आजकल की शिक्षित युवाओं का खेती की तरफ रुझान बढ़ा है। अब शिक्षित युवा खेती को भी पेशे के रूप में अपना रहे हैं और इसमें तरक्की भी कर रहे हैं। वह पारंपरिक खेती करने के बजाय ऐसी खेती चुन रहे हैं जिसमें की मेहनत और लागत कम लगे और मुनाफा ज्यादा हो। इस तरह से वह दूसरों के लिए रोजगार भी मुहैया करवा रहे हैं। इसी तरह से बिजनौर के विजेंद्र सिंह चौहान(Vijendra singh chauhan) मोती की खेती करते हैं।
बिजनौर ज़िले के धामपुर तहसील के चक गांव के रहने वाले विजेंद्र सिंह चौहान (Vijendra singh chauhan) ने आईटीआई की पढ़ाई की है। 38 वर्षीय विजेंद्र एक्वेरियम का काम करते थे पर इंटरनेट पर उन्होंने कहीं मोती की खेती के बारे में पढ़ा जिससे उनमे उसके प्रति दिलचस्पी जगी और वह मोती की खेती करने वाले किसानों से मिले। उन्हें यह आय का एक अच्छा साधन लगा। फिर उन्होंने नागपुर में पर्ल कल्चर की ट्रेनिंग ली और फिर मोती की खेती की शुरुआत की।
मोती की खेती से 5.50 लाख तक कि कमाई
विजेंद्र बताते हैं कि गांव में उनके चार तालाब है। इनमे से तीन तालाब 60×40m के हैं और एक तलाब 60×50 m है। विजेंद्र के मुताबिक एक तालाब में लगभग 5000 से 7000 तक सीप डाले जाते हैं। 1 सीप में दो मोती डाले जाते हैं। इसमें सीप 70% के करीब मिल जाते हैं। इस हिसाब से देखें तो 5000 सीप से 10000 के करीब मोती होती है। एक मोती की कीमत कम से कम 100-150 रुपये होती है। इस तरह एक तालाब से 5.50 लाख तक की कमाई होती हैं।
मोती बनाने की प्रक्रिया
विजेंद्र बताते हैं कि मोती की खेती का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर महीने से दिसंबर महीने के बीच हैं। मोती बनने में कम से कम 10 महीने का समय लगता है। विजेंद्र लखनऊ से सीप बड़ी मात्रा में मंगवाते हैं। ढाई से तीन साल की उम्र के बाद सीप मोती बनाने के लिए तैयार हो जाती है। एक सीप विजेंद्र को थोक में 5 -7रुपये तक में मिल जाती है। विजेंद्र मोती बनाने की प्रक्रिया के बारे में बताते हैं कि एक शल्यक्रिया के जरिए सीप के अंदर 4 से 6 मिलीमीटर व्यास वाले साधारण या डिजाइनर बीड के बुद्ध या किसी भी तरह की आकृति डाल दी जाती है। इसके बाद सीप को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है और सीप को नायलॉन के बैग में 10 दिन तक एंटीबायोटिक और काई पर रखा जाता है। उसके बाद इसकी जांच की जाती है ,उनमें से जो मृत सीप होते हैं उन्हें हटा दिया जाता और जो जीवित सीप बचते हैं उन्हें नायलॉन बैग में रखकर बांस या बोतल के सहारे लटका दिया जाता है और इसे तालाब में 1 मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। कुछ दिनों बाद सीप से कैल्शियम कार्बोनेट निकलता है और जो आकृति सीप में डाली जाती है उसी के आधार पर मोती बनता है। 10 महीने बाद सीप को तोड़कर मोती निकाल लिया जाता हैं।
तीर्थ स्थानो में ज़्यादा मांग
विजेंद्र के अनुसार मोतियों की मांग तीर्थ स्थल जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश जगहों पर ज़्यादा हैं। विजेंद्र के मोतियों की सप्लाई सबसे ज़्यादा हैदराबाद में होती हैं।
मछली पालन का कार्य
विजेंद्र मोती की खेती के अलावा मछली पालन भी करते हैं। यह उनकी आय का दूसरा ज़रिया है और इन सब के अलावा वह बाकी किसानों को मोती की खेती करने के लिए प्रशिक्षित भी करते है। विजेंद्र सिंह चौहान कहते हैं कि आज शिक्षित युवाओं को खेती को अपनाना चाहिए इस तरह से जब शिक्षित युवा खेती में आएंगे तो उसमें और तरक्की होगी। वह मोती की खेती को पर्यावरण के अनुकूल मानते हैं और कहते हैं कि यह तो जल शुद्धिकरण में भी मदद करती है।
अगर आप भी विजेंद्र से जुड़ कर मोती की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो 9719994499 पर सम्पर्क कर सकते हैंसाभार- दी लॉजिकली
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