भारत में कोविड-19 की वैक्सीन को लेकर सरकार ने रणनीति तैयार कर ली है। भारत द्वारा इस महामारी को रोकने के उपायों की पूरी दुनिया में तारीफ हुई है। अब भारत की निगाह इसकी विकसित होने वाली वैक्सीन पर लगी है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। बड़ी आबादी होने के बावजूद भारत अपनी तैयारियों और एहतियाती उपायों के दम पर कोरोना संक्रमण के प्रसार की रफ्तार को रोकने में बहुत हद तक सफल रहा है। भारत सरकार की तैयारियां यहीं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वह कोरोना वैक्सीन आने के बाद की रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटी हुई है। आइए, जानते हैं कि देश की एक अरब से ज्यादा की आबादी तक कोरोना वैक्सीन कैसे पहुंचाई जाएगी…
टीकाकरण के क्षेत्र में 42 साल का अनुभव
भारत के पास टीकाकरण कार्यक्रम के संचालन का 42 साल का अनुभव है। यह दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है, जिसमें हर साल 5.5 करोड़ नवजात व गर्भवतियों को विभिन्न रोगों की वैक्सीन की 39 करोड़ खुराक दी जाती है। इसके कारण भारत के पास वैक्सीन के भंडारण से लेकर वितरण तक के लिए एक बेहतरीन इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली उपलब्ध है।
60 फीसद वैक्सीन का उत्पादन
वैक्सीन उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में अव्वल है। दुनियाभर में जितने भी टीकाकरण कार्यक्रम चलते हैं, उनकी 60 फीसद वैक्सीन का निर्माण यहीं होता है। दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का मुख्यालय महाराष्ट्र के पुणे में है।
जुलाई तक 25 करोड़ को वैक्सीन
सरकार ने विभिन्न वैक्सीन की 50 करोड़ खुराक की व्यवस्था व लोगों के टीकाकरण की रणनीति तैयार की है। उसका लक्ष्य है कि अगले साल जुलाई तक 25 करोड़ लोगों का टीकाकरण कर दिया जाए।
पहले किसे लगेगी वैक्सीन
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन कह चुके हैं कि निजी व सरकारी स्वास्थ्य कर्मियों के साथ-साथ अग्रिम पंक्ति में काम करने वाले कर्मचारियों को टीकाकरण में प्राथमिकता दी जाएगी। विशेषज्ञ सवाल करते हैं कि शुगर, हार्ट व किडनी की गंभीर बीमारियों से पीड़ित और बुजुर्गों का क्या होगा। भारत में शुगर पीड़ितों की संख्या सात करोड़ से ज्यादा है।
प्रतिकूल परिणाम की निगरानी
टीकाकरण के दौरान कुछ लोगों प्रतिकूल परिणाम की शिकायत कर सकते हैं। हालांकि, भारत के पास इन स्थितियों की निगरानी के लिए 34 साल पुरानी व्यवस्था है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि शिकायतों को समाधान इकाई तक पहुंचाने के तंत्र को और विकसित करना होगा।
जालसाजी पर अंकुश
टीकाकरण की राह में जालसाजी सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है। संभव है कि शुरुआत में वैक्सीन की मात्रा सीमित होने की स्थिति में जालसाज नकली वैक्सीन का उत्पादन और अवैध बिक्री शुरू कर दें। ऐसा हुआ तो परिणाम घातक होगा। इससे सरकार की तरफ से किए जा रहे प्रयास भी प्रभावित होंगे।
आपूर्ति शृंखला की स्थिति
भारत के पास करीब 27 हजार कोल्ड चेन स्टोर हैं। यहां से वैक्सीन 80 लाख से ज्यादा स्थानों पर पहुंचेंगी। वैक्सीन को दो से आठ डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखना होगा। इतनी बड़ी आपूर्ति शृंखला होने के बावजूद नियत तापमान पर वैक्सीन को रखना और टीकाकरण के लिए पहुंचाना एक बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा भारत को काफी मात्रा में खुद ही निस्तारित होने वाली सिरींज की जरूरत होगी, ताकि संक्रमण का विस्तार नहीं होने पाए। हालांकि, देश की सबसे बड़ी कंपनी का दावा है कि अगले साल तक मांग के अनुरूप एक अरब र्सिंरज का उत्पादन कर लेगी। टीकाकरण के काम में 40 लाख से ज्यादा डॉक्टर व नर्सों को लगाया जाएगा, लेकिन आबादी को देखते हुए इनकी संख्या में इजाफा करना होगा।
पांच वैक्सीन का चल रहा परीक्षण
भारत में विकसित हो रहीं 30 में से पांच वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के दौर से गुजर रही हैं। इनमें ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन भी शामिल है। इसका उत्पादन सीरम करेगी। इनमें एक घरेलू वैक्सीन भी शामिल है, जिसका विकास भारत बायोटेक कर रही है। बायोटेक्नोलॉजी विभाग की सचिव डॉ रेणु श्रीवास्तव का कहना है कि भारत में विकसित वैक्सीन सर्वोच्च प्राथमिकता में होगी।साभार-दैनिक जागरण
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