प्रतीकात्मक फोटो
गाजियाबाद। पहाड़ों पर बर्फबारी और मैदानी इलाकों में बारिश और शीतलहर से सर्दी बढ़ गई है। नगर निगम ने बेसहारा लोगों के ठहरने के लिए रैन बसेरों (आश्रय स्थलों) में व्यवस्था दुरुस्त करने का दावा किया है। निगम ने 14 स्थायी आश्रय स्थलों के अलावा कई स्थानों पर तंबू लगाकर अस्थायी आश्रय स्थल भी बनाए हैं। इन सभी स्थायी और अस्थायी आश्रय स्थलों के अलावा निगम ने बस अड्डों और रेलवे स्टेशन समेत प्रमुख स्थानों पर अलाव जलवाने का भी दावा किया है। सोमवार देर रात ‘अमर उजाला’ ने शहर के कई आश्रय स्थलों और प्रमुख स्थानों पर निगम के इंतजामों का जायजा लिया। निरीक्षण में इंतजाम आधे-अधूरे मिले। आश्रय स्थलों में आधार कार्ड बिना बेआसरा लोगों को एंट्री नहीं दी जा रही। ठिठुरते लोग आश्रय स्थलों के चौकीदारों से मिन्नतें करते नजर आए।
स्थान: नासिरपुर फाटक आश्रय स्थल
‘आधार कार्ड नहीं तो प्रवेश नहीं’
नासिरपुर आश्रय स्थल पर सोमवार को 21 लोगों ने आश्रय पाया, लेकिन इस रैन बसेरे के हाल में सिर्फ 12 लोगों को ही एंट्री मिली। जिन बेआसरा लोगों पर आधार कार्ड नहीं थे, उन्हें जगह होते हुए भी हॉल में प्रवेश नहीं मिला और टिन शेड के नीचे अपने गद्दे-कंबल के सहारे रात बितानी पड़ी। यह नजारा सिर्फ एक दिन का नहीं था। चौकीदार सरफराज ने बताया कि बिना आधार कार्ड के प्रवेश न देने के निर्देश निगम अधिकारियों ने ही दिए हैं। रोजाना चार-पांच लोग ऐसे होते हैं जिनके पास आधार कार्ड नहीं होता, उन्हें हॉल में प्रवेश नहीं दिया जाता। वह चाहें तो बाहर टिन के नीचे सो सकते हैं। सोमवार रात एक कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वाला व्यक्ति आधार कार्ड न होने की वजह से चौकीदार से मिन्नतें करता रहा।
स्थान: राजनगर का अस्थायी रैनबसेरा
गद्दे तो हैं लेकिन कंबल पड़ने लगे कम
राजनगर पुल के नीचे नगर निगम की ओर से बनाए गए तंबू के अस्थायी रैन बसेरे में 20 गद्दे और 30 कंबल थे। यहां तैनात चौकीदार ने बताया कि सर्दी बढ़ी तो अब दो कंबल में भी लोगों का काम नहीं चलता है। अधिकांश लोग सर्दी से बचने के लिए तीन-तीन कंबल लेते हैं। इसकी वजह से कंबल कम पड़ जाते हैं। चौकीदार ने बताया कि कंबल और देने के लिए निगम में बता दिया है, लेकिन अभी तक मिले नहीं हैं। इसी रैन बसेरे में बेआसरा लोगों के सोने के लिए दिए गए तख्त में से दो टूट गए हैं, इन्हें भी अभी तक नहीं बदला गया है, जबकि तीन दिन से रैन बसेरे में आने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है।
स्थान: पुराना बस अड्डा आश्रय स्थल
आश्रय स्थल की क्षमता कम, बैरंग लौटते हैं लोग
पुराने बस अड्डे के पास बने आश्रय स्थल में गद्दे और कंबल की संख्या पर्याप्त थी, लेकिन इसकी क्षमता कम है। यहां एक ही परिसर में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग हॉल बने हुए हैं, लेकिन पुरुषों के हॉल की क्षमता सिर्फ 18 की है। बस अड्डे के पास होने की वजह से यहां आने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है, लेकिन आश्रय स्थल भर जाने की वजह से रोजाना 8-10 लोगों को वापस भेजना पड़ता है। सोमवार को अमर उजाला की टीम ने इंतजाम परखने के लिए यहां रात को रुकने की जगह मांगी तो चौकीदार ने जगह नहीं होने की बात कहकर गेट खोलने से ही मना कर दिया। हालांकि बाद में सही परिचय देने पर गेट खोला गया। यहां महिलाओं के लिए आरक्षित हॉल में सिर्फ तीन-चार ही महिलाएं आती हैं, लेकिन उनके हॉल में किसी पुरुष को प्रवेश नहीं दिया जा सकता। ऐसे में यहां एक और हॉल बनाए जाने की जरूरत है।
सिलिंडर है लेकिन चूल्हा नहीं, कहां बनाएं खाना
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन पर बने आश्रय स्थलों में ठहरने वाले बेआसरा लोगों के लिए किचन भी बनाया गया है। स्थायी आश्रय स्थलों में रसोई है, उनमें गैस सिलिंडर भी दे दिए गए हैं, लेकिन चूल्हा नहीं है। पुराना बस अड्डा आश्रय स्थल में चूल्हा नहीं मिला तो नासिरपुर फाटक रैन बसेरे में चूल्हा लंबे समय से खराब पड़ा है। ऐसे में यहां रुकने वालों को खाने और चाय का इंतजाम बाहर ही करना पड़ता है।
शौचालय भी बदहाल
नासिरपुर फाटक स्थित रैन बसेरे समेत कई आश्रय स्थलों के शौचालयों की हालत खराब है। यहां सीवर जाम होने की वजह से गंदगी है। चौकीदारों का कहना है कि यह समस्या करीब छह माह से है, लेकिन सफाई नहीं हुई।साभार-अमर उजाला
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