद करने से भी पीछे नहीं हटते। ठंड के दिनों में वे घूम-घूमकर फुटपाथ पर सोने वाले लोगों के लिए चादर और गर्म कपड़ों का इंतजाम करते हैं। उनके खाने की व्यवस्था भी करते हैं। इस तरह किसी न किसी तरह की मदद के रूप में वे रोजाना के एक हजार रुपए खर्च करते हैं।
मवेशियों के लिए खेत किराए पर लेते हैं
वे बताते हैं कि कभी-कभी मैं सड़क पर घूमने वाले मवेशियों के लिए एक खेत किराए पर लेता हूं। इस खेत में हम गाजर, शर्बत या मक्का उगाते हैं और गायों को खिलाते हैं। यदि चारे की तत्काल जरूरत है, तो हम सीधे खेत से हरा चारा खरीद सकते हैं।
परिवार भी करता है मदद
अनिल बताते हैं कि उनका इन जीवों से गहरा नाता जुड़ चुका है। पक्षी भी उन्हें देखकर भागते नहीं हैं, बल्कि उनकी राह ताकते हैं। वे रात को ही इनके लिए दाना और पशुओं के लिए चारे का इंतजाम कर लेते हैं।
उन्होंने बताया कि इस काम में उनकी पत्नी, बेटा और बहू भी मदद करते हैं। कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि इन्हें भूखे छोड़ना पड़ा हो। “जब हम शहर से बाहर होते हैं, तो इसकी जिम्मेदारी किसी न किसी व्यक्ति को सौंपकर ही जाते हैं।”साभार-दैनिक भास्कर
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