डग्गामार बसों का जाल परिवहन निगम को कंगाल कर रहा है। बदायूं-बुलंदशहर से गाजियाबाद और मेरठ व हापुड़ से गाजियाबाद के लिए सैकड़ों डग्गामार बसें दौड़ रहीं हैं। इन बसों के खिलाफ अधिकारी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। चौकी और थानों के सामने से यह बसें खूब फर्राटे भर रहीं हैं। बदायूं-
बुलंदशहर से गाजियाबाद के लिए चल रहीं डग्गेमार बसें महीने में करोड़ों रुपये का नुकसान कर रही हैं। इन बसों को बड़ी चालाकी के साथ चलाया जा रहा है। शहर के अंदर यह बसें प्रवेश नहीं करती हैं। बाईपास से सवारियों को ढोते हुए निकल जाती हैं, जिससे कोई विरोध भी नहीं करता। बसों में नंबर का भी खेल हो रहा है। अमर उजाला के संवाददाता ने डेढ़ महीने तक कई डग्गामार बसों में बैठकर यात्रा की तो इस गड़बड़झाले की परतें खुलती चली गईं।
परिवहन विभाग के अधिकारियों की साठगांठ से जिले में डग्गामार बसें सैकड़ों की संख्या में घूम रहीं हैं। सुबह से रात तक यह बसें सवारियां ढो रहीं हैं, लेकिन अधिकारियों की आंखों पर पट्टी बंधी हुई है। यही कारण है कि अवैध एवं डग्गामार बसों का जाल कई जिलों में फैला हुआ है। बदायूं से बसें चलती हैं, यह बसें बुलंदशहर होते हुए लालकुआं तक आती हैं। लालकुआं पर सवारी उठाकर वापस बदायूं के लिए लौट जाती हैं।
इसी तरह गढ़ से स्याना, औरंगाबाद बुलंदशहर होते हुए डग्गामार बसें गाजियाबाद पहुंचती हैं। कुछ बसें नरौरा से डिबाई, शिकारपुर बुलंदशहर होते हुए गाजियाबाद पहुंच रही हैं। मेरठ और हापुड़ रोड पर भी डग्गामार बसों का यही हाल है। सूत्रों का कहना है कि प्रतिदिन तीनों मार्गों पर यह बसें परिवहन निगम को लाखों रुपये का नुकसान पहुंचा रही हैं। महीने में कई करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। उनका कहना है कि प्रतिदिन इन सभी रूटों पर 100 से अधिक बसें दौड़ती हैं।
– बस चलाने का यह है नियम
प्राइवेट बसें उसी रूट पर संचालित हो सकती हैं, जिस रूट पर उसे सवारी ढोने की परमिट होती है। बुलंदशहर, हापुड़, मेरठ, नोएडा और गाजियाबाद में करीब 500 से अधिक बसें हैं, जिनके पास ऑल इंडिया परमिट है, लेकिन वह सवारी को एक स्थान से बैठाकर दूसरे स्थान तक ही छोड़ सकती हैं। रास्ते में सवारी को बैठा और उतार नहीं सकती है।
– ऐसे होता है बस चलाने में खेल
बदायूं, बुलंदशहर से संचालित होने वाले कुछ डग्गामार एवं प्राइवेट बसें शहर में अंदर नहीं जाती हैं। यह बसें कार्रवाई के डर से बाईपास से होकर निकलती हैं। कहीं भी 10 से 20 सेकेंड ज्यादा का स्टाप नहीं लेती हैं। अधिकतर चलते-चलते बस में सवारियों को चढ़ा लेती हैं, जिससे किसी प्रकार की दिक्कत न हो।
– थानों के सामने से भरती हैं फर्राटा
नरौरा से लेकर गाजियाबाद की सीमा तक मार्ग पर आठ चौकी और थाने पड़ते हैं। यह भी क्षतिग्रस्त और डग्गामार बसों को नहीं रोकते हैं। इससे इनके हौसले और ज्यादा बुलंद रहते हैं। दिनभर यह बसें सवारी ढोती हुई मिल जाएंगी। जबकि हाईवे पर यह बसें सवारी नहीं ढो सकती हैं।
– रात का उठाते हैं फायदा
संवाददाता ने दो डग्गामार बसों में रात्रि यात्रा की। दो सप्ताह तक बस में लालकुआं से बुलंदशहर के लिए बैठा, जिसने 60 रुपये मांगे। बस से सिकंदराबाद बाईपास पर उतर गया और फिर रात को 11:45 बजे दूसरी बस का इंतजार किया। बस को हाथ दिया, उसने रोका। थोड़ी दूरी पर बस के पहुंचते ही उसने 35 रुपये किराया मांगा। संवाददाता ने कहा कि 20 रुपये किराया लगता है, तो चालक ने जवाब दिया कि कोई बस चालक रोकता नहीं है। रात में इतने ही रुपये लेते हैं। उसने 30 रुपये में बुलंदशहर पहुंचाया।
– परमिट गुन्नौर से बदायूं, चल रही गाजियाबाद 20 दिन पहले रिपोर्टर ने एक और डग्गामार बस में यात्रा की। परिचालक के अनुसार उसका परमिट गुन्नौर से बदायूं तक का था, लेकिन वह बदायूं से लालकुआं तक उसे चला रहे हैं। परिचालक ने बताया कि वह प्रतिदिन दोपहर में गाजियाबाद लेकर आते हैं और रात में बस में सवारी भरकर ले जाते हैं। कार्रवाई के डर पर उसने कहा कि मालिक की अधिकारियों से सेटिंग होती है। इसलिए कुछ नहीं होता है। हमारा रोज का यही काम है। बस चलाने के दौरान नंबरों का भी खेल किया जाता है। नंबर इस तरीके से लिखे हुए हैं कि जल्दी से समझ में भी नहीं आएंगे।
वर्जन….
रात में डग्गामार बसों को पकड़ पाना मुश्किल है। क्योंकि वर्तमान समय में मैं अकेला प्रवर्तन अधिकारी हूं। पहले तीन एआरटीओ होते थे। दिन में ऐसे वाहनों के खिलाफ हम कार्रवाई करते हैं। अगर रात में कार्रवाई करेंगे तो दिन में काम नहीं हो पाएगा। कोई नया अधिकारी आ जाए तब इनके खिलाफ रात में कार्रवाई की जाएगी। ऐसे वाहनों पर चालान ही बड़ी कार्रवाई है। जब तक वह उसे नहीं भरेंगे। सड़क पर नहीं चला सकते हैं।- आरके सिंह, वरिष्ठ एआरटीओ-साभार-अमर उजाला
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