21 दिसंबर को बृहस्पति और शनि ग्रहों के बीच की कोणीय दूरी लगभग 0.06 डिग्री रह जाएगी। ये दोनों ग्रह इतने करीब में आ जाएंगे कि एक-दूसरे में मिलते हुए दिखाई देंगे। यानी साल की सबसे लम्बी रात को आसमान में गुरु-शनि का मिलन होगा।
लखनऊ, जेएनएन। वर्ष 2020 में दिसंबर का महीना खगोल प्रेमियों के लिए बहुत ही खास है। शाम जल्दी होती है और शाम ढलते ही पश्चिम दिशा बृहस्पति और शनि ग्रहों के करीब में आने के नजारों का खगोल प्रेमी दिल से लुत्फ उठा रहे हैं। इसी क्रम में 21 दिसंबर को बृहस्पति और शनि ग्रहों के बीच की कोणीय दूरी लगभग 0.06 डिग्री रह जाएगी। ये दोनों ग्रह इतने करीब में आ जाएंगे कि एक-दूसरे में मिलते हुए दिखाई देंगे। यानी साल की सबसे लम्बी रात को आसमान में गुरु-शनि का मिलन होगा। सामान्य एस्ट्रोनॉमी सॉफ्टवेयर्स इन्हे एक ओक्युल्टेशन (तारा प्रच्छादन) की घटना के रूप में दिखा रहे हैं।
बृहस्पति व शनि ग्रह के मिलन की अद्भुत खगोलीय घटना लगभग 400 वर्षों बाद देखने को मिलेगी। इससे पहले 1923 में ये दोनों ग्रह इतने करीब में आये थे। अब 15 मार्च, 2080 की रात को बृहस्पति और शनि को इतने करीब से देखा जा सकेगा। वर्ष 2020 में न जाने कितने ऐसे घटनाये हुई हैं, जो की मानव सभ्यता के लिए अनजान, अप्रत्याशित और एक दम नई थी। इस क्रम में यह खगोलीय घटना होने जा रही है। बृहस्पति और शनि ग्रह का मिलन 21 दिसंबर को होने जा रहा है। बृहस्पति और शनि गृह के मिलन को हम दूरबीन से देख सकते हैं। अगर दूरबीन नहीं है तो आप इस घटना को बिना दूरबीन के भी देख सकते हैं।
अब 2080 का करना होगा इंतजार : बृहस्पति ग्रह सूर्य की एक रोटेशन 11.86 साल में पूरा करता है। सूर्य की एक रोटेशन को पूरा करने में शनि को 29.5 साल लगते हैं। हर 19.6 साल में ये दोनों ग्रह आसमान में एक दूसरे के करीब आते नजर आते हैं । सौरमंडल के दो सबसे बड़े ग्रहों के करीब आने की इस स्थिति को महान संयोजन या दि ग्रेट कन्जंक्शन कहा जाता है। इससे पूर्व इस तरह का मिलन वर्ष 2000 में हुआ था, लेकिन उस समय उसकी स्थिति दिन के समय थी। इसलिए हम उस घटना को नहीं देख पाए। अगला कन्जंक्शन 5 नवंबर, 2040 को और 10 अप्रैल, 2060 को होगा, लेकिन इस वर्ष की भांति ग्रेट कन्जंक्शन को देखने के लिए हमें 15 मार्च, 2080 का इंतजार करना होगा।
शाम को देखी जा सकती है ग्रहों की जोड़ी : इन दिनों पश्चिम दिशा में बृहस्पति और शनि स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। इन दोनों ग्रहों की जोड़ी सूर्यास्त के बाद पश्चिम में प्रकट होती है। इसमें सबसे चमकता ग्रह बृहस्पति है और फिर दूसरा चमकता ग्रह शनि है। शाम साढ़े सात बजे तक ये दोनों ग्रह अस्त हो जाते हैं। 21 दिसंबर तक वे दोनों ग्रह एक दूसरे के बहुत करीब होंगे। उसके बाद ये पुनः एक दूसरे से दूर होना शुरू हो जाएंगे।
