गाजियाबाद। मुरादनगर में श्मशान घाट का गलियारा ढहने से हुई 24 मौत के बाद जांच टीम ने गुणवत्ता की गहनता से जांच की। जांच में टीम को भ्रष्टाचार के कई सुबूत मिले। गलियारे के पिलर्स के बीच की दूरी मानकों से बहुत ज्यादा थी। इसका डिजाइन भी नहीं बनवाया गया था। लिंटर के वजन के हिसाब से पिलर कमजोर थे। गलियारे के साइज के हिसाब से 18 पिलर होने चाहिए थे, लेकिन उसमें सिर्फ 12 पिलर बनाए गए थे।
टीम निर्माण सामग्री की आईआईटी रुड़की से जांच कराने की सिफारिश कर सकती है। निर्माण सामग्री को लैब भेजा जाएगा। जांच टीम शुक्रवार को रिपोर्ट डीएम को सौंप सकती है। हादसे के बाद डीएम अजय शंकर पांडेय ने जीडीए के चीफ इंजीनियर वीएन सिंह, निर्माण निगम के महाप्रबंधक छेदी लाल और नगर निगम के चीफ इंजीनियर मोइनुद्दीन को शामिल कर तीन सदस्यीय जांच टीम बनाई थी।
टीम ने दो दिन तक मुरादनगर स्थित श्मशान घाट परिसर में निर्माण सामग्री की गुणवत्ता, गलियारे में पिलर्स की लंबाई-चौड़ाई, पिलर्स की संख्या, दूरी और उनकी मोटाई समेत तमाम बिंदुओं पर पड़ताल की। खामियां मिलने पर जांच टीम ने इस परिसर में बने अन्य निर्माण को भी असुरक्षित घोषित कर सील करा दिया था। बृहस्पतिवार को टीम में शामिल अधिकारी जांच को लेकर कुछ भी बोलने से बचते रहे।
तीन मीटर दूरी पर होने चाहिए थे पिलर
निर्माण के नियमों के मुताबिक, ऐसे किसी भी सिविल स्ट्रक्चर में करीब ढाई से तीन मीटर की दूरी पर पिलर होने चाहिए। लिंटर के वजन के हिसाब से ही पिलर्स की मोटाई भी तय की जाती है। मुरादनगर श्मशान घाट के गलियारे में पिलर्स की दूरी करीब 5 से 6 मीटर के बीच थी। 70 फीट की लंबाई में दोनों साइड में 18 पिलर्स होने चाहिए थे, जबकि मौके पर सिर्फ 12 पिलर्स थे। इन पिलर्स की मोटाई भी करीब 9 इंच मिली है, जो बेहद कम हैं।
डिजाइन बनाने के लिए अधिकृत नहीं होते जेई
रिटायर्ड सिविल इंजीनियर अजय कुमार अग्रवाल के मुताबिक निर्माण कार्यों के डिजाइन बनाने के लिए जेई अधिकृत नहीं होते। कम से कम सहायक अभियंता या किसी एक्सपर्ट एजेंसी से डिजाइन बनवाकर पास कराया जाना चाहिए। जेई की योग्यता सिर्फ इतनी होती है कि वह डिजाइन के अनुरूप काम होने या न होने का सुपरविजन कर सके। अधिकांश नगर पालिकाओं में सिर्फ जेई पर ही निर्माण कराने की जिम्मेदारी होती है। ऐसे में यहां निर्माण की गुणवत्ता को लेकर ज्यादा दिक्कतें रहती हैं।साभार-अमर उजाला
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