सरकारी विभागों का बुरा हाल, समिति की भी नहीं चलती है जांच में
गाजियाबाद। महिला उत्पीड़न के मामलों में सरकारी विभाग भी पीछे नहीं हैं। साल दर साल शिकायतों का अंबार कार्यालयों में लगा रहता है लेकिन सुनवाई नहीं की जाती। जांच के नाम पर भी महिलाओं की आवाज को दबा दिया जाता है। ऐसे में कार्यालयों में बनने वाली आंतरिक परिवाद समिति में अधिकारियों का दखल उजागर होता है। कुछ मामले हाल ही में हुए हैं, जिनमें महिला कर्मियों को इंसाफ के लिए इंतजार ही करना पड़ा है।
कुछ मामलों में उत्पीड़न की आवाज उठाने पर महिला कर्मियों को ही सजा भी भुगतनी पड़ी है। सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में महिला उत्पीड़न रोकने के लिए बनने वाली आंतरिक परिवाद समिति में सुनवाई न होने का साबसे बड़ा कारण ही बाहरी एनजीओ से किसी सदस्य को शामिल नहीं किया जाना है। कई कार्यालय ऐसे भी हैं, जो महिला एनजीओ के नियम से वाकिफ नहीं हैं। नियमानुसार महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य करने वाली एनजीओ की सदस्य को समिति में सदस्य के तौर पर शामिल किया जाना है। एनजीओ न होने से समिति में अधिकारियों का पूरा दखल होता है और महिला कर्मियों की आवाज दब जाती है।
केस-1
पिछले साल एक सरकारी विभाग में महिला कर्मचारी पर चर्तुथ श्रेणी के कर्मचारी ने जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने की शिकायत की। इस मामले में महिला ने भी उच्च अधिकारियों को अपनी आपबीती बताई। दोनों की शिकायतों पर जांच उच्च अधिकारियों पर पहुंची। सूत्रों का कहना है कि महिला कार्यालय में होने वाले शोषण से परेशान थी और उसकी शिकायत करने पर ही उसके खिलाफ जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल किए जाने की शिकायत हुई। सूत्र ये भी बताते हैं कि इस मामले में आज तक जांच पूरी नहीं हो सकी है और ना ही आरोपी कर्मचारी पर एक्शन लिया गया।
केस-2
हाल ही में एक वायरल वीडियो पर जमकर विवाद हुआ। महिला कर्मी के साथ की जाने वाली बदसलूकी भी इसमें उजागर हुई। विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक महिला और अधिकारी के बीच का विवाद काफी पहले का है। जिसमें महिला की शिकायत पर उसकी सुनवाई तक नहीं होती है। इस मामले में शिकायतकर्ता पर भी आरोप लगाए जाते हैं और नोडल विभाग भी शिकायत करने वाली महिला के खिलाफ सीजेएम कोर्ट में बयान देता है। इस मामले में भी शिकायत करने वाली महिला का ट्रांसफर किए जाने की संस्तुति किए जाने की चर्चा है।
क्या कहते हैं कर्मचारी संगठन : ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। यह हकीकत है कि महिला शिकायतकर्ताओं की आवाज को दबा दिया जाता है। कई मामलों में संगठन ने भी मदद की कोशिश की है और पीड़ित महिला कर्मचारियों की सुनवाई कराई गई है। आने वाले समय में संगठन ऐसे मामलों की रोकथाम को लेकर बैठक में कठोर निर्णय लेगा।साभार-अमर उजाला
देवब्रत चौधरी, जिलाध्यक्ष राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद, शाखा गाजियाबाद
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