12 दिसंबर को भोपाल के इंदिरा कॉलोनी के रहने वाले दीपक मरावी ने कोरोना वैक्सीन ट्रायल की पहली डोज लगवाई थी। 9 दिन बाद उनकी मौत हो गई। दीपक की पत्नी वैजयंती।
- दीपक की पत्नी कहती हैं कि अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट सही है तो इसे देने में इतनी देर क्यों की गई, हमें 12 दिन तक यहां-वहां क्यों दौड़ाते रहे
- वो कहती हैं कि अगर मौत वैक्सीन से नहीं हुई तो वो इंजेक्शन लगवाने के बाद से ही बीमार कैसे पड़ गए उन्होंने चलना फिरना क्यों छोड़ दिया
भोपाल की इंदिरा कॉलोनी। संकरी गलियों से होते हुए हम एक घर पहुंचे या यह कहिए कि एक छोटे से कमरे में दाखिल हुए। दरवाजे पर 12-13 साल का एक लड़का गुमसुम खड़ा है। अंदर सामान बिखरा पड़ा है। मीडिया वाले माइक कैमरा लगा रहे हैं। एक छोटी सी चारपाई पर 40 साल की वैजयंती बैठी हैं। हाथ में उनके पति दीपक मरावी की तस्वीर है। जो अब दुनिया में नहीं हैं। दीपक 12 दिसंबर को कोवैक्सीन के ट्रायल में शामिल हुए थे, 21 दिसंबर को उनकी मौत हो गई।
वैक्सीन लगवाने के बदले 750 रुपए मिलने थे
पति की मौत के बाद दीपक की पत्नी वैजयंती भी कुछ दिनों से बीमार हैं। कहती हैं, ‘मना किया था कि वैक्सीन मत लगवाओ, खतरा है। लेकिन वो माने नहीं। अब तो हमारी दुनिया ही लुट गई, पता नहीं कैसे परिवार चलेगा।’ दीपक वैक्सीन ट्रायल में गए कैसे? इस सवाल पर वे बताती हैं कि जिस टीले पर वे मजदूरी करने जाते थे, वहां किसी ने बताया कि कोवैक्सीन लगवा लो 750 रुपये मिलेंगे। वो तो घर में सबको लगवाने की बात कर रहे थे। लेकिन मैंने मना कर दिया था।
पत्नी का कहना- वैक्सीन लगने के बाद बिगड़ी तबीयत
बातचीत के दौरान वैजयंती की आंखें लगातार डबडबाई रहती हैं। आंखें पोंछकर खुद को संभालते हुए कहती हैं कि जब वो इंजेक्शन लगवा कर आए तो किसी को घर में नहीं बताया। उनके पास कोई कागज-वागज भी नहीं था। जब उनके हाथ में दर्द होने लगा तो छोटे बेटे को बताया कि उन्होंने इंजेक्शन लगवाया है, तुम मम्मी को ये बात नहीं बताना।
वैजयंती के मुताबिक, वैक्सीन लगवाने के अगले दिन से ही उनकी तबीयत खराब रहने लगी। दो तीन दिन बाद उन्होंने खाना-पीना कम कर दिया। कमजोरी भी रहने लगी। वो काम पर भी नहीं जाते थे। अगले दिन उल्टियां भी होने लगी। हमने कहा कि दवा ले लो, डॉक्टर से दिखा लो। लेकिन वो माने ही नहीं, हमें ही डांटने लगते थे। 20 दिसंबर को तबीयत ज्यादा बिगड़ गई, खाना भी छोड़ दिया। मुहं से झाग भी निकलने लगा। और 21 की दोपहर वो हमें छोड़कर चले गए।
‘वो पागल थे जो जहर खाएंगे’
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दीपक के शरीर में जहर मिला है। इस बात पर वैजयंती झुंझलाते हुए कहती है,’ वे पागल थे क्या कि जहर खाएंगे। जहर खाते तो हमें पता नहीं चलता क्या। अगर मौत वैक्सीन से नहीं हुई तो वो इंजेक्शन लगवाने के बाद से ही बीमार कैसे पड़ गए। उन्होंने चलना फिरना क्यों छोड़ दिया। उल्टियां क्यों करने लगे, उनके मुहं से झाग क्यों निकलने लगा।’ वैजयंती सवाल उठाती हैं कि अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट सही है तो इसे देने में इतनी देर क्यों की गई।
