गाजियाबाद। स्वर्णजयंतीपुरम भूखंड आवंटन घोटाले में की जांच को पूरा हुए डेढ़ साल बीत चुका है। मामले में आरोपी प्राधिकरण के 36 अधिकारियों और कर्मियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जीडीए ने 2019 में भूखंड आवंटन घोटाले में दोषियों के आरोप पत्रों की ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार कर शासन को भेज दी थी। जीडीए ने आरोप पत्र तैयार करने से पहले सभी अधिकारियों व कर्मियों से उनका जवाब भी लिया था। इसके बावजूद मामला शासन के गलियारों में खो गया है।
जीडीए ने 1993 से 2003 के बीच स्वर्णजयंतीपुरम आवासीय योजना के तहत 1583 भूखंडों की 10 से ज्यादा योजनाओं को लांच किया था। आवंटन के बाद निर्धारित राशि जमा न करने या फिर भूखंड सरेंडर करने के कारण कई लोगों के आवंटन निरस्त कर दिए गए। निरस्त हुए 139 भूखंडों को नियमों को ताक पर रखकर फरवरी 2005 से फरवरी 2007 के बीच फिर से आवंटित कर दिया गया।
मामले की शिकायत भाजपा पार्षद राजेंद्र त्यागी ने पहले मेरठ मंडलायुक्त से की। फिर कोई कार्रवाई न होने पर उन्होंने 2011 में हाईकोर्ट में सरकार से मामले में हुए बड़े राजस्व के नुकसान की बात कहकर पीआईएल दायर की। पीआईएल पर जुलाई 2017 में सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 137 भूखंडों के मामले में जीडीए के आरोपी अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर और जांच के आदेश दिए। फिर मुरादाबाद मंडलायुक्त ने लंबी जांच कर रिपोर्ट शासन को सौंप दी।
शासन ने जीडीए से मामले में शामिल अधिकारियों का लिखित पक्ष देने को कहा। जीडीए की ओर से मांगे गए जबाव में गिने-चुने अधिकारियों व कर्मियों ने ही अपना पक्ष रखा। मामले में सभी आरोपी अधिकारियों व कर्मियों के जवाब लेने के बाद विस्तृत आरोप पत्र के साथ विस्तृत रिपोर्ट शासन को भेज दी गई। करीब डेढ़ साल का समय बीतने के बावजूद मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है। शासन के पाले में मामला होने के चलते कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है।साभार-अमर उजाला
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