ऐसे देख सकते हैं इन ग्रहों को : यदि आप 21 दिसंबर को इस घटना को अच्छी तरह से देखना चाहते हैं, तो चंद्रमा की तरफ मुंह कर के खड़े हो जाएं। इस दौरान चंद्रमा ठीक दक्षिण में होगा। चंद्रमा के दाहिनी तरफ के आसमान में दोनों ग्रह अपनी छटा बिखेरते नजर आएंगे। चूंकि यह घटना पश्चिमी आकाश में प्रकट होने वाली है, इसलिए अगर आप शहर या गांव के पश्चिमी इलाके से बाहर जाएं जहां प्रकाश प्रदूषण न मिले और आसमान बिल्कुल साफ रहे तो ये दोनों ग्रह भी क्षितिज पर दिखाई देंगे।
इसलिए भी खास है यह दिन : 21 दिसंबर का दिन इसलिए भी काफी खास है क्योंकि इस दिन उत्तरी गोलार्द्ध के लिए साल का सबसे छोटा दिन होता है और सबसे लंबी रात। इसके बाद से दिन की लंबाई के साथ-साथ ठंड भी बढ़ने लगेगी। इसे इंग्लिश में विंटर सोल्सटिस और हिंदी में दिसंबर दक्षिणायन कहा जाता है। तकनीकी रूप से विंटर सोल्सटिस उस समय होता है जब सूर्य सीधे मकर रेखा के ऊपर होता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर साढे 23 डिग्री झुकी हुई है। इसी कारण साल के आधे समय तक सूर्य उत्तरी ध्रुव की ओर झुका होता है तो बाकी आधे सालों में दक्षिण ध्रुव की ओर।
संक्रांति से भी विंटर सोल्सटिस का संबंध : विंटर सोल्सटिस के दौरान दक्षिणी गोलार्द्ध को सूर्य का प्रकाश ज्यादा प्राप्त होता है, जबकि उत्तरी गोलार्द्ध को कम। इससे उत्तरी गोलार्द्ध में दिन छोटा होता है और रात लंबी। हमारे सौर परिवार का सभी ग्रह झुके हुए अक्ष पर घूमता है और यही वजह है कि वहां भी सीजन और सोल्सटिस होता है। कुछ ग्रहों पर अक्ष का झुकाव कम होता है जैसे बुध ग्रह के अक्ष का झुकाव 2.11 डिग्री होता है, लेकिन पृथ्वी (23.5 डिग्री) और यूरेनस (98 डिग्री) के अक्ष का झुकाव काफी ज्यादा होता है। विंटर सोल्सटिस का संबंध संक्रांति से भी बताया जाता है। ऐसा मानना है कि करीब 1700 साल पहले आज ही के दिन मकर संक्रांति मनाई जाती थी जिसे अब 14 जनवरी को मनाया जाता है।
मिलान का विज्ञान : गुरु-शनि का मिलन दुर्लभ प्रसंग है। महान संयोजन घटना आकार के रूप में दोनों ग्रह धीमी गति से सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। शनि, सूर्य के एक चक्कर को पूरा करने में 30 साल लगते हैं। जब गुरु को एक दौर पूरा करने में 12 साल लग जाते हैं । इस तरह हर 20 साल में पृथ्वी से गुरु और शनि के दर्शन होते हैं। शनि अपनी परिक्रमा में हर साल 12 डिग्री की दूरी काटता है, इसी तरह गुरु 30 डिग्री की दूरी काटता है। इस तरह हर साल गुरु उतना ही जाता है जितना शनि के पास 18 डिग्री। (18 × 20 = 360 डिग्री) फलस्वरूप हर 20 वर्ष में गुरु 360 डिग्री पूरे कर शनि के करीब पहुंचते हैं।
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