हमें 12 दिन तक यहां-वहां क्यों दौड़ाते रहे। देखो जी, हम गरीब हैं, अनपढ़ हैं। जिसके पास पावर और पैसा है वो कुछ भी लिख सकता है रिपोर्ट में। हम कैसे मानें। भगवान भी उतर कर आएं तो भी मैं जहर खाने की बात नहीं मानूंगी। एक फोटो दिखाते हुए वो कहती हैं, ‘ये तस्वीर देखिए। एक महीना पहले की ही है। कहीं से लगता है क्या कि इन्हें कोई दिक्कत थी। बाहर किसी से भी पूछ लीजिए। वो तो कभी बीमार पड़ते ही नहीं थे। और हम खुशी से जी रहे थे। भला टेंशन क्या होगी।
भोपाल के इंदिरा कॉलोनी में रहने वाले दीपक दिहाड़ी मजदूर थे। वो एक किराए का कमरा लेकर रहते थे।
परिवार लॉकडाउन से मकान का किराया नहीं दे पाया है
दीपक के पड़ोसी भुवनेश कहते हैं कि देखने से तो वो ठीक ही था। कहीं कोई दिक्कत नहीं थी। मजदूरी करता था और घर चलाता था। उसकी मौत वैक्सीन से हुई या किसी और वजह से यह तो मैं नहीं कह सकता। लेकिन मुझे नहीं लगता कि उसने जहर खाया होगा या उसे कोई बीमारी थी। सरकार से मदद के सवाल पर वैजयंती कहती हैं, ‘किसी ने हमारी मदद नहीं की। कोई मिलने भी नहीं आया। मीडिया में खबर आने के बाद इन लोगों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट दी।’ वैजयंती कहती हैं कि कर्ज लेकर पति का क्रिया-कर्म किया है। लॉकडाउन के टाइम से ही किराया बाकी है। समझ नहीं आ रहा कैसे सब चुकाऊंगी।
दो दिन पहले मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी वैजयंती के घर आए थे। उन्होंने 25 हजार रुपए परिवार को दिए हैं। एसडीएम ने भी 25 हजार रुपए का चेक दिया है। परिवार की मांग है कि उन्हें आर्थिक मदद की जाए। रहने के लिए घर और एक बेटे को नौकरी दी जाए।
मौत से वैक्सीन का कोई संबंध नहीं: भारत बायोटेक
दीपक की मौत को लेकर उठ रहे सवालों के बीच वैक्सीन तैयार करने वाली भारत बायोटेक ने कहा है कि उनकी मौत का कोवैक्सीन से कोई संबंध नहीं है। वहीं अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि 12 दिसंबर को प्रोटोकाल के साथ उन्हें पहली डोज दी गई थी। 7 दिन तक उनके हेल्थ की जानकारी ली जाती रही, जिसमें उन्होंने तकलीफ नहीं बताई थी।
हालांकि, परिवार का साफ कहना है कि उनके पास न तो कोई फोन आया और न ही कोई हाल जानने घर आया। दीपक के बेटे सूरज तो यहां तक कहते हैं कि 8 जनवरी को दूसरी डोज लगाने के लिए अस्पताल वालों ने कॉल किया था।
अब सवाल यह है कि दीपक की मौत के 18 दिन बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने दूसरे डोज वाले वॉलंटियर्स की लिस्ट से उनका नाम क्यों नहीं हटाया था? जब डॉक्टर्स लगातार दीपक का हेल्थ अपडेट ले रहे थे तो बीमार होने के बाद (जैसा कि परिवार का दावा है) वो उनके घर क्यों नहीं आए? मौत की जांच को लेकर बनी कमेटी ने महज तीन घंटे में ही अस्पताल प्रबंधन को क्लीन चिट कैसे दे दी?
इसको लेकर उनके परिजनों से बात करने की जरूरत क्यों नहीं समझी? वॉलंटियर्स को साफ-साफ क्यों नहीं बताया जा रहा कि ये वैक्सीन नहीं है, बल्कि ट्रायल है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका साफ-साफ जवाब मिलना अभी बाकी है।साभार-दैनिक भास्कर
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