बिहार के हाजीपुर के रहने वाले रोहित सिंह तरबूज, केला और सब्जियों की नई तकनीक से खेती करते हैं।
बिहार के हाजीपुर के रहने वाले रोहित सिंह की पढ़ाई हिमाचल प्रदेश के एक सैनिक स्कूल से हुई। पिता चाहते थे कि वह आर्मी ऑफिसर बनें, लेकिन रोहित के मन में कुछ और ही था। वह जॉब सीकर के बजाय जॉब गिवर बनना चाहते थे। चार साल पहले वो गांव लौट आए और खेती शुरू कर दी। आज वो तरबूज, खीरा, केला और कई सब्जियों की खेती कर रहे हैं। एक सीजन में उनकी कमाई 40 लाख रुपए से ज्यादा है।
26 साल के रोहित बताते हैं कि सैनिक स्कूल में पढ़ाई के दौरान मुझे बिहार के लोगों के पलायन को लेकर मन में सवाल उठ रहे थे। मैं अक्सर सोचता था कि एक नौकरी के लिए लोग अपना घर परिवार छोड़कर मुश्किलों में रहते हैं। लोग खेती को लेकर निराश हो गए थे। मुझे इस धारणा को बदलना था।
वो बताते हैं, ‘2015 में 12वीं के बाद मैं गांव लौट आया। घर के लोगों ने तब विरोध भी किया। लेकिन, मैंने तय कर लिया था कि खेती को सिर्फ जीविका का जरिया नहीं, बल्कि बिजनेस मॉडल बनाना है। वो कहते हैं कि मेरे पास पर्याप्त जमीन थी। खेती का बैकग्राउंड भी था। पिता जी खेती ही करते थे। मैंने पारंपरिक खेती के बजाय नई तकनीक से कमर्शियल खेती करने का फैसला किया। मैंने तरबूज, केला, संतरा, अनार और सब्जियों की खेती शुरू की। सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन तकनीक अपनाई।’
रोहित अभी 100 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। बिहार के साथ-साथ दूसरे राज्यों में भी वो अपना प्रोडक्ट सप्लाई करते हैं। अभी उन्होंने बांग्लादेश में भी अपने उत्पाद भेजने शुरू कर दिए हैं। 200 से ज्यादा किसान उनके साथ जुड़े हैं। 100 लोग तो उनके साथ काम करते हैं। वो अक्सर ट्रेनिंग कैंप लगाकर लोगों को ट्रेनिंग देते रहते हैं।
आगे रोहित एग्रो क्लिनिक शुरू करने जा रहे हैं। जिसमें वो किसानों को खेती की ट्रेनिंग के साथ साथ उनके फसलों की देखभाल और रख-रखाव के बारे में जानकारी देंगे। इसके लिए वो एक्सपर्ट भी हायर करेंगे, जो किसानों की फसलों का ट्रीटमेंट कर सकें।
क्या है ड्रिप इरिगेशन
यह इजरायल की मशहूर तकनीक है। इससे पानी और खाद दोनों की बचत होती है। इसमें पानी बूंद-बूंद गिरता है और फसल की जड़ में जाता है। इसमें मैन फोर्स की भी बचत होती है। अभी देश के कई हिस्सों में इस विधि से सिंचाई की जा रही है। इससे फसलों में नमी बनी रहती है।
तरबूज की खेती जनवरी-फरवरी महीने में शुरू होती है। इसकी खेती के लिए 10 से 12 फीट की दूरी पर नाली बनाई जाती है। नालों की दोनों सतहों पर करीब एक फीट की दूरी पर बीज बोया जाता है। ज्यादातर किसान मल्चिंग का इस्तेमाल करते हैं, जिससे नमी बनी रहती है। अच्छी उपज के लिए जमीन में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिलाना चाहिए। इसके साथ ही खरपतवार और कीटाणुओं से भी फसल को बचाना होता है। एक एकड़ में करीब 25000 रुपए की लागत आती है। अगर अच्छा उत्पादन हो जाए तो एक लाख रुपए तक की कमाई हो सकती है।
रोहित बताते हैं, ‘किसानों को कमर्शियल खेती करनी चाहिए। तभी वो मुनाफा कमा सकते हैं। जरूरी नहीं कि वो तरबूज या फलों की ही खेती करें, लेकिन जो भी फसल वो लगाएं, उस लोकेशन के हिसाब से होनी चाहिए। हमें यह भी देखना चाहिए कि किस मौसम में किस प्रोडक्ट की डिमांड होती है। उसी हिसाब से फसल का चयन होना चाहिए। जो लोग खेती में आना चाहते हैं, उन्हें शुरुआत छोटे लेवल पर करनी चाहिए और फिर धीरे-धीरे दायरा बढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही हमें अपने उत्पाद की प्रोसेसिंग को लेकर भी काम करना चाहिए।’
वो कहते हैं कि मार्केटिंग के लिए सोशल मीडिया की मदद ली जा सकती है। इसके साथ ही शुरुआत में मंडियों में जाकर भी अपने उत्पाद बेच सकते हैं। अगर आपका प्रोडक्ट बेहतर होगा तो वह लोगों के बीच धीरे-धीरे ही सही लेकिन पहचान बनती जाती है।साभार-दैनिक भास्कर